फिलहाल, ये बेरोजगार महिलाएं दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। इस मुहिम से जुड़ी महिलाओं के हटने के बाद से इनके परिवार के सामने खाने तक के लाले पड़ गए हैं। महज 2000 के मानदेय पर काम करने वाली इन महिलाओं को लेकर सबसे पहले कांग्रेस ने पहल की थी। सीएमसी वर्कर पहले जागरुकता फैलाने के मकसद से समुदाय स्तर पर महिलाओं के बीच बैठकर लोगों को जागरुक करने का काम कर रही थी। स्कूलों में जाकर पोलियो क्लास और रैली निकालने का काम करती थी, जिनकी बदौलत समय पर परिवारों में स्वास्थ्य संबंधित जानकारी पहुंचती थी। आज वही वर्कर बेरोजगार होकर बदहाली के आंसू बहा रही हैं । इनमें कुछ वर्कर तो ऐसे हैं, जिनके सिर पर छत भी नहीं है। कमाने वाला पहले ही चल बसा है । कच्चे मकानों के सहारे सर्दी बिताने की तैयारी कर रही हैं । घर का चूल्हा जलाने के लिए ये महिला वर्कर बच्चों को महज 100 रुपए महीना में शिक्षा देकर दो जून की रोटी चला रही है। वहीं, कुछ वर्कर सिलाई के बूते अपने परिवार को बचाने में जुटे हुए हैं, जिन वर्करों ने अपने जीवन के 15 साल लगाकर स्वास्थ्य सेवाओं को नई ऊंचाइयां प्रदान करने में गर्मी, धूप और बरसात को नजरअंदाजकर जी तोड़ मेहनत की। वे आज बेरोजगार हो चुकी हैं।