पीबीएम के बाद यह शहर का दूसरा अस्पताल है, जहां आउटडोर एवं जांचों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है। बेड भी बढ़ा दिए गए, लेकिन संसाधन एवं मैन पावर जस का तस है। इतना ही नहीं, अस्पताल की कुछ जमीन को अन्य विभागों को भी दे दिया गया। इस वजह से अब अस्पताल का विस्तार करने में भी दिक्कत आ रही है।
बेड कर दिए 160, स्टाफ की यहां भी दिक्कत
सरकार ने सेटेलाइट अस्पताल से 2007 में इसे जिला अस्पताल के रूप में क्रमोन्नत कर दिया। बेड की संख्या भी 50 से बढ़ाकर 160 कर दी। हालांकि, स्टाफ की संख्या उतनी ही है, जितनी 1994 में थी। 2016 में इसे मेडिकल कॉलेज के अधीन कर दिया, जबकि पूर्व में स्वास्थ्य विभाग के अधीन था।
मरीजों का आउटडोर 4 गुना बढ़ा
आज इस अस्पताल का आउटडोर भी चार गुना बढ़ गया है। इस समय प्रतिदिन दो हजार रोगियों का यहां पंजीकरण होता है। जबकि 30 साल पहले करीब पांच सौ रोगियों का ओपीडी होता था। हालांकि, भर्ती मरीजों का आंकड़ा काफी कम है। इसकी भी वजह संसाधनों की कमी है। गंभीर रोगियों को पीबीएम अस्पताल रैफर किया जाता है।
जांचों के हालात
इस समय अस्पताल में 250 एक्सरे, 75 सोनोग्राफी तथा 450 विभिन्न तरह की जांचें प्रतिदिन की जा रही है। तकनीकी कर्मचारियों के भी कम पद स्वीकृत हैं। स्टाफ कम होने के कारण मरीजों को दूसरे दिन जांच कराने के लिए आना पड़ता है। रिपोर्ट मिलने भी देरी हो जाती है।
अन्य विभागों को भी दे दी जमीन
अस्पताल परिसर में ही अन्नपूर्णा रसोई, बिजली विभाग का जीएसएस और रैन बसरे के लिए जमीन आवंटित कर दी गई। ऐसे में अगर अस्पताल का विस्तार कराने की योजना बनाई जाती है, तो यह व्यवस्था आड़े आएगी।
सरकार को भेजा जाएगा प्रस्ताव
अस्पताल का विस्तार करने, मरीजों की संख्या के अनुसार चिकित्सकों एवं नर्सिंग स्टाफ के पदों को बढ़ाने एवं बेड की संख्या तीन सौ तक करने के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजा जाएगा। मेडिकल रिलीफ सोसाइटी की बैठक में स्टाफ की कमी का मुद्दा भी उठा था। अगर स्टाफ बढ़ा दिया जाए और बेड संख्या में इजाफा कर दिया जाए, तो पीबीएम अस्पताल पर दबाव कुछ हद तक कम हो सकता है। – डॉ. सुनील हर्ष, अधीक्षक जिला अस्पताल
फैक्ट फाइल
2000 मरीजों का आउटडोर 160 बेड हैं फिलहाल अस्पताल में 250 एक्सरे औसतन होते हैं प्रति दिन 75 सोनोग्राफ्री होती है प्रतिदिन जिला अस्पताल में 450 विभिन्न तरह की जांचें हर रोज 22 पद चिकित्सकों के स्वीकृत हैं इस अस्पताल में
1994 में हुई थी स्थापना, स्टाफ उस वक्त जितना ही
शहरी क्षेत्र के रोगियों को तत्काल इलाज की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने जमीन की व्यवस्था कर दी। भवन बनाने के लिए भामाशाह परिवार का सहयोग लिया। मूंधड़ा परिवार ने सूरजदेवी मूंधड़ा के नाम भवन बनाकर सरकार को सुपुर्द कर दिया। इसके बाद 1994 में इस अस्पताल को मरीजों के लिए शुरू कर दिया गया। उस वक्त यहां पर 22 पद चिकित्सकों के तथा 36 पद नर्सिंग कर्मचारियों के लिए स्वीकृत किए थे। आज इस अस्पताल को 30 साल हो गए, लेकिन स्टाफ 1994 वाली संख्या में ही सीमित है, जबकि मरीजों की आमद में कई गुना बढ़ोत्तरी हो चुकी है।