सुभाष कहते हैं कि अगर उन्होंने बच्चों और गांव वालों का साथ छोड़ दिया तो बच्चों को पढ़ाने शायद ही कोई आए क्योंकि गांव में आज भी नक्सल दहशत बरकरार है। वे गांव वालों के बीच मददगार गुरुजी के नाम से भी जाने जाते हैं क्योंकि गांव वालों का सारा सरकारी काम वे ही करवाते हैं। वे अब तक 100 से ज्यादा जाति प्रमाणपत्र बनवा चुके हैं। साथ ही 40 बच्चों का दाखिला ब्लॉक मुख्यालय में करवा चुके हैं। उनके इस जज्बे को देखते हुए जिला प्रशासन और आदिवासी समाज ने उनका सम्मान किया है।