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एम्स में जांच के बाद बच्ची के दिल में छेद होने की पुष्टि हुई थी। मेडिकल साइंस में इसे ओस्टियम सेकुंडम एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट ओएसएएसडी कहते हैं। इस समस्या में पहले ओपन हार्ट सर्जरी ही विकल्प था। अब बच्ची के मामले में आधुनिक डिवाइस क्लोजर तकनीक को अपनाया गया। इसमें पैर के रास्ते एक छोटी सी डिवाइस छेद तक पहुंचाई जाती है।
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एंजियोग्राफी की तरह होती है यह प्रक्रिया
इस प्रक्रिया में सबसे पहले मरीज को लोकल एनेस्थीसिया दिया गया। इसके बाद रोगी की जांघ के पास से कैथेटर और तार डालकर समस्या की पूरी पड़ताल की गई। इसी ट्यूब के जरिए डिवाइस को उस स्थान तक पहुंचाया जहां छेद था। इसके बाद डिवाइस ने खुद ऊपरी और नीचे दोनों तरफ के हिस्से को फैलाना शुरू किया। इससे छेद पूरी तरह से बंद हो गया। एम्स के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. किसलय श्रीवास्तव ने बताया कि डिवाइस सही जगह इंप्लांट हो गई है। मरीज पूरी तरह से स्वस्थ है। बता दें, एम्स में पहली बार यह प्रक्रिया की गई।
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दिल का छेद गंभीर समस्या
दिल के छेद यानी ओएसएएसडी एक गंभीर समस्या है। जिससे दोनों तरफ से रक्त का मिश्रण होता है। इससे ब्लड सही तरह से साफ नहीं होता है। साथ साथ हृदय की कार्य क्षमता भी कम हो जाती है। कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. भूषण शाह. डॉ. मधुर जैन, डॉ. किसलय श्रीवास्तव के साथ एनेस्थीसिया के डॉ. वैशाली वेंडेस्कर, डॉ. हरीश कुमार और डॉ. सीमा, डॉ आशिमा ने यह सफल इलाज किया।
दिल में छेद का कारण
– जन्मजात विकृति
– गर्भवती को रुबैला खसरा होना
– कुछ दवाओं का दुष्प्रभाव
– गर्भवती महिला द्वारा शराब व धूम्रपान का सेवन