कुलपति डॉ. अरुण कुमार ने बताया कि अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना ‘लवण ग्रस्त मृदाओं का प्रबंधन एवं खारे जल का कृषि में उपयोग’ के तहत ड्रिप सिंचाई पद्धति से लवणीय सिंचाई जल का सौंफ की विभिन्न किस्मों की वृद्धि एवं उपज पर अनुसंधान किया गया। इसके परिणाम बेहद सकारात्मक आए हैं। इससे प्रदेश के मसाला उत्पादक किसानों को लाभ होने के साथ ही भविष्य में सौंफ का क्षेत्रफल एवं उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी।
ट्यूबवेल से खेती कारगर प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर एवं केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान करनाल के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रामेश्वर लाल मीणा ने बताया कि तीन साल के अनुसंधान से निष्कर्ष निकला है कि सौंफ की किस्म आरएफ 290 खारा पानी की सिंचाई में अच्छा प्रदर्शन कर रही है। प्रति हैक्टेयर 9 क्विंटल सौंफ का उत्पादन दिया है। लिहाजा लवणीय जल सिंचाई वाले राजस्थान के जिलों बीकानेर, नागौर, चूरू, झुंझुनूं, बाड़मेर आदि के साथ ट्यूबवेल से खेती वाले जिलों में सौंफ की खेती का अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है।
राजस्थान-गुजरात में 96 फीसदी उत्पादन देश में राजस्थान और गुजरात प्रमुख सौंफ उत्पादक राज्य हैं। देश में सौंफ उत्पादन में 96 फीसदी योगदान दे रहे हैं। प्रदेश में सबसे ज्यादा सौंफ नागौर जिले में करीब 10 हजार हैक्टेयर में होती है। सिरोही, जोधपुर, जालौर, जैसलमेर, भरतपुर, सवाई माधोपुर और बीकानेर जिले में भी सौंफ की खेती की जाती है। चूरू, झुंझुनूं, बाड़मेर जिले में सिंचाई पानी नहीं होने और भूमिगत जल खारा होने से लोग खेती नहीं कर पाते।