मौजूदा समय मे छोटे-छोटे लगभग 50 बच्चे गांव मे रहते है । गांव मे ना हीं आँगनबाड़ी है और ना हीं स्कूल पढ़ाई हासिल करने के लिए कोई अन्य जरिया भी नहीं है। जब पत्रिका कि टीम बिहाड़ जंगलों से होते हुए धुर नक्सल प्रभावित मूतवेदी गांव पहुंची वहां देखा कि बच्चे अधनंगे घूम रहे हैं। आजादी के बाद से इस गांव में कोई स्कूल नहीं खोला गया है। गांव के राकेश कोवासी, जमली कुंजाम, शर्मिला कुंजाम, विमला कुंजाम, दीपा कुंजाम, कोसा कवासी, हिड़मा कोवसी, हड़मा कुंजाम, जोगी कवासी, कमला कोवसी, ये सारे बच्चे पटेलपारा के है, इसके आलावा गाँव में चिनपारा और नयापारा भी है।
बच्चों की तमन्ना है कि वे पढ़ाई कर आगे बढ़े
8 वर्ष के वेको नें बताया कि इस गांव में किसी भी बच्चे ने स्कूल व आंगनबाड़ी नही देखा है। किसी को हिंदी बोलना भी नही आता है मुझे मेरे चाचा ने तोड़ा हिंदी बोलना सिखाया है मैं तोड़ा बहुत बोलता हूं। गांव के सारे बच्चे स्कूल जाना चाहते हैं। पर यहाँ कोई स्कूल आंगनबाड़ी नही है हमे पड़ने के लिए गागलूर जाना पड़ेगा । जो लगभग 25 किलोमीटर दूर है।
सरकारी योजनाएं विफल
बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए सरकार अनेक योजनाएं चला रही हैं, लेकिन बीजापुर जिले के गावों मे आज योजनाए विफल साबित हो रही है। गांव के बच्चे शिक्षा से वंचित है और इसका प्रमुख कारण गांव में स्कूल नहीं होना है। ग्रामीणों का कहना है कि आसपास कई किलोमीटर तक कोई स्कूल नहीं है।
बंद स्कूलों को खोलने का प्रयास किया जा रहा
200 से अधिक बंद स्कूलों को खोला गया है और भी स्कूलों को खोलने का प्रयास किया जा रहा है शिक्षा की मुयधारा से जोड़कर बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है।