बीजापुर । CG News : शारदीय नवरात्रि के एक दिन पहले से माता गौरी की आराधना पूरे दक्षिण पश्चिम बस्तर में बतकम्मा के रूप में भक्ति श्रद्धा और हर्षोल्लास से मानने का दौर रविवार शाम से शुरू हो गया है। दक्षिण पश्चिम बस्तर क्षेत्र में नवरात्रि के शुरुवात के साथ बतकम्मा के रूप महागौरी की पूजा जाती है। सुहागिन महिलाएं और कुंवारी कन्याएं देवी माता को खुश करने के लिये ही फूलों से बतकम्मा बना कर पूजा अर्चना करती हैं। इस दौरान माता के भजनों के साथ घेरा बना कर पूजन करती हैं। मान्यता है की परिवार की सुख समृद्धि की कामना भी इसमें निहित है,एक मान्यता है कि ये त्योहार स्त्री के सम्मान में मनाया जाता है।
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नगर के अलग अलग स्थानों में जहां एक ओर दुर्गा पंडालों की स्थापना की जा रही है वहीं बतकम्मा गौरी आराधना के लिए महिलाएं थालियों में फूलों का गुंबद नुमा बतकम्मा बना कर टोलियो में पूजा आराधना की तैयारियों में जुट गई हैं। शारदीय नवरात्रि के साथ यहां तेलंगाना की संस्कृति की स्पष्ट झलक नजर आती है। जानकारों की माने तो सुहागिन महिलाएं माता गौरी के नाम से उपवास रहकर एकत्रित किये हुए रंगबिरंगे फूलों को गोलाकार गुम्बद के रूप में सजाते हैं। सबसे ऊपर एक गोपरम बनाकर उसमें हल्दी से माता गौरी को बनाकर स्थापना कर सभी महिलाएं शाम तुलसी चबूतरा में बतकम्मा को रख कर उसके चारों ओर परिक्रमा करते हुए माता गौरी के भजनों को गाते हुए नृत्य करती हैं।
नगर के अलग अलग स्थानों में जहां एक ओर दुर्गा पंडालों की स्थापना की जा रही है वहीं बतकम्मा गौरी आराधना के लिए महिलाएं थालियों में फूलों का गुंबद नुमा बतकम्मा बना कर टोलियो में पूजा आराधना की तैयारियों में जुट गई हैं। शारदीय नवरात्रि के साथ यहां तेलंगाना की संस्कृति की स्पष्ट झलक नजर आती है। जानकारों की माने तो सुहागिन महिलाएं माता गौरी के नाम से उपवास रहकर एकत्रित किये हुए रंगबिरंगे फूलों को गोलाकार गुम्बद के रूप में सजाते हैं। सबसे ऊपर एक गोपरम बनाकर उसमें हल्दी से माता गौरी को बनाकर स्थापना कर सभी महिलाएं शाम तुलसी चबूतरा में बतकम्मा को रख कर उसके चारों ओर परिक्रमा करते हुए माता गौरी के भजनों को गाते हुए नृत्य करती हैं।
यह भी पढ़ें: सीआरपीएफ जवानों ने रक्तदान कर बचायी गर्भवती की जान बतकम्मा दस दिनों तक चलता है। इन दिनों बीच मे एक दिन अवकाश होता है जिसे अर्रेम के नाम जाना जाता है। अर्थात उस दिन बतकम्मा नही खेला जाता है। अंतिम दिन जिसे सद्दुला बतकम्मा के नाम से माता गौरी व नौ माताओ नाम से नौ प्रकार के प्रसाद बनाकर लाते है। जिसे सद्दुलु कहते हैं और रोज की तरह बतकम्मा के गीतों का गायन करते हुए सभी महिलाएं नाच गाना करते है। रात होते ही इन फूलों से बना बतकम्मा को बाजा गाजे के साथ पास के नदी तालाबो में विसर्जन कर सद्दुलु प्रसाद को वितरण किया जाता है। महिलाएं माता गौरी के नौ रूपों से अपने परिवार की सुख समृध्दि और सुहागन रहने की कामना करती हैं।