बहरहाल, प्रदेश में बजरी, क्ले, कोटा स्टोन आदि के दिए पट्टों से भूतल पर बन रहे हालात के बिंदु को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। इनसे निकलने वाले खनिज पर सरकार रॉयल्टी वसूल कर अपना खजाना भर रही है। खनन कारोबारी भी मोटा पैसा कमा रहे हैं। परंतु प्रदेश में खनन क्षेत्रों में बन चुके एक हजार से अधिक माइनिंग वेस्ट (मलबे) के बन रहे ढेर नई परेशानी बन कर उभरे हैं। यह ढेर दिनों-दिन बढ़ते जा रहे है। जो मानव निर्मित पहाड़ या झीलें बना रहे हैं। इससे रेगिस्तानी क्षेत्र का ईको सिस्टम भी प्रभावित हो रहा है। एक बात और, प्रदेश में खनन तक के लिए नीतियां है, लेकिन खनन के बाद भूमि पुन: उपयोग में आ सके, इसके लिए कोई ठोस नीति नहीं है। मलबे के पहाड़ के घेरे में आने वाली भूमि अनुपयोगी हो रही है। साथ ही खानों के गहरे गड्ढों को पुन: भरकर फिर से भूमि को उपयोग लायक बनाने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहा। भूमि को इस तरह खोखला करने से भू-संपदा नहीं बचेगी। इसके नतीजे भविष्य में भूगर्भीय घटनाओं के रूप में भी झेलने पड़ सकते हैं।