भोपाल

विश्व पर्यावरण दिवस: आदतों में छोटे-छोटे बदलाव कर आप भी कर सकते हैं पर्यावरण सुरक्षा में मदद

आदतों में छोटे-छोटे बदलाव लाकर आप भी बन सकते हैं एनवायरमेंट सेवियर…

भोपालJun 05, 2018 / 12:16 pm

दीपेश तिवारी

विश्व पर्यावरण दिवस: आदतों में छोटे-छोटे बदलाव कर आप भी कर सकते हैं पर्यावरण सुरक्षा में मदद

भोपाल। सारी दुनिया में 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। आधुनिक युग में वायु प्रदूषण, जल का प्रदूषण, मिट्टी का प्रदूषण, तापीय प्रदूषण, विकरणीय प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण, समुद्रीय प्रदूषण, रेडियोधर्मी प्रदूषण, नगरीय प्रदूषण, प्रदूषित नदियां और जलवायु बदलाव के साथ ही ग्लोबल वार्मिंग के खतरे लगातार दस्तक दे रहे हैं।

ऐसी हालत में इतिहास की चेतावनी ही पर्यावरण दिवस का सन्देश लगती है। इसी के चलते आज यानि 5 जून को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल सहित प्रदेश में भी पर्यावरण दिवस मनाया जाएगा। साथ ही इस दौरान जगह जगह कार्यक्रम भी होंगे।

जानकारों का मानना है कि पर्यावरण आज जिस दौर से गुजर रहा है या इसकी जो हालत है ये किसी से छुपी नहीं है। लगातार बढ़ रहे इस संकट की स्थिति किसी एक दिन का नतीजा नहीं है। जाहिर है ऐसे में इसमें सुधार भी एक दिन में नहीं होगा। इसी के चलते कुछ भोपालाइट्स ने पर्यावरण को बचाने की दिशा में अपनी कोशिशें शुरू की हैं।

कोई कागज बचाकर तो कोई पॉलीथीन का विकल्प तैयार कर अपनी कोशिशों को अंजाम दे रहा है। लेकिन पर्यावरण की हालत को देखते हुए जरूरत है कि हर कोई इस काम में अपनी हिस्सेदारी निभाए। वल्र्ड एनवायरनमेंट डे पर एक बार फिर लंबे अर्से से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की भरपाई एक दिन में करने की कोशिश की जाएगी।

इसी के चलते सोशल साइट्स पर तरह-तरह के संदेश शेयर किए जाएंगे। हालांकि, इन हवाई वादों के बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो चुपचाप कुदरत के जख्मों पर मरहम लगाने का काम कर रहे हैं। इस वल्र्ड एनवायरनमेंट डे के मौके पर हम कुछ ऐसे ही लोगों से आपको रूबरू करा रहे हैं।

घर में पॉलीथीन बिल्कुल बैन…
एक स्टडी के मुताबिक साल भर में एक शख्स 500 यूनिट प्लास्टिक आइटम यूज करता है। इसमें पॉलीथिन, डिस्पोजल कप, स्पून से लेकर हर चीज शामिल है।

मैं अपने घर की बात करूं तो करीब डेढ़ साल से हमारे घर में पॉलीथीन बिल्कुल बैन है। हालांकि घर में जो पुरानी पॉलीथीन है उसे हम री-यूज करते हैं। बाजार से सामान लाने के लिए कपड़े और जूट का बैग यूज करते हैं। मैंने 2017 में हुए मिस अर्थ कॉम्पीटिशन में वल्र्ड लेवल पर इंडिया को रिप्रेंट किया था।

जिसके बाद से जिम्मेदारियां और भी बढ़ गईं। मैं अब स्टील के स्ट्रॉ का यूज करती हूं। जब भी कुछ खरीदती हूं तो स्पेशली बोलती उपर लगे प्लास्टिक कप और स्ट्रा के लिए मना करती हूं। मैं बैम्बू ब्रश का यूज करती हूं।

स्टूडेंट रागिनी प्रसाद कहतीं हैं कि मैं एनवायरमेंट को लेकर शुरूआत से ही अवेयर हूं लेकिन एक बार जब मैंने अखबार में आर्टिकल पढ़ा कि कागज के कारण पेड़ों को काटा जाता है। उस दिन से मैंने अनावश्यक कागज का उपयोग करना बंद कर दिया।

मैं क्रेडिट या डेबिट कार्ड से पेमेंट करते वक्त पे स्लिप नहीं लेती हूं और ना ही ट्रैवल के दौरान ई-टिकट का प्रिंट आउट कैरी करती हूं। मैं यह जानती हूं कि मेरी इन छोटी-छोटी आदतों से पर्यावरण संरक्षण लार्ज स्केल पर नहीं होगा लेकिन जिस दिन देश का हर व्यक्ति यह करने लगेगा उस दिन हमारी यही छोटी आदत बड़ा प्रभाव डालेगी।

रीडर्स पार्क 2 में पौधारोपण आज :
वहीं विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर भोपाल रनर्स की ओर से बागबान इनिशिएटिव लिया गया है। इसके तहत संस्था द्वारा बेकार बंद पड़े पार्कों को इस्तेमाल योग्य बनाने का कार्य किया जा रहा है। इसके तहत पिछले साल स्वामी विवेकानंद लाइब्रेरी के पास बने पार्क में पौधरोपण किया गया था और उसे पहला रिडर्स पार्क बनाया गया था।

इस मंगलवार यह अभियान पारुल हॉस्पिटल के नजदीक पार्क में चलाया जाएगा जिसे रीडर्स पार्क 2 नाम दिया जाएगा। इस मौके पर डिवीजनल कमिश्नर आजातशत्रु श्रीवास्तव बतौर मुख्य अतिथि मौजूद रहेंगे। वहीं बोंसाई और पर्यावरण विशेषज्ञ ममता मिश्रा भी उपस्थित रहेंगी। कार्यक्रम शाम 5.30 बजे शुरू होगा।


बचपन से गाडर्निंग का शौक…
गाडर्निंग का शौक तो बचपन से ही है लेकिन प्लांट्स गिफ्ट करने का आइडिया वर्ष 2013 में आया। मैं बच्चों के पास मुम्बई में थी, उन्होंने मेरे बर्थडे पर मुझे एक पौधा गिफ्ट किया। यह गिफ्ट मुझे बहुत पसंद आया, इसके बाद मैंने तय किया कि मैं किसी भी इवेंट में जाऊंगी तो बतौर गिफ्ट प्लांट्स जरूर दूंगी।

World Environment Day 2018-02

यह मैंने उद्देश्य बना लिया, इसके जरिए मेरा संदेश है कि सोसाइटी में ग्रीन कल्चर डेवलप हो। हम लोगों को गिफ्ट देते हैं तो वो किसी वॉर्डरॉब में डंप हो जाता है लेकिन जब हम प्लांट देते हैं तो वो घर की ब्यूटी को बढ़ाने के साथ-साथ अच्छा वातावरण उपलब्ध कराते हैं। 2004 में बोनसाई क्लब ज्वाइन किया था। 2012 से 2016 तक मैं बोनसाई क्लब की प्रेसिडेंट रही। वर्ष 2015 में हमने बोनसाई कवेंशन किया था, इस दौरान हमने देखा कि बहुत सारे लोगों में यह हैबिट डेवलप हुई है।


स्वच्छता में दूसरा स्थान गर्व की बात…
भोपाल को स्वच्छता में दूसरा स्थान मिला है। गर्व की बात है लेकिन शहर को साफ रखने या इसके पर्यावरण को सुरक्षित रखने की पूरी जिम्मेदारी नगर निगम या सरकारी तंत्र की ही नहीं है। इसके लिए आमजन का सहयोग भी जरूरी है।

स्वच्छता अभियान की शुरूआत में ही जब कचरा सेग्रिगेशन का कॉन्सेप्ट आया तो हमने अपने घर में दो डस्टबिन रखना शुरू कर दिए।

World Environment Day 2018-03

एक में गीला कचरा और दूसरे में सूखा कचरा रखते थे। बाद में हरे और नीले कलर के डस्टबिन ले आए। मेरा मानना है शुरुआत घर से होगी तभी शहर और उसका पर्यावरण सुरक्षित होगा। गीला और सूखा कचरा अलग-अलग करके देना हर नागरिक को अपनी जिम्मेदारी माननी चाहिए। वहीं डोर टू डोर कलेक्शन करने वालों को अब सेनेटरी नैपकिन भी कचरे से अलग दिया जाना चाहिए।


जानिये पेड़ों की कटाई का शहर पर क्या पड़ा रहा असर:
भोपाल शहर से करीब 30 किमी दूर कोलार डैम और रातापानी अभयारण्य के बीच पिछले दिनां 700 हैक्टेयर का हरा-भरा जंगल साफ कर दिया गया है। राज्य वन विकास निगम ने जनवरी से लेकर मार्च तक जंगल सुधार के नाम पर यहां करीब सवा लाख पेड़ों को बीमार बताकर काट दिया। अब मगरपाट और सारस गांव के बीच इस इलाके में सिर्फ पेड़ों के ठूंठ नजर आते हैं।

निगम ने 2012 में वन व पर्यावरण मंत्रालय से खराब जंगल को सुधारने का एक्शन प्लान मंजूर कराया था। तभी से हर साल 700 हैक्टेयर में लगे पेड़ काटे जा रहे हैं। पांच साल में यहां 3500 हैक्टेयर में जंगल कटे हैं। 12 जनवरी 2018 से जंगल का सफाया इसी कड़ी में किया गया। इस कटाई का विपरीत असर भोपाल व आसपास की आबोहवा व मौसम पर हो रहा है। अब निगम बारिश में यहां नए पौधरोपण की बात कह रहा है।

कोलार डेम और रातापानी अभयारण्य के बीच कभी सागौन, धावड़ा, धिरिया, सेमल, महुआ, कुसुम, तेंदू, अचार का घना जंगल रहा है। यहां सामने आया कि मगरपाट गांव से आगे सारस गांव के पहले सड़क के दोनों ओर लगे 1 लाख से भी ज्यादा पेड़ों को काटा गया है।

World Environment Day 2018-04

यह पेड़ कई वर्ष पुराने थे, और इनमें 25 हजार से अधिक पेड़ सागौन के भी थे। इन पेड़ों से निगम को कुल 12 हजार 73 घनमीटर लकड़ी मिली है, जो काटे गए पेड़ों के अनुपात में काफी कम है। यह भी सामने आया है कि खराब जंगल को सुधारने के नाम पर काटे गए अधिकांश पेड़ स्वस्थ थे।

आशंका: लकड़ी की बड़ी हेराफेरी!…
कोलार डैम से सटी वीरपुरा रेंज के सारस-मगरपाट गांव के पास 700 हैक्टेयर का हरा-भरा जंगल साफ कर दिया गया है। यह कारनामा जंगल की सेहत सुधारने के नाम पर मप्र राज्य वन विकास निगम ने इसी साल जनवरी से मार्च के बीच किया। काटे गए पेड़ों की तादाद एक लाख से भी अधिक है।

फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार दो साल में भोपाल व आसपास 39 वर्ग किमी जंगल घटा। वहीं भोपाल में 9 व सीहोर में 30 वर्ग किमी जंगल कम हुआ ।

वहीं जानकारों का कहना है कि सारस और मगरपाट गांव के नजदीक जंगल काटना नियम विरुद्ध है। यह टाइगर मूवमेंट और नर्मदा का कैचमेंट एरिया है। यह जंगल करीब 50 से 60 साल पुराना है। निगम ट्रीटमेंट के नाम पर पेड़ काटकर नए पेड़ लगाएगा, अगर यह सफल होता है तो इस प्लांटेशन को वर्तमान पेड़ों की स्थिति में आने में करीब 50 साल लगेंगे।

ये हुआ असर…
– दो डिग्री बढ़ा तापमान
– जिस इलाके में इन पेड़ोें की सफाई हुई है, वह नर्मदा का कैचमेंट एरिया है
– दिसंबर 2010 की सैटेलाइट इमेज में हरा-भरा जंगल साफ दिख रहा है। अब दूर-दूर तक पेड़ाें की जगह सिर्फ ठूंठ नजर आते हैं।
वहीं जानकारों का कहना है कि 10 साल में भोपाल, सीहोर, विदिशा, रायसेन में गर्मी बढ़ी औसत अधिकतम तापमान में दो डिग्री का उछाल आया है।

टाइगर कॉरिडोर : सारस-मगरपाट रातापानी अभयारण्य के पास वनग्राम हैं। यहां बाघों का मूवमेंट है। बाघ यहीं से होकर कोलार डेम में पानी पीने के लिए आते हैं। ये गांव टाइगर कॉरिडोर का हिस्सा है। कुल 10 गांव हैं। सभी गांव वीरपुर रेंज में हैं। जानकारों के मुताबिक पेड़ों की यह कटाई आगे बाघों के विचरण में चुनौती खड़ी करेगी।

इधर, सागौन के पेड़ में तक हेराफेरी
भोपाल के आसपास हुई जंगल कटाई में बड़े पैमाने पर लकड़ी की हेराफेरी की भी आशंका है। 1 लाख 14 हजार पेड़ों में से 28 हजार पेड़ सिर्फ सागौन के थे। निगम को इनसे सिर्फ 12 हजार घन मीटर लकड़ी मिली। एक पेड़ से औसत 0.35 घन मीटर। जबकि एक पेड़ से करीब दो घन मीटर लकड़ी मिलनी चाहिए।

वहीं सूत्रों के अनुसार वन विकास निगम के अधिकारियों का कहना है कि काटे गए पेड़ डेढ़ फुट की चौड़ाई और अधिकतम 14 फीट की ऊंचाई वाले थे। सामान्यत: सागौन का एक पेड़ 60 से 80 साल में 2 फीट चौड़ा और 14 फीट ऊंचा हो पाता है। औसतन सागौन के प्रत्येक पेड़ से निगम को 0.35 घन मीटर लकड़ी मिली है।

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