बारिश के मौसम ( monsoon ) में भोपाल और आसपास के पहाड़ों पर हरियाली छा जाती है। ऐसे में कई झरने भी बन जाते हैं। कुछ लोग तो पिकनिक स्पॉट्स पर चले जाते हैं, लेकिन कुछ एडवेंचर स्पॉट्स ऐसे हैं जहां सिर्फ ट्रैकिंग के जरिए ही पहुंचा जा सकता है।
यह है ट्रैकिंग स्पॉट्स
भोपाल के 75 किलोमीटर के दायरे में बुदनी, कठौतिया, केरवा डैम, कोलार डैम, हलाली डैम, अमरगढ़ वाटर फॉल, समरधा, गिन्नौरगढ़, चिड़ीखो, चिड़ियाटोल, महादेवपानी और भूतों का मेला ऐसे स्पाट्स हैं, जहां ट्रैकिंग के जरिए ही जाया जाता है। इन लोकेशन पर जाने के लिए यूथ हॉस्टल एसोसिएशन के जरिए ही जाया जा सकता है। एसोसिएशन के सचिव संजय मधुप बताते हैं कि इन ट्रैकिंग स्पॉट्स पर प्रशिक्षित लीडर के नेतृत्व में करीब 50 प्रतिभागियों को ही ले जाया जाता है। प्रतिभागियों में भी सभी लोग मेडिकल फिट होना जरूरी होता है। ट्रैकिंग पर जाने से पहले सभी प्रतिभागियों को बारीकियां समझाई जाती है और एक दूसरे की मदद कैसे करें इसकी भी ट्रेनिंग दी जाती है।
रेकी और रूटमैप होता है तैयार
यूथ होस्टल एसोसिएशन के सीनियर ट्रैकर मानव अग्निहोत्री बताते हैं कि किसी भी ट्रैक पर जाने से पहले रेकी कर लोकेशन का जायजा लिया जाता है और रूट मैप तैयार किया जाता है। इसके बाद सभी के साथ मिलकर इसका रूट डिजाइन किया जाता है। इसके बाद खतरनाक ट्रैक को ऐसे डिजाइन किया जाता है कि सभी आयु वर्ग के लोग इसे आसानी से कर लें।
सबसे रोमांचक है मिडघाट ट्रैक
मध्यप्रदेश की विंध्याचल पर्वत माला में आते हैं बुदनी के पहाड़। यह भोपाल से करीब 65 किमी दूर है। घना जंगल होने के कारण यहां हरियाली तो है ही और जंगली जानवर भी है। यहां जाने के लिए यूथ होस्टल की तरफ से हबीबगंज स्टेशन से ट्रेन द्वारा पहुंचा जा सकता है। मिडघाट स्टेशन पर उतरने के बाद करीब 800 फीट ऊंचे पहाड़ पर चढ़ाई कराई जाती है। ऊपर पहुंचने के बाद प्राकृतिक झरना देखने को मिलता है। साथ ही बाबा मृगेंद्र नाथ का छोटा सा मंदिर है जो कई किलोमीटर दूर से ही नजर आ जाता है। नर्मदा का विहंगम दृश्य नजर आता है। यहां से नर्मदा नदी को आप करीब 40 किलोमीटर दूर तक अपना आंचल फैलाए देख सकते हैं। इसी पहाड़ी से रेलवे ट्रेक का सर्पिलाकार रास्ता अपने आप में अनोखा दृश्य निर्मित करता है। यह मंदिर बुदनी रेलवे स्टेशन से नजर आ जाता है।
सावधानीः अनुभवी ट्रैकर्स के साथ ही जाना यहां उचित है। अकेले अथवा परिवार के साथ कभी भी अनजान स्थान पर नहीं जाना चाहिए। क्योंकि यह पहाड़ रातापानी सेंचुरी के भी करीब आने से यहां वन्य प्राणी हो सकते हैं, जो आपको नुकसान पहुंचा सकते हैं।
B-फॉल से कम नहीं है A-फॉल
भोपाल से 55 किमी दूर रायसेन जिले में हैं अमरगढ़ वाटर फॉल, जिसे लोग ए-फॉल के नाम से भी जानते हैं। यह जगह शाहगंज के पास खटपुरा गांव से 5 किमी दूर पहाड़ों के बीच है। इस स्थान पर दो झरने हैं, जो बारिश के दौरान ही बनते हैं। इनका नजारा लेने वाले लोग इसकी तुलना पचमढ़ी के बी-फॉल से करते हैं।
सावधानीः इस झरने का दीदार करने के लिए ट्रैकिंग के जरिए ही पहुंचा जा सकता है, क्योंकि यहां दो झरने देखने को मिलते हैं। यह इलाका भी रातापानी सेंचुरी के करीब होने के कारण अक्सर वन्यप्राणियों का खतरा लगा रहता है। यहां स्थानीय गांव वालों की मदद से ही पहुंचा जा सकता है। ध्यान रखें यह आम लोगों की पहुंच से दूर है।
गौंड राजा का किला
रातापानी सेंचुरी के बीच है गिन्नौरगढ़ किला। यह गौंड राजा का किला है। चारों तरफ जंगल और बीच में पहाड़ी पर स्थित यह किला रहस्यमय है। पहाड़ी रास्तों से जाने पर ही दुर्लभ और बेशकीमती प्राचीन प्रतिमाओं को देखा जा सकता है। यह स्थान भी भोपाल से 55 किलोमीटर दूर स्थित देलाबाड़ी में है। यहां फारेस्ट विभाग की एंट्री फीस देकर भीतर जाया जाता है। हालांकि यह किला बारिश में बंद कर दिया जाता है। यह 2 अक्टूबर के बाद ही खोला जाता है।
रिवर क्रासिंग के लिए खास है समरधा
समरधा ट्रैक भोपाल से 30 किमी दूर समरधा के जंगल में है। यहां पर ट्रैक करने के लिए फारेस्ट गेस्ट हाउस से फीस जमा करने के बाद ही पहुंचा जा सकता है। यहां भी दुर्गम रास्ते और घने जंगलों में वन्य जीव रहते हैं। ट्रैकिंग के साथ ही यहां बरसाती नदियों को भी पार करना रोमांचकारी होता है। यहीं से महादेवपानी के लिए भी रास्ता है। दस किमी का ट्रैक पूरा करने के बाद रायसेन जिले का महादेवपानी झरना भी आप देख सकते हैं।
सावधानीः यह स्थान फॉरेस्ट की समरधा रेंज में आता है और वन्य प्राणियों से खतरा हो सकता है। इसलिए यहां ग्रुप में ही जाना चाहिए।
एडवेंचर और मस्ती के लिए है कोलार ट्रैक
यह ट्रैक भी राजधानीवासियों की पसंद बना हुआ है। कोलार डैम से पहले जंगलों में प्रवेश करने के बाद बरसाती झरने का लुत्फ लेते हुए जाने का रोमांच यहां मिलता है। खासबात यह है कि इस ट्रैक पर बहते पानी के रास्ते से ही जाना पड़ता है। इसी स्थान पर कई जगह रीवर क्रॉसिंग के भी स्पॉट हैं। जुलाई, अगस्त और सितंबर में यहां कई संगठन अपनी एक्टीविटी करते हैं।
सालभर बहता है कैरीमहादेव का झरना
भोपाल से 25 किलोमीटर दूर है कैरी महादेव। यहां जाने के लिए कोलार रोड से झिरी गांव तक पहुंचते हैं। इसके बाद 10 किलोमीटर लंबा ट्रैक पूरा करने के बाद कैरी महादेव पहुंचा जा सकता है। इस स्थान पर सालभर लगातार पानी की धार गिरती रहती है। किंवदंती है कि यह पानी महादेव का जटा में से आ रहा है। तीनों ओर से चट्टानों से घिरा महादेव का मंदिर है।
यहां लगता था भूतों का मेला
भोपाल से करीब 50 किलोमीटर दूर है सीहोर जिले का इच्छावर। यहां भूतों का मेला नाम से गांव है। इस गांव से एक नदी के किनारे-किनारे ट्रैक शुरू किया जाता है। करीब 10 किमी चलने के बाद यहां हिमाचल की वादियों जैसा अहसास होता है। पहाड़ों पर खेती कैसे होती है यहां देखा जा सकता है। किंवदंती है कि यहां कभी भूतों का मेला लगता था।
फर्स्टएड किड एवं जरूरी उपकरण का रखें ध्यान
जंगलों और पहाड़ों में ट्रैकिंग के लिए अनुभवी पर्वतारोहियों के साथ जाना चाहिए। क्योंकि ट्रैकिंग करना स्वास्थ्यवर्धक होता है, साथ ही जोखिमभरा भी होता है। ट्रैकिंग पर जाने से पहले फर्स्टएड किट समेत जरूरी उपकरण होना चाहिए।