मंदिर के गर्भगृह की छत टपक रही है। प्लास्टर भी उखड़कर गिरता है। दीवारों पर दरारें पड़ रही है। दीवारों पर कार्बन जमा हो रहा है। श्रीमंदिर पर बाहर से चाहे जितना ही रंगरोगन कर लिया जाय पर यह जनास्था का यह मंदिर के ढांचे का भीतर ही भीतर क्षरण हो रहा है। इसका रखरखाव देखने वाला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई की ताजी रिपोर्ट देखें तो जगन्नाथ मंदिर की भीतरी दीवारों में दरारें पड़ चुकी हैं। मंदिर का भीतरी ढांचा कमजोर होता जा रहा है। यह रिपोर्ट एएसआई ने श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रशासन को सौंप दी गई है। एएसआई विशेषज्ञों ने श्रीमंदिर के गर्भगृह में भारी मात्रा में कार्बन की जमावट पाई है। उनका कहना है कि ऐसा मंदिर के विग्रहों के निकट मिट्टी के दीपकों को जलाए जाने से होता है। यहां पर मंदिर के बाहर हजारों की संख्या में मिट्टी की दीयें रोज जलाए जाते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि मंदिर में जमा कार्बन की परत दर परत न हटाई गई तो जगन्नाथ मंदिर को भारी नुकसान हो सकता है।
एएसआई विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भ गृह में जगह जगह हो रहे पानी का रिसाव से मंदिर की हालत और भी खस्ता हो रही है। मंदिर में जलनिकासी की व्यवस्था सालों से बाधित पड़ी है। एएसआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि मंदिर की धुलायी और बारिश के पानी की निकासी न हो पाने के कारण यह पानी दीवारों और फर्श पर जमा होकर रीसता रहता है। एएसआई ने हालांकि एक दिन में एक ही दीया जलाने का सुझाव सेवायतों को दिया है, पर सेवायतों ने यह सुझाव नहीं माना। इसके अलावा गर्भगृह में लगे दर्जनों एसी के कारण भी भीतरी हिस्से की दीवारों का क्षरण हो रहा है। एएसआई के विशेषज्ञों ने श्रीजगन्नाथ मंदिर पर यह रिपोर्ट रथयात्रा के दौरान मंदिर के भीतर जाकर सघन निरीक्षण के बाद तैयार की थी। यह भी कहा गया है कि बारिश के पानी की भी निकासी नहीं होती है। श्रीमंदिर के अधिशासी अभियंता बिंदेश्वरी पात्रा ने बताया कि मंदिर का जलनिकासी की व्यवस्था पर बराबर ध्यान देने की जरूरत है। जलनिकासी निर्बाध होनी चाहिए। इसकी नियमित सफाई की जानी चाहिए।