भोपाल। युवाओं में आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण प्रेम प्रसंग और पढ़ाई का दबाव हुआ करता था वहीं अब तकनीक का अंधा इस्तेमाल सुसाइड की वजह बन गया है। एक अध्ययन के अनुसार भारत में युवाओं की मौत का दूसरा सबसे मुख्य कारण आत्महत्या है। यह स्थिति कितनी भयावह हो गई है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि युवाओं में मौत का आंकड़ा देश में जन्म मृत्युदर के आंकड़े से भी दुगना हो गया है। आइए जानते हैं वो कौन से पांच कारण हैं जो युवाओं की जान के दुश्मन बन गए हैं… MUST READ: मोबाइल को बैंक बनाना कितना आसान या कठिन, जानें हर सवाल का जवाब… दबाव का कोई इलाज नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2010 में भारत में एक लाख 90 हज़ार लोगों ने आत्महत्याएं की थीं और पांच साल में यह आंकड़ा 20 प्रतिशत बढ़ गया है। आत्महत्या करने वालों में 60 प्रतिशत 15 से 30 साल की उम्र वाले लोग हैं। हमीदिया अस्पताल के मनोरोग चिकित्सक आरएन साहू कहते हैं कि आत्महत्या का मुख्य कारण दबाव है। फिर चाहे वह पढ़ाई या कॉम्पटीशन हो या निजी संबंध। इसका ठोस इलाज नहीं है, सिवाए इसके कि लोग अपनी मानसिकता बदलें। हालांकि इसकी संभावना कम होती है लेकिन फिर भी आत्महत्या के विचार के प्रभाव को कम करने के लिए जरूरी है कि जीवन को कठिन बनाने वाली बातों से दूर रहा जाए। ALSO READ: MP में कुछ ऐसे लागू होगा कैशलेस सिस्टम, ये है सरकार का ‘PLAN 16’ तकनीक ने बढ़ाई दूरियां साल 2001-03 में रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया ने आत्महत्या के कारण जानने के लिए पहला राष्ट्रीय सर्वेक्षण करवाया था। जिसके अनुसार 15 से 21 साल के युवाओं में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति ज्यादा दिखायी दी। आत्महत्या करने वालों में 40 फीसदी युवक और 56 प्रतिशत युवतियां थीं। सर्वेक्षण में स्पष्ट किया गया है कि तकनीक का बढ़ता इस्तेमाल मानसिक तनाव को बढ़ा रहा है। मनोरोग विशेषज्ञ काकोली राय कहतीं हैं कि फेसबुक या इंटरनेट और मोबाइल फोन पर बढ़ती निर्भरता ने संबंधों में दूरियां पैदा कर दी हैं। लोगों का आपसी मेलजोल कम हो गया है, नतीजतन बातें शेयर नहीं होतीं। ऐसे में यदि कोई मानसिक तनाव झेल रहा है तो वह खुद को और भी अकेला महसूस करता है और नतीजा होता है आत्महत्या। इंटरनेट और मोबाइल के कारण लोगों के भरोसा करने की क्षमता पर भी प्रभाव पड़ा है, इसलिए छोटी-छोटी सी बात पर गलतफहमियां पैदा हो जाती हैं। ALSO READ: इस एक सब्जी से बॉडी को मिलेगा प्रोटीन, कैल्शियम भी भरपूर जान पर मंडराता नशे का खतरा जेपी अस्पताल में नि:शुल्क सेवाएं दे रहे सॉइकोलॉजिस्ट अरविंद घोष कहते हैं कि नशे का बढ़ता प्रभाव आत्महत्या का प्रतिशत बढ़ा रहा है। अब तक नशे में धुत होकर दुर्घटनाएं होती थीं लेकिन नशे का दूसरा प्रभाव यह है कि व्यक्ति के सोचने की क्षमता को प्रभावित हो रही है। शराब, सिगरेट और ड्रग्स का लगातार सेवन रक्तधमनियों को प्रभावित करता है। जिससे कुछ समय के लिए व्यक्ति के सोचने की क्षमता खत्म हो जाती है। यह स्थिति ड्रग एडिक्ट व्यक्ति को शांति की अवस्था में पहुंचा देती है लेकिन नशे का असर खत्म होते ही कई गुना उत्तेजना बढ़ जाती है। आत्महत्या भी इसी उत्तेजना का परिणाम है। ALSO READ: MP के इन रास्तों पर थोड़ा संभलकर, यहां दिनदहाड़े होती है लूट आत्महत्या कराता पैसा युवा चेतना मंच की संचालक और समाजसेवी राधिका गुप्ता कहतीं हैं कि एनजीओ लंबे समय से ऐसे युवाओं के लिए काम कर रहे हैं जो आत्महत्या करना चाहते हैं। जब हमने इनसे बात की तो किसी ने परिवार से मिल रहे दबाव की बात कही तो किसी ने पढ़ाई का प्रेशर। लेकिन इन सबका संबंध आर्थिक सम्पन्नता से है। युवाओं में कम समय में ज्यादा पैसा कमाने की चाह या पैसे कमी से उपजा तनाव आत्महत्या के लिए प्रेरित करता है। पैसे को जीवन से ज्यादा महत्व देने वाले युवा या तो गलत रास्तों पर निकल जाते हैं या तनावग्रस्त होकर जीवन समाप्त कर लेते हैं। टूटता सामाजिक तानाबाना लाइफलाइन फाउंडेशन की ओनर और यूथ साइकोलॉजिस्ट रूहाना रिजवी कहतीं हैं पहले संयुक्त परिवार टूटकर एकल हो गए और फिर परिवार में एक बच्चे का चलन। इतने के बाद उस एक बच्चे को भी समय नहीं दे पाना, यह सभी कारण लोगों के जीवन को एकाकी करते जा रहे हैं। खासतौर पर युवा इस दूरी से ज्यादा प्रभावित हैं। ऐसे में वे खुलकर किसी से अपनी तकलीफ नहीं कहते और अंदर ही अंदर घुटन महसूस करते हैं। ALSO READ: 8 नवंबर को दो घंटे में बिक गया था 300 किलो सोना, अब इन्हें मिल रहे नोटिस ये कदम लौटा सकते हैं जीवन – परिवार और अच्छे दोस्तों की संगत मानसिक तनाव को खत्म करने में सबसे कारगर है। इसलिए ज्यादा से ज्यादा वक्त अपनों के बीच बिताएं – शहरी दिनचर्या से समय निकाल कर कुछ वक्त खुद को दें। जैसे आउटिंग या पिकनिक पर जाना, सत्संग और कल्चर प्रोग्राम का हिस्सा बनना। – सोशल मीडिया पर जरूरत से ज्यादा निर्भर होने की बजाए लोगों से सीधे मेलजोल बढ़ाएं। – ऐसे लोगो की संगत में रहें जो सकारात्मक बातें करें अथवा आपको ऊर्जा से भर दें। – सामाजिक कार्याे में बढ़-चढ़कर हिस्सा लें। समाजसेवा करना जैसे अनाथ आश्रम, वृद्धाश्रम अथवा अस्पताल में मरीजों की सेवा के लिए समय निकालें।