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तख्त पर एक करवट सोते थे आचार्य, दवा तक का कर दिया था त्याग, जानिए कैसे बीता बचपन

त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्ति महान संत आचार्य विद्यासागर महाराज शनिवार को ब्रह्मलीन हो गए। आचार्यश्री ने डोंगरगढ़ के चंद्रागिरी तीर्थ में समाधि ली। वर्तमान दौर में हिंदू और जैन धर्म के मूल आचार—विचार बनाए रखने की कोशिश करनेवालों में आचार्य विद्यासागर सर्वप्रमुख थे। वे बालिकाओं के विकास के पक्षधर रहे और इसके लिए संस्कारित तथा आधुनिक स्कूल बनाने की बात कहते रहे।

भोपालFeb 18, 2024 / 10:00 am

deepak deewan

महान संत आचार्य विद्यासागर महाराज

त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्ति महान संत आचार्य विद्यासागर महाराज शनिवार को ब्रह्मलीन हो गए। आचार्यश्री ने डोंगरगढ़ के चंद्रागिरी तीर्थ में समाधि ली। वर्तमान दौर में हिंदू और जैन धर्म के मूल आचार—विचार बनाए रखने की कोशिश करनेवालों में आचार्य विद्यासागर सर्वप्रमुख थे। वे बालिकाओं के विकास के पक्षधर रहे और इसके लिए संस्कारित तथा आधुनिक स्कूल बनाने की बात कहते रहे।

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उनका जन्म शरद पूर्णिमा के दिन कर्नाटक के बेलगांव जिले के सदलगा में हुआ था। उनकी जन्मभूमि भले ही कर्नाटक थी पर कर्मभूमि वस्तुत: मध्यप्रदेश ही रही। आचार्य विद्यासागर की प्रेरणा से ही एमपी के नेमावर में भव्य जैन मंदिर तैयार हो रहा है।

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आचार्य की जन्म तारीख 10 अक्टूबर 1946 है। उनके पिता का नाम मल्लप्पा और मां का नाम श्रीमंती था। विद्यासागरजी बचपन से ही बेहद शांत थे और उनका मन पूजा—पाठ में ज्यादा लगता था। बचपन में उन्हें कैरम एवं शतरंज का भी शौक था।

महाराज ने महज 22 साल की उम्र में 30 जून 1968 में आचार्य ज्ञानसागर से दीक्षा ले ली थी। 22 नवंबर 1972 को ज्ञानसागरजी द्वारा विद्यासागरजी को आचार्य पद दिया गया।

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आचार्य के दीक्षा लेने के बाद उनके माता—पिता सहित परिवार के सभी लोगों ने भी सन्यास ले लिया था। सिर्फ उनके बड़े भाई ही गृहस्थ रहे। महाराज के भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने तो आचार्य विद्यासागरजी से ही दीक्षा ग्रहण की। उन्हें हिन्दी, मराठी और कन्नड़ के साथ ही संस्कृत और प्राकृत भाषा का विशेष ज्ञान था। सौ से अधिक शोधार्थियों ने उनके जीवन और कार्य पर अध्ययन किया है।

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आचार्य ने हिन्दी और संस्कृत में कई रचनाएं भी की हैं। उनकी काव्य रचना मूक माटी विभिन्न संस्थानों में स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाती है।

आचार्य विद्यासागर का जीवन बेहद अनूठा था। दीक्षा लेने के बाद उन्होंने शक्कर, चटाई, हरी सब्जी, फल, अंग्रेजी दवा के साथ ही थूकने का भी आजीवन त्याग कर दिया था। आचार्य ने दही, मेवा, तेल आदि का भी त्याग कर दिया था।

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वे बिना चादर, गद्दे, तकिए के एक करवट में सोते थे और इसके लिए भी सिर्फ तख्त का उपयोग करते थे। आचार्य सालभर 24 घंटे में एक बार सीमित ग्रास भोजन करते थे। वे केवल अंजुली भर जल पीते थे। उनका कोई बैंक खाता या ट्रस्ट नहीं है। आचार्यश्री अनियत विहार यानि बिना बताए विहार करते थे और प्राय: नदी किनारे या पहाड़ों पर साधना करते रहे।

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आचार्य की ऐसी ख्याति थी कि दुनियाभर के राजनेता उनके मुरीद थे। देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, पीएम नरेंद्र मोदी, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिधिंया सहित अनेक केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और वरिष्ठ राजनेता उनसे आशीर्वाद ले चुके हैं।

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