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बीकानेर

ये लो चाबी… अब करो चोरी!, जिला परिषद में नियमों की उड़ी धज्जियां….

अफसर-इंजीनियरों की फौज, रिनोवेशन-निर्माण का काम दिया ग्राम पंचायत को

बीकानेरMar 22, 2018 / 09:25 am

अनुश्री जोशी

District Councils
शहर के म्यूजियम चौराहा स्थित जिला परिषद कार्यालय में करीब एक करोड़ रुपए का विकास कार्य शुरू हो चुका है। काम के नाम पर मुख्य कार्यकारी अधिकारी व जिला प्रमुख कक्ष और मीटिंग हॉल का रिनोवेशन मुख्य है। इस पूरे प्रकरण में मुख्य पेंच यह है कि यह काम जिला परिषद नहीं करवा रहा, बल्कि बीकानेर से करीब तीस किलोमीटर दूर एक ग्राम पंचायत को यह काम सौंपा गया है।
अधिकारियों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि जिला परिषद में अधिकारियों की भारी-भरकम फौज और सिविल इंजीनियरों से यह काम करवाने की बजाय एक अदनी सी ग्राम पंचायत नौरंगदेसर को सौंपने के पीछे क्या कारण है? मामूली पढ़े-लिखे सरपंच और ग्राम सचिव इस काम को कैसे करेंगे?
क्या सरपंच, पंच और ग्राम सचिव गांव छोड़ कर रोजाना शहर में आकर इस काम को कर सकेंगे? जबकि पंचायतराज के नियमों के मुताबिक कोई ग्राम पंचायत शहरी क्षेत्र में काम नहीं करवा सकती। तमाम नियम-कायदों के विपरीत हो रहे इस काम के बारे में ‘राजस्थान पत्रिकाÓ ने जानकारों से बात की तो पहले तो उन्हें यह भरोसा ही नहीं हुआ कि ग्राम पंचायत को शहर में निर्माण कार्य का काम दिया जा सकता है।
वित्तीय स्वीकृति जारी
जिला परिषद की ओर से ग्राम पंचायत नौरंगदेसर को कार्यकारी एजेन्सी बनाकर जिला परिषद परिसर में जो कार्य करवाए जाने हैं, उनमें से छह कार्यों की वित्तीय स्वीकृति जारी कर दी गई है। जिला परिषद के योजना प्रभारी यशपाल पूनिया ने बताया कि शौचालय निर्माण पर 9 लाख, चारदीवारी ऊंची करने व निर्माण पर 4.95 लाख,
मीटिंग हॉल रिनोवेशन, नवीनीकरण आदि कार्य पर 5.17 लाख, अटल सेवा केन्द्र परिसर के विस्तार पर 3.86 लाख, नरेगा प्रकोष्ठ भवन, सीईओ व जिला प्रमुख कक्ष के रिनोवेशन आदि कार्य पर 10 लाख रुपए खर्च होंगे। इन कार्यों के लिए वित्तीय स्वीकृति जारी की गई है।
हास्यास्पद, गंभीर भी
जानकारों के मुताबिक जिला परिषद मेंं करीब आधा दर्जन सिविल इंजीनियर्स तैनात हैं, जो इस तरह के काम की समझ रखते हैं। इन अधिकारियों का मुख्य काम ही पंचायतों में होने वाले सिविल कामकाज की गुणवत्ता सुनिश्चित करना है। ऐसे में इन अधिकारियों को दरकिनार कर एक सरपंच और सचिव से यह काम करवाना जितना हास्यास्पद है, उतना ही गंभीर भी।
आखिर पंचायत पर इतनी मेहरबानी क्यों?
‘राजस्थान पत्रिका’ की पड़ताल में सामने आया कि सारा ‘खेल’ मिलीभगत का है। जब पंचायतों का बजट खत्म हो गया तो जिला परिषद का काम भी इसी पंचायत को दे दिया गया। मजे की बात यह है कि जिला परिषद का 93 लाख पचास हजार रुपए का जो काम पंचायत को सौंपा गया है, उसमें नया निर्माण बहुत कम है। ज्यादातर पैसा रिनोवेशन पर खर्च होना है। इसके हिसाब-किताब पर नजर रखना आसान नहीं है।
अधिकारी मुंह खोलने को तैयार नहीं
पत्रिका ने जिन्दा मक्खी निगलने जैसे इस काम पर जिला परिषद के अधिकारियों से बात करनी चाही तो कोई अधिकारी मुंह खोलने को राजी नहीं हुआ। मुख्य कार्यकारी अधिकारी अजीत सिंह से पूछा गया तो पहले तो वे दो दिन तक बात करने से ही बचते रहे। बाद में उन्होंने यह कहकर मामला टाल दिया कि जिला परिषद पंचायतराज की किसी भी संस्था को कार्यकारी एजेन्सी नियुक्त कर सकती है। यह जिला परिषद का विशेषाधिकार है।
नियमों के विपरीत
पंचायतराज से जुड़े लोगों से इस बारे में जानकारी ली गई तो उन्होंने बताया कि एक ग्राम पंचायत को शहरी क्षेत्र में कार्य दिया जाना नियमों के अनुसार नहीं है। नियमों में इसका कहीं उल्लेख नहीं है कि एक ग्राम पंचायत को कार्यकारी एजेन्सी बनाकर उसके माध्यम से शहरी क्षेत्र में कार्य करवाया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि करीब एक करोड़ रुपए के कार्य एक ही परिसर में एक ग्राम पंचायत को कार्यकारी एजेन्सी बनाकर करवाए गए हों, यह पहला ही मामला है। जानकारों का मानना है कि ग्राम पंचायत से करीब तीस किमी दूर कार्य होने से मस्टररोल के फर्जी भरे जाने की आशंका रहती है।

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