भोपाल

कैंसर हुआ तो युवक ने आचार्य विद्यासागर को सौंप दी जिंदगी, फिर हुआ चमत्कार…गजब की कहानी

युग दृष्टा संत आचार्य श्रीविद्यासागरजी महाराज ब्रह्म लीन हो गए। रात्रि 2: 30 बजे चंद्रागिरी तीर्थ डोंगरगढ़ में उनकी समाधि हुई। विद्यासागरजी की समाधि की सूचना मिलते ही देश दुनिया में शोक व्याप्त हो गया है। आचार्य विद्यासागरजी सच्चे और महान संत थे। सान्निध्य में आए लोग उनके चमत्कारों की कई कहानियां सुनाते हैं। कुछ ऐसा ही वाकया नरसिंहपुर के नितेंद्र जैन के साथ हुआ था।

भोपालFeb 18, 2024 / 12:31 pm

deepak deewan

आचार्य विद्यासागरजी सच्चे और महान संत थे

युग दृष्टा संत आचार्य श्रीविद्यासागरजी महाराज ब्रह्म लीन हो गए। रात्रि 2: 30 बजे चंद्रागिरी तीर्थ डोंगरगढ़ में उनकी समाधि हुई। विद्यासागरजी की समाधि की सूचना मिलते ही देश दुनिया में शोक व्याप्त हो गया है। आचार्य विद्यासागरजी सच्चे और महान संत थे। सान्निध्य में आए लोग उनके चमत्कारों की कई कहानियां सुनाते हैं। कुछ ऐसा ही वाकया नरसिंहपुर के नितेंद्र जैन के साथ हुआ था।

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नितेंद्र जैन अब मुनि श्री 108 निराश्रव सागर के नाम से जाने जाते हैं। उत्तरप्रदेश के ललितपुर में आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने उन्हें मुनि दीक्षा देकर नितेंद्र जैन की जगह निराश्रव सागर मुनि के नाम से नामांकित किया था।

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ऐसे बदली जिंदगी:
नितेंद्र जैन का जन्म नरसिंहपुर में 28 अप्रैल 1981 को तुलसीराम जैन और प्रेमलता जैन के यहां हुआ था। बचपन से ही धर्म प्रेमी होने के कारण उनकी धार्मिक आस्था बढ़ती गई। 15 जुलाई 2015 को उन्होंने आचार्यश्री से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लिया एवं 1 जुलाई 2016 को गृह त्याग कर मुनि श्री निराश्रव सागरजी सत्संग के सानिध्य में रहे। 28 नवंबर 2018 को ब्रह्मचारी नितेंद्र जैन को आचार्य श्री विद्यासागरजी ने ललितपुर में मुनि की दीक्षा दी और उन्हें नया नाम मुनि निराश्रव सागर दिया गया।

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वर्ष 2005 में नागपुर में इलाज कराने पर पता चला कि उन्हें कैंसर है। परिवार ने नागपुर व मुंबई में इलाज कराया। इस दौरान नरसिंहपुर के दिगंबर जैन मंदिर में आचार्य श्री विद्यासागरजी की परम शिष्या 105 आर्यिका श्री अनंत मति माताजी चातुर्मास के लिए आईं। उन्होंने आचार्यश्री विद्यासागरजी के दर्शन करने व आशीर्वाद लेने की सलाह दी।

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आचार्यश्री ने नितेंद्र जैन को रात्रि में चारों प्रकार के आहार का त्याग करने कहा। नियम का दृढ़ता से पालन के करने के साथ उन्होंने 5 साल के लिए ब्रह्मचर्य व्रत भी लिया। हैरत की बात तो यह है कि इसके बाद जब मुंबई में ऑपरेशन हुआ और एक गांठ निकाली गई तो उसकी जांच में कैंसर का रोग निकला ही नहीं। हर किसी के लिए यह चमत्कार था।

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नितेंद्र जैन ने इस जीवन को बाकायदा आचार्यश्री विद्यासागरजी के चरणों में अर्पित कर दिया। उन्होंने दिगंबरी दीक्षा धारण कर ली और संयम के पथ को धारण कर मुनि निराश्रव सागर बन गए।

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