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तीन दिवसीय ‘रजो पर्व’ का आगाज,देशभर में ओडिशा में मनाया जाता है यह अनोखा त्योहार

इस त्योहार को मानसून के आगमन का संकेत माना जाता है…

भुवनेश्वरJun 14, 2019 / 05:40 pm

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rajo festival

तीन दिवसीय ‘रजो पर्व’ का आगाज,देशभर में ओडिशा में मनाया जाता है यह अनोखा त्योहार

(भुवनेश्वर,पत्रिका ब्यूरो): ओडिशा शायद इकलौता ऐसा राज्य होगा जहां रजो (मासिक धर्म) पर्व का उत्सव धूम से मनाया जाता है। रजोपर्व की धूम शुरू हो गई है। बालिकाओं और स्त्रियों का यह त्योहार तीन दिन तक चलेगा। नये वस्त्र, पकवान, गांवों में झूला, लड़कियों से जुड़े खेलकूद, एक दूसरे से मिलने का पर्व है। तीन दिन तक चलने वाला यह रजोपर्व एहसास करा देता है कि जैसे ओडिशा में सबकुछ नया-नया है। खुशहाली है।


तीन दिवसीय त्योहार रजो पर्व का आज पहला दिन है। इस त्योहार को मानसून के आगमन का संकेत माना जाता है। इस परंपरा से बेटियों के प्रति स्नेह बढ़ता है और रिश्तों की डोर को मजबूती मिलती है। ओडिशा शायद इकलौता राज्य होगा जहां मासिक धर्म यानी पीरियड्स का उत्सव मनाया जाता है। इसीलिए इसे रजो पर्व कहा जाता है। हालांकि यह राज्य के तटीय क्षेत्र में धूमधाम से मनाया जाता है पर अब तो पश्चिम और दक्षिण ओडिशा में सालों से यह परंपरा जारी है। चार दिन तक बाहर के सारे कामकाज ठप रहते हैं। इस सांस्कृतिक परंपरा के पीछे बताया जाता है कि भूदेवी (भूमि) भगवान विष्णु की पत्नी हैं। बारिश आने वाली होती है तो भूदेवी को रजस्वला से होकर गुजरना पड़ता है। उनका यह पीरियड तीन से चार दिनों तक का होता है।

 

रजोपर्व के दौरान खेतीबाडी के कामकाज, बुआई कटाई यानी जमीन से जुड़े समस्त काम रोक दिए जाते हैं ताकि भूदेवी को खुश रखते हुए आराम दिया जा सके। पहला दिन रज होता है और दूसरा मिथुन संक्रांति तथा तीसरा दिन जिस दिन माना जाता है कि पीरियड्स खत्म होते हैं उसे बासी रज कहा जाता है। ओडिशा में तीनों दिन बालिकाएं और युवितयां नए कपड़े पहनती हैं। सजती संवरती हैं, मेहंदी लगाती हैं। झूले पड़ जाते हैं। विवाहिता महिलाएं भी तीन दिन तक कोई काम नहीं करतीं। रसोई तक पुरुषों के हवाले कर दी जाती है। ग्रामीण इलाकों में तो देसी खेलकूद का माहौल रहता है। जैसे खो-खो, इख्खल दुख्खल, गुट्टे आदि। मुख्य पकवान पीठा तो घर-घर बनाया जाता है। हां, पान खाना परंपरा है। विशेष मीठा पान भी खाया जाता है। यह त्योहार खोरदा, पुरी, कटक, जगतसिंहपुर, जाजपुर, भद्रक, केंद्रपाड़ा, गंजाम, कोरापुट, कंधमाल जिले का प्रमुख त्योहार है। सोजा-बोजा यानी सजावट और गीत संगीत से शुरु हुए रजोपर्व का समापन वासुमति स्नान (गाधुआ) यानी भूदेवी स्नान के साथ होता है। पीठा चाकुली पीठा मुख्य खाना होता है।


इस देश में धरती को हमेशा स्त्री का दर्जा दिया गया है। जिस प्रकार सामान्य तौर पर स्त्री रजस्वला होने के बाद अनुमान लगा लिया जाता है कि वह संतानोत्पत्ति में सक्षम है ठीक उसी तरह अषाड़ मास में भूदेवी रजस्वला होती हैं और खेतों में बीज डाला जाता है ताकि पैदावार अच्छी हो। चार दिन बादस्त्रियां बाल धोकर सामान्य और शुभ कार्यों में जुट जाती हैं। रजो पर्व को जगन्नाथ संस्कृति से भी जोड़ा गया है। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, केंद्रीय मंत्री धर्मेद्र प्रधान ने रजोपर्व पर ओडिशावासियों को बधाई दी।

 

रजोपर्व त्योहार की खास बातें

1-पहला दिन पहिली रजो के नाम से है जिसे पृथ्वी के मासिक धर्म का पहला दिन कहा जाता है। कुँवारी लड़कियां नंगे पांव जमीन पर नहीं रखती।

2-दूसरा दिन भूदेवी के रजस्वला का होता है। मिथुन संक्रांति/रजो संक्रांति (वास्तविक रजो) कहलाता है।

3-तीसरे दिन शेष रजो मनाया जाता है। शेष रजो/भूदहा/बासीरजो। सोजा-बोजा से ही चल रहे यह त्योहार समाप्त होता है।

4-घर-घर में पोडापीठा, चाकुली पीठा (पिसा चावल और नारियल) से बनाया जाता है। इस दौरा डोली, रामडोली, चरखी डोली, पता डोली और डंडी डोली का भी लोग आनंद उठाते हैं। इस पर बैठकर घूमते हैं। रजोपर्व के विभिन्न लोकगीत भी गाये जाते हैं।

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