4 गुना सस्ती है ‘स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर’- कुलपति डॉ अरुण कुमार
राजस्थान में SKRAU कुलपति डॉ अरुण कुमार ने इस पर खुशी जताते हुए कहा कि फसल अवशेष प्रबंधन के लिए वर्तमान में जो मशीनें हैं वे सब्सिडी के बाद भी काफी महंगी हैं। लिहाजा आम किसान उसका उपयोग नहीं कर पाता, लेकिन ‘स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर’ मशीन उनसे करीब चार गुना कम कीमत पर ही उपलब्ध हो सकेगी। लिहाजा कृषि विश्वविद्यालय की यह उपलब्धि अब पराली एवं अन्य फसल अवशेषों के प्रबंधन में अहम भूमिका अदा कर पाएगी।
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कृषि महाविद्यालय
बीकानेर की अधिष्ठाता डॉ पीके यादव ने बताया कि फसल अवशेष प्रबंधन लम्बे समय से एक ज्वलंत समस्या बनी हुई है। काफी प्रयासों के बाद इस समस्या का निराकरण नहीं हो पा रहा है। ऐसे में कृषि विश्वविद्यालय द्वारा बेहद कम कीमत पर निर्मित मशीन ‘स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर’ आने वाले समय में फसल अवशेष प्रबंधन के क्षेत्र में क्रांतिकारी प्रभाव ला सकती है।
इसकी बनती है जैविक खाद यह फसल के लिए लाभप्रद – डॉ वाई.के.सिंह
सह आचार्य डॉ वाई.के.सिंह ने बताया कि फसल कटने के बाद जो फसल अवशेष रह जाते हैं उसे यह मशीन छोटे छोटे टुकड़ों में काट कर पूरे क्षेत्र में फैला देती है। यह जैविक खाद में परिवर्तित होकर फसलों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराता है। इससे अब किसानों को पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी और वे इसका जैविक खाद के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
भारत में प्रतिवर्ष करीब 65 करोड़ टन होता है फसल अवशेष – मनमीत कौर
सहायक आचार्य डॉ मनमीत कौर ने बताया कि जुलाई 2023 में नीति आयोग के प्रकाशित एक आधार पत्र के अनुसार भारत प्रतिवर्ष करीब 65 करोड़ टन फसल अवशेष उत्पन्न करता है। किसान अधिक फसल पैदा करने की प्रतिस्पर्धा के चलते फसल अवशेषों को अपशिष्ट मानकर उसे जल्दी निपटाने के लिए जला देता है। जबकि फसल अवशेष जलाने से न केवल महत्वपूर्ण बायोमास का नुकसान होता है बल्कि यह प्रदूषण वृद्धि में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। फसल अवशेष दहन से मृदा की उर्वरता भी कम हो रही है एवं मानव स्वास्थ्य पर भी दुष्प्रभाव पड़ रहा है।