बीकानेर

पर्यावरण को समर्पित ओमनारायण लखानी, अब तक लगा चुके है 25 हजार पौधे

1979 से लखाणी साथियों व परिवार के सदस्यों के साथ पेड़ लगाने की मुहिम में जुटे है।लखाणी ने नापासर कस्बा क्षेत्र में करीब 25हजार पौधे लगाए जा चुके हैं।

बीकानेरAug 23, 2017 / 09:55 am

अनुश्री जोशी

पर्यावरण प्रेमी ओम नारायण लाखानी

वृक्ष हों भले खड़े, हों घने, हों बड़े, एक पत्र छांव भी मांग मत…, अग्निपथ…, तू न थकेगा कभी, तू न रुकेगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी, कर शपथ, कर शपथ…। हरिवंशराय बच्चन की रचना की ये पंक्तियां नापासर के ओम नारायण लखानी ने साकार कर दिखाई हैं। लखानी ने खुद के लिए नहीं बल्कि लोगों को तेज धूप में घनी छांव मिले इसके लिए कठिन डगर पर चलकर हरियाली लाने का संकल्प लिया। उन्होंने आम रास्ते पर पेड़ लगाने का ऐसा बीड़ा उठाया कि फिर कभी पीछे मुंड कर नहीं देखा, जिसकी मिसाल आज नापासर कस्बा दे रहा है।
 

अब तक लगाए 30 हजार पौधे
1979 से लखाणी अपने कुछ साथियों व परिवार के सदस्यों के साथ पेड़ लगाने की मुहिम में जुटे रहे। वर्ष 2010 में सेठ मोहनलाल ओमनारायण लखाणी चेरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की। अब सारा कार्य ट्रस्ट के मार्फत हो रहा है। नापासर कस्बा क्षेत्र में करीब 25 हजार पौधे लगाए जा चुके हैं। इनमें से 20 हजार पौधे आज भी हरे-भरे हैं। लखाणी ने पहले पहल नीम के पेड़ लगाने से शुरुआत की। अब गुलमोहर, एलस्टोनिया, बकानी, श्यामाकेसिया, बिल्वपत्र, बोतल-ब्रश, अशोक, नागचंपा एवं फाइकस पांडा मरुभूमि के लिए उपयुक्त पौधे ही लगाए जा रहे हैं।
 

अब घर-घर लगाएंगे पौधे
ट्रस्टी कन्हैयालाल लखाणी बताते हैं कि नापासर-सींथल, नापासर-गाढ़वाला सड़क किनारे, रेलवे स्टेशन, श्मशान भूमि में पौधे लगाए गए। अब हर घर में एक पौधा लगाने का कार्यक्रम चल रहा है। पौधे, खाद, दवा, ट्री-गार्ड की व्यवस्था ट्रस्ट की ओर से की जाती है जबकि पौधों की देख-रेख व पानी सींचने की जिम्मेवारी आमजन तथा पौधे लगाने वाले को दी जाती है। अब पेड़ों को लगाने की मुहिम में आमजन भी जुडऩे लगा है। वे बताते हैं कि अच्छी नस्ल के पौधे दिल्ली, जयपुर व सीकर से मंगवाते हैं। यह पौधे छह से आठ फीट बड़े होते हैं। ट्रस्ट ही पौधे की देख-रेख, खाद, पानी, ट्री-गार्ड एवं पेड़ों की देखभाल करने वाले श्रमिकों को भुगतान करता है।
 

27 साल से नहीं रुकने वाला सफर
वैसे तो लखानी वर्ष 1979 में ही गांव में हरियाली लाने की कोशिश में जुट गए थे लेकिन इनके इस काम में तेजी 1990 के बाद दिखाई देने लगी। वर्ष 2001 से तो यह काम आंधी-सी रफ्तार के साथ चल पड़ा। वर्ष 2001 तक इनके इस काम में कई लोग जुड़ गए और पूरा कारवां में बन गया। लखानी को इस कार्य के लिए वर्ष 1995 में राज्यस्तरीय वृक्षवृद्र्धक पुरस्कार एवं अमृतादेवी बिश्नोई स्मृति राज्य स्तरीय पुरस्कार भी मिल चुका है। 75 वर्षीय लखानी का कपड़े का व्यवसाय है।
 

यूं मिली प्रेरणा
वर्ष 1979 में ओमनारायण लखानी हरिद्वार गए थे। वहां सड़क के दोनों और घनी हरियाली देखकर उनके मन में हरियाली के प्रति भाव जाग्रत हो गया। इसी संकल्प के साथ हरिद्वार से लौटने के बाद उन्होंने बीकानेर-सींथल मार्ग पर पेड़ लगाने की शुरुआत की। इसके बाद नापासर-सींथल मार्ग पर नीम के पेड़ लगाए।

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