बीकानेर-अनूपगढ़ नेशनल हाइवे 911 के दोनों ओर खाली जमीन पर हजारों क्विंटल तुंबा काटकर सुखाने के लिए डाल रखा है। इस तुम्बे को स्थानीय और बाहर से आए व्यापारी 200 से 250 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से खरीद कर सुखाने के बाद बीज निकाल कर ले जाते हैं।
इन क्षेत्र में उपज
छतरगढ़, सतासर, मोतीगढ़, लाखूसर, केला, महादेववाली, राजासर भाटियान, पूगल, दंतौर सहित आसपास के क्षेत्र के बारानी खेतों में ग्वार, मोठ, मूंग व बाजरा की फसल के साथ खरपतवार के रूप में तुंबा काफी मात्रा में उगता है। टिब्बा क्षेत्र में बारिश कम होने पर खाली खेतों में भी तुंबा की बेल उग जाती है। पहले किसान इसे खरपतवार मानकर खेत से हटाने के लिए परिश्रम और पैसा खर्च करते थे, लेकिन अब तुंबा की पूछ होने से यह ग्रामीणों के लिए आमदनी का जरिया बन गया है। ऐसे में लोग खेतों में जाकर सुबह से शाम तक एकत्र कर तुंबा को व्यापारियों को बेचकर लाखों रुपए कमा रहे हैं। साथ ही तुंबा को काटकर सुखाने और एकत्र कर बीज निकालने के काम के लिए क्षेत्र में सैकड़ों श्रमिकों को रोजगार भी मिल गया है। व्यापारियों ने छतरगढ़ अनाज मंडी के पास नेशनल हाइवे के किनारे सहित अन्य जगह पर बड़ी मात्रा में तुंबे का स्टॉक कर रखा है।
महंगा बिकता बीज
तुंबे को काटकर सुखाने के बाद थ्रेसर मशीन से इसके बीज अलग किए जाते हैं। एक क्विंटल तुंबे से करीब 4 से 5 किलोग्राम बीज निकलते हैं। बाद में यह बीज दिल्ली, जोधपुर, अमृतसर, रावतसर सहित अन्य शहरों के व्यापारी 25 से 30 हजार रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बेचते हैं। आयुर्वेदिक दवा बनाने वाली कपनियां भी तुंबे के बीज को खरीदती है। व्यापारी अर्जुन भाट ने बताया कि हर वर्ष सीजन में 200 से 250 क्विंटल तक बीज तैयार कर आगे बेचते हैं।दवा के रूप में उपयोग
तुंबा का छिलका पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ इंसानों की आयुर्वेदिक औषधियों में भी काम आता है। शुगर, पीलिया, कमर दर्द आदि रोगों की आयुर्वेद औषधियों में तुंबे का उपयोग हो रहा है। गाय, भैंस, भेड़, बकरी, ऊंट आदि में होने वाले रोगों में तुंबे की औषधि लाभदायक है। तुंबे की मांग दिल्ली, अमृतसर, जोधपुर, भीलवाड़ा, रावतसर आदि में है।औषधीय गुण से भरपूर
पशुओं में औषधि के रूप में तुंबा दिया जाता है, जो कारगर दवा है। आजकल कई देशी और आयुर्वेदिक दवाइयों में भी इसका उपयोग होने लगा है। चिकित्सक की सलाह से इसे तय मात्रा में ही लेना चाहिए।– डॉ. संदीप खरे, पशु चिकित्सा प्रभारी छतरगढ़
छतरगढ़ क्षेत्र में किसान खरीफ फसल के साथ उगने वाली खरपतवार तुंबे का व्यापार कर रहे हैं। यह तुंबा आयुर्वेद औषधियों में इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए कृषि विभाग की ओर से अभी कोई कोई योजना नहीं है।
– रामस्वरूप लेघा, कृषि पर्यवेक्षक, ग्राम पंचायत सत्तासर
– रामस्वरूप लेघा, कृषि पर्यवेक्षक, ग्राम पंचायत सत्तासर