भोपाल

दुनिया का सबसे बड़ा सर्च इंजन बता रहा सिर्फ MPPSC की खामियां

हमारे आयोग का दुश्मन बना गूगल…

भोपालJun 27, 2022 / 11:04 am

दीपेश तिवारी

भोपाल@रूपेश मिश्रा

मप्र लोक सेवा आयोग (एमपी-पीएससी) से युवाओं का भरोसा डगमगाता रहा है। बार-बार प्रश्न-पत्रों गलतियां, देश विरोधी सवाल, समाज विशेष के लिए अपमानजनक कथन ने दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल पर भी बदनाम कर रखा है। नकारात्मक खबरों को लेकर एमपी-पीएससी गूगल पर ट्रेंड कर रहा है।

यह सवाल खड़े कर रहा है 1 साल में 200 प्रश्न के एक भी पेपर सही ढंग से क्यों नहीं बन सका। इतना ही नहीं, फॉर्म भरते समय अभ्यर्थी की गलती पैसे देकर सुधारे जाते हैं। जब आयोग से गलती होती है तो आपत्ति व प्रमाण देने भी अभ्यर्थियों को पैसे देने पड़ रहे हैं।

2019-20 का रिजल्ट अटका, 2021 का पता नहीं
अभ्यर्थी प्रदीप गुप्ता का कहना है कि 2019-20 के अंतिम परीक्षा परिणाम अभी तक जारी नहीं हुए हैं। 2021 की परीक्षा का क्या भविष्य होगा, यह भी संदेह के दायरे में है।

2019 से पहले यह था नियम
2019 से पहले प्रश्न के उत्तर के लिए एक ही विकल्प को सही माना जाता था। ऐसा न होने पर प्रश्न हटाया जाता था। अब दो या तीन उत्तर सही माने जा सकते हैं। 2015, 2017 और 2018 में हुई प्रारंभिक परीक्षाओं में कई प्रश्नों के उत्तर गलत थे। तब आयोग ने बोनस अंक दिए थे।

इस तरह की गलतियां
: 19 जून 2022: प्रारंभिक परीक्षा में देश की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ कश्मीर से जुड़ा प्रश्न पूछा।

: 2021: प्रथम प्रश्न-पत्र में भारत शासन अधिनियम 1935 एमपी के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे, आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22, राज्य संविधान सभा, वर्चुअल की बोर्ड, फॉस्फेट परीक्षण से जुड़े विवादित प्रश्न पूछे।

: 12 जनवरी 2020: प्रारंभिक परीक्षा में भील समाज के बारे में अपमानजनक कथन व प्रश्न पूछे गए। तब प्रश्न बनाने वाले पर एफआइआर भी हुई थी।

खास-बातचीत : डॉ. राकेश लाल मेहरा, चेयरमैन, एमपी-पीएससी
सवाल-गलतियां क्यों होती है?

जवाब- आयोग के साथ गोपनीयता रहती है। पेपर सेटर पेपर को सीधे प्रेस भेजते हैं। कई बार विवाद हुआ है। पेपर सेटर पर कार्रवाई कर चुके हैं। कई बार एक प्रश्न के अलग-अलग पुस्तकों में संदर्भ अलग होते हैं। अभ्यर्थियों को आपत्ति दर्ज कराने का समय देते हैं।
सवाल- अब सवाल क्यों निरस्त नहीं होते?

जवाब- निरस्त करते हैं। एक्सपर्ट कमेटी संदर्भों से मिलान कर निरस्त करती है।

सवाल-आयोग से अभ्यर्थियों का भरोसा डगमगा रहा है?

जवाब- आयोग विशेषज्ञ को भरोसे पर काम देता है। अध्यक्ष पहले पेपर देख लें तो गोपनीयता भंग होगी। पेपर आउट हो जाएगा। अब तक ऐसा तो नहीं हुआ।
कुछ सालों से अनुभवहीन पेपर सेटर के कारण आयोग की विश्वसनीयता कम हो रही है। पहले विशेषज्ञों से प्रश्न बनाए जाते थे।

– अनिल शर्मा, विशेषज्ञ, प्रतियोगी परीक्षा, इंदौर

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