3 दिसम्बर 1971 से 16 दिसम्बर 1971 तक चले भारत-पाक युद्ध ( india-pakisthan war 1971) में सेना के साथ सीमा सुरक्षा बल (bsf) ने कंधे से कंधा मिलाकर दुश्मन से मुकाबला किया। पूर्वी पाकिस्तान जो वर्तमान में बांग्लादेश है, उसमें पाक सेना से दो-दो हाथ करने के लिए भारत से भेजी गई मुक्ति वाहिनी में शामिल बीएसएफ के इंस्पेक्टर जीवराज सिंह ने राजस्थान पत्रिका से विजय दिवस की वर्षगांठ के अवसर पर युद्ध की शौर्य गाथा साझा की। उन्होंने उस वाकये को बताया जिसने पाकिस्तानी सेना को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया था।
जीवराज सिंह के आंखों में 1971 की जंग का नजारा आज भी जीवंत दिखता है। युद्ध की बात छेड़ते ही कहने लगे बीएसएफ के अधिकारियों ने मुक्ति वाहिनी में उन्हें शामिल करने की सूचना दी तो बांहें फड़क उठी। इस प्रण के साथ जंग के मोर्च के लिए रवाना हुए कि दुश्मन को घुटने टिकाकर ही वापस आएंगे अन्यथा जंग के मैदान में ही प्राण न्यौछावर कर देंगे।
कड़कड़ाती सर्दी की रात में उन्हें साथियों के साथ पूर्वी पाकिस्तान की सेना के दो मजबूत आधारों को उड़ाने का काम सौंपा गया। एक था कोमिला एयर पोर्ट। जो पाक सेना के सामरिक महत्व का हवाई अड्डा था। दूसरा था चिटा ब्रिज, जो चिटा गांव के पास नदी पर बना हुआ था। यहां जहाजों से सेना का राशन और अन्य सामान पहुंचता था।
जीवराज सिंह थोड़ा रूककर फिर बोले…पुल की पहले रैकी की और फिर उसे उड़ाने के लिए पुल के ९ पिल्लरों को चिह्नित किया गया। तीन पिल्लरों में ड्रिल से छेद कर बारूद, डेटोनेटर भरकर उसे उड़ाने के लिए तार बांधने का काम सौंपा गया। अंधेरा होते ही एक नाव से पुल के नीचे पहुंचे। पुल पर पाक सैनिकों का कड़ा पहरा था। छोटी सी चूक होते ही जिंदा बचकर लौटना नामुमकिन था।
जीवराज सिंह थोड़ा रूककर फिर बोले…पुल की पहले रैकी की और फिर उसे उड़ाने के लिए पुल के ९ पिल्लरों को चिह्नित किया गया। तीन पिल्लरों में ड्रिल से छेद कर बारूद, डेटोनेटर भरकर उसे उड़ाने के लिए तार बांधने का काम सौंपा गया। अंधेरा होते ही एक नाव से पुल के नीचे पहुंचे। पुल पर पाक सैनिकों का कड़ा पहरा था। छोटी सी चूक होते ही जिंदा बचकर लौटना नामुमकिन था।
जीवराज सिंह बताते है कि वे अपने साथियों के साथ पुल के नीचे पहुंचे और पुल के ऊपर से भारी वाहन के गुजरने का इंतजार करने लगे। जैसे ही कोई वाहन गुजरता पिल्लर पर अपनी ड्रिल चलाकर छेद करना शुरू कर देते। ड्रिल चलने की आवाज वाहन गुजरने से पुल पर होने वाले शोर में दब जाती। कई घंटों की मेहनत के बाद सभी ९ पिल्लरों में छेद कर विस्फोटक भरने में कामयाब हो गए। फिर बारूद को तार से जोड़कर तारों को एक जगह लाया गया।
सुबह की रोशनी होने से पहले ही पुल को विस्फोट से उड़ा दिया। इसी के साथ पाकिस्तान की सेना की राशन आपूर्ति समेत सामान की कड़ी टूट गई। यह वाकया बताते-बताते जीवराज सिंह की आंखों की पुतलियां फैल गई। थोड़ा रूककर बोले…ऑपरेशन तो सफल हो गया लेकिन हमने अपने साथी इंस्पेक्टर अग्नीहोत्री को खो दिया। विस्फोट के दौरान पुल का एक बड़ा पत्थर गिरा और अग्निहोत्री उसकी चपेट में आकर शहीद हो गए।
बीकानेर निवासी जीवराज सिंह आरएएसी में भर्ती हुए। बाद में 1965 में बीएसएफ के गठन के दौरान बतौर एसआइ शामिल हुए। वर्ष 1999 तक बीएसएफ में सेवा देने के बाद सेवानिवृत हुए। उनके जैसे 1971 के युद्ध में दुश्मन से सामना करने वाले से लेकर घायल सैनिकों के उपचार और राशन सामग्री की आपूर्ति करने वाले 19 यौद्धाओं का शुक्रवार को सम्मान किया गया।