बोट फ्लाई और सेफड़ा
बोट फ्लाई एक तरह की मक्खी है, जो आमतौर पर भेड़ों को परेशान करती है। यह मक्खी दिन में धूप होने के कारण ठंडी जगह की तलाश करते हुए भेड़ों के नाक में घुस जाती है, जहां पर लार्वा देती है। ये लार्वा धीरे-धीरे नाक में फैलने लगते हैं, जिससे सेफड़ा रोग हो जाता है। इस रोग के कारण भेड़ों की नाक में खुजली आने लगती है और नाक बहने लगती है। खुजली को मिटाने के लिए भेड़ें किसी पत्थर पर अपनी नाक रगड़ने लगती हैं, जिससे खून भी आने लगता है। अगर समय पर इलाज शुरू नहीं किया जाता है, तो भेड़ को तेज खांसी भी शुरू हो जाती है।70 फीसद से अधिक भेड़ें चपेट में
बदलते मौसम में इस समय 70 प्रतिशत से अधिक भेड़ें सेफड़ा रोग से प्रभावित हैं। वैसे तो इस संक्रमण से भेड़ों की मौत नहीं होती है, लेकिन अगर समय पर इलाज नहीं कराया जाता है, तो रोग बिगड़ने से मौत हो सकती है। इस संक्रमण से भेड़ को भूख-प्यास कम लगती है और चिड़चिड़ापन हो जाता है। चारा-पानी कम खाने से शारीरिक कमजोरी हो जाती है, जिससे ऊन उत्पादन भी कमजोर होता है और मांस की मात्रा भी कम हो जाती है। इस संक्रमण से पेट में पल रहा मेमना भी कमजोर होता है। इससे बचाव यही है कि एक बार ही कीड़े मारने वाली दवा पिला दी जाए, ताकि लार्वा बढ़ने से रोका जा सके। यह भी पढ़ें
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राज्य में इतनी भेड़ें
इस समय प्रदेश में 8 करोड़ भेड़ें हैं। इसमें बाड़मेर में 10 लाख, जैसलमेर में 8 लाख, पाली में 7.50 लाख, बीकानेर में 7 लाख और जोधपुर में 6 लाख भेड़ें शामिल हैं।वैज्ञानिक कर रहे काम
रोग को देखतते हुए संस्थान के वैज्ञानिकों ने इलाज शुरू करा दिया है। हमारा प्रयास है कि कोई भेड़ मरने न पाए। – डॉ. आर.ए. लेघा, प्रभागाध्यक्ष केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन संस्थान बीकानेरबाड़ों को साफ रखें
सेफड़ा मुख्यत: मौसम बदलने के समय होता है। बचाव के लिए बाड़ों को साफ रखना चाहिए। अगर कोई एक भेड़ संक्रमित हो गई, तो अन्य भेड़ों को उससे अलग रखना चाहिए। डॉ. अशोक कुमार यादव, वैज्ञानिक केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान