बीकानेर

खनिजों के दोहन के साथ-साथ भू-संपदा की भी करें चिंता

प्रदेश में खनन की नीति तो है लेकिन खनन के बाद भूमि पुन: उपयोग में आ सके, इसके लिए ठोस नीति नहीं है।

बीकानेरJan 15, 2025 / 06:27 pm

Brijesh Singh

राजस्थान के भू-गर्भ में खनिजों की भरमार है लेकिन इनके अंधाधुंध दोहन ने भविष्य के लिए परेशानियां खड़ी करने के आसार बना दिए हैं। इसलिए सरकार को खनिज दोहन के साथ अभी से भू-संपदा की चिंता भी करनी होगी। खनन संबंधी नीतियों में इस तरह के परिवर्तन करने होंगे कि खनन के बाद उस भूमि को पुन: उपयोग में लिया जा सके। प्रदेश में अभी 50-50 साल के लिए 16 हजार 817 खनन पट्टे दिए हुए हैं इसी तरह 17 हजार 454 क्वारी लाइसेंस पर खनन हो रहा है। मुय रूप से बजरी, सिलिका, लाइम स्टोन, व्हाइट क्ले, जिप्सम और स्टोन का खनन किया जा रहा है। सरकार कोई भी हो, अवैध खनन हमेशा बड़ी समस्या रहता आया है। अवैध खनन पर अंकुश लगाने की बातें तो खूब होती हैं लेकिन नतीजा सिफर ही दिखता है। संतोष की बात है कि मौजूदा सरकार अवैध खनन को रोकने के लिए नीतियों में बदलाव कर रही है। हाल ही प्रदेश में खनन पट्टों की खानों का ड्रोन सर्वे करने की व्यवस्था 1 अप्रेल 2025 से लागू करना भी ऐसा ही एक प्रयास है। सरकार ने जनवरी में ही ट्रांजिट पास (टीपी) को बंद कर ई-वे बिल की व्यवस्था लागू की है। उमीद की जानी चाहिए कि खनन नीति में यह दोनों बड़े बदलाव अवैध खनन पर बड़ा प्रहार करेंगे।
बहरहाल, प्रदेश में बजरी, क्ले, कोटा स्टोन आदि के दिए पट्टों से भूतल पर बन रहे हालात के बिंदु को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। इनसे निकलने वाले खनिज पर सरकार रॉयल्टी वसूल कर अपना खजाना भर रही है। खनन कारोबारी भी मोटा पैसा कमा रहे हैं। परंतु प्रदेश में खनन क्षेत्रों में बन चुके एक हजार से अधिक माइनिंग वेस्ट (मलबे) के बन रहे ढेर नई परेशानी बन कर उभरे हैं। यह ढेर दिनों-दिन बढ़ते जा रहे है। जो मानव निर्मित पहाड़ या झीलें बना रहे हैं। इससे रेगिस्तानी क्षेत्र का ईको सिस्टम भी प्रभावित हो रहा है। एक बात और, प्रदेश में खनन तक के लिए नीतियां है, लेकिन खनन के बाद भूमि पुन: उपयोग में आ सके, इसके लिए कोई ठोस नीति नहीं है। मलबे के पहाड़ के घेरे में आने वाली भूमि अनुपयोगी हो रही है। साथ ही खानों के गहरे गड्ढों को पुन: भरकर फिर से भूमि को उपयोग लायक बनाने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहा। भूमि को इस तरह खोखला करने से भू-संपदा नहीं बचेगी। इसके नतीजे भविष्य में भूगर्भीय घटनाओं के रूप में भी झेलने पड़ सकते हैं।

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