18 से 70 वर्ष की उम्र…180 मिले फुट डायबिटिक सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज के डायबिटिक एंड रिसर्च सेंटर के प्रभारी एवं विभागाध्यक्ष डॉ. सुरेन्द्र कुमार वर्मा के नेतृत्व में डॉ. सुरेन्द्र, डॉ. मनोज माली, डॉ. अब्दुल हारुन, डॉ. अनुषा यादव, डॉ. मनीषा ने डायबिटिक फुट पर शोध किया। वर्ष 2021 जुलाई से जुलाई 2022 तक 900 मरीजों पर यह परीक्षण चला। शोध में 18 से 70 वर्ष तक के मरीजों को शामिल किया गया। इन मरीजों में मधुमेह के स्तर को जांचा गया। यह लोग गंभीर रूप से बीमार थे। इनमें जन्मजात मधुमेह पीडि़त, मधुमेह के सामान्य रोगी, जिन्हें दर्दनाक अल्सर भी था, ऐसे लोग शामिल थे। इन 900 मरीजों में से 180 के पैरों में घाव था। पैर के घावों का नैदानिक परीक्षण किया गया। घाव की जटिलताओं और उपचार का विश्लेषण हुआ।
यह तथ्य आए सामने शोध में 20 से 79 वर्ष के 70 प्रतिशत पुरुषों में डायबिटिक फुट पाया गया। इसमें भी 60 प्रतिशत ग्रामीण थे। 51.11 प्रतिशत रोगी पैर या पैर की अंगुलियों में अल्सर से पीडि़त मिले। पैर के अल्सर के संक्रमण वाले 110 मरीजों में से 75 प्रतिशत में क्लेबसिएला, ई-कोलाई व प्रोटीएस बैक्टीरिया मिले, जबकि 16 प्रतिशत मरीजों में इन तीनों बैक्टीरिया के लक्षण पाए गए।
पांच प्रतिशत मृत्यु दर चिकित्सकों के मुताबिक, डायबिटिक फुट के तकरीबन 95 फीसदी मरीज ठीक हुए। हालांकि, पांच फीसदी ने जान भी गवाई। चिंता का विषय भी यही है। क्या है डायबिटिक फुट
मधुमेह के अनियंत्रित होने पर पैरों में घाव हो जाते हैं, जो जल्दी ठीक नहीं होते। हालत बिगड़ने पर घाव वाले हिस्से को काटना तक पड़ सकता है। इसकी शुरुआत गैगरीन या अल्सर से होती है। यह दर्दनाक होता है। लापरवाही से मरीज का घाव धीरे-धीरे रिस्क जोन में चला जाता है।
यह है रिस्क फैक्टर – मोटापा – अनियंत्रित मधुमेह – खान-पान – गरीब तबके की अज्ञानता – मधुमेह के प्रति जागरूकता का अभाव बदल रहा ट्रेंड डायबिटिक फुट पर क्लीनिकली स्टडी की गई। इसमें दिखा कि मधुमेह का भारत में ट्रेंड बदल रहा है। अब वह जख्म भी दे रही है। हैरानी वाली बात यह है कि इनमें गांवों के मरीज ज्यादा पीडि़त मिले।
डॉ. सुरेन्द्र कुमार वर्मा, विभागाध्यक्ष मेडिसिन एवं डायबिटिक केयर एंड रिसर्च सेंटर, एसपी मेडिकल कॉलेज