भोपाल। आज भी गांव ऐसे हैं जहां लड़कियों को बोझ समझा जाता है। लोग उन्हें घर की चार दिवारी के अंदर रखना ही पसंद करते हैं। उन्हें लडक़ों की अपेक्षा कम अहमियत दी जाती है। कुछ ऐसी ही सामाजिक बंदिशों के बीच अपने जुनून और प्रतिभा के बल पर नेशनल एथलीट आशा चौधरी लड़कियों के लिए एक मिसाल बनी है। आशा को गांव के लोग खेलने-कूदने पर ताने मारते थे। भ्रांतियां कसते थे। कहते थे कि लडक़ी होकर तुम लडक़ों के खेल क्यों खेलती हो। दूसरा काम करो। लेकिन इन सब के बीच आशा ने हार नहीं मानी और अपनी जिद और कड़ी मेहनत से प्रदेश की उभरती हुए महिला एथलीट बनी। आशा अभी मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में बने टीटी नगर स्टेडियम में चल रही 56वीं मप्र राज्य स्तरीय एथलीट प्रतियोगिता में हिस्सा लेने आईं हैं। इस दौरान उसने एमपी.पत्रिका.कॉम से अपनी कहानी शेयर की… MUST READ: ये हैं दुनिया की सबसे छोटी लाइब्रेरियन, इनकी सोच आपको भी हिला देगी बड़ी बहन ने बढ़ाया हौसला 24 साल की आशा ने 10 साल की उम्र से ही दौडऩा शुरू कर दिया था। लोहारा गांव के स्कूल मैदान में ही उसने एक एथलीट बनने का सपना बुन लिया था। दिन की कड़ी दोपहरी में नंगे पांव दौड़ती रहती। आशा को अपनी बड़ी बहन कुंता चौधरी का सपोर्ट मिला और उसने कटनी जिले में खेल और पढ़ाई शुरू कर दी। धीरे-धीरे आशा ने अपने फिटेनश और खेल में सुधार किया। ब्लाक स्तर, डिस्ट्रिक्ट और डिवीजन स्तर पर शानदार प्रदर्शन करती गई। आशा के पिता पांडु रंग चौधरी पेशे से किसान हैं। उनकी इच्छा है उनकी बेटी देश का नाम रोशन करे। और उसे सरकारी नौकरी मिले। MUST READ: कहीं देखा है ऐसा जज्बा, 70 की उम्र नेशनल चैंपियन बना ये शख्स पहले ही प्रतियोगिता में जीत लिया था गोल्ड आशा ने ब्लॉक स्तर पर होने वाली एथलीट प्रतियोगिता में ही अपने इरादे जाहिर कर दिए थे। उन्होंने इस 5000 मीटर की दौड़ में गोल्ड जीता था। इसके बाद आशा ने जबलपुर में जिला स्तरीय और संभाग स्तरीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक अपने नाम किए। आशा के प्रदर्शन को देखते हुए 2009 में उसे स्टेट लेवल चैम्पिनशिप में दौडऩे का मौका मिला जहां उसने स्वर्ण जीता। आशा ने इसके बाद नेशनल क्रॉस कंट्री रेस, ऑल इंडिया इंटर कॉलेज, सारनाथ ताज मैराथन में शानदार प्रदर्शन कर चुकी है। इनता नहीं आशा ने मलेशिया में भी अपनी खेल का लौहा मनवा चुकी है। आशा ने कुल 10 स्टेट लेवल चैम्पियनशिप में 5 गोल्ड, 3 रजत और 2 कांस्य पदक जीत चुकी है। वह अभी बेंगलुरु में होने वाले ऑल इंडिया एथलीट चैम्पियन खेलने के लिए तैयारी में जुटी है। MUST READ: 8वीं पास इस हेयर ड्रेसर का सालाना टर्नओवर 2 करोड़ का, बिग बी भी इनके फैन MUST READ: 117 साल की सबसे बुजुर्ग बौनी, इनके बारे में पढ़कर आप हैरान रह जाएंगे कोच ने दिए थे किट के पैसे आशा बताती है कि 2012 में मेरा चयन झपरा में हुई क्रॉस कंट्री मैराथन में हो गया था, लेकिन मेरे पास वहां जाने के लिए और किट खरीदने के लिए पैसे नहीं थे, तब मेरे कोच सीपी दास ने मदद की और कहां तुम जीतकर ही आओगी। मैंने वहां गोल्ड जीता।