सन् 1600 से 1715 तक गिन्नौरगढ़ किले पर गोंड राजाओं का आधिपत्य था। तब सीहोर रियासत के राजा कृपाल सिंह सरौतिया की बेटी बचपन से ही कमल की तरह सुंदर थी, इसलिए नाम कमलापति रखा गया। वह अनेक कलाओं में पारंगत होकर सेनापति बनी। रानी कमलापति एक गोंड रानी थीं। गिन्नौरगढ़ के मुखिया निजाम शाह की सात पत्नियां थीं। कमलापति रानी उनमें से एक थीं और वह राजा की सबसे प्रिय रानी थीं।
300 साल पहले हुआ था महल का निर्माण
रानी कमलापति महल का निर्माण लगभग 300 साल पहले हुआ था। इतिहास के जानकारों के मुताबिक रानी कमलापति, निजाम शाह की पत्नी ने इस महल का निर्माण करवाया था। इसी कारण से इसे कमलापति महल के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा, यह महल भोजपाल का महल और जहाज महल के नाम से भी प्रसिद्ध है।
क्यों डुबा था महल
दोस्त मोहम्मद खान रानी कमलापति पर बुरी नजर थी। उन्हें रानी पसंद थी और वह उसे पाना चाहता था। यही कारण था कि रानी के बेटे और दोस्त मोहम्मद खान के बीच युद्ध हुआ। युद्ध में रानी के बेटे नवल शाह की मौत हो गई। जब रानी ने बेटे की मौत का समाचार सुना, तो उन्होंने महल के बांध का सकरा रास्ता खोल दिया, जिससे तालाब का पानी महल में आने लगा। इससे उन्होंने अपने शरीर को दुश्मनों से बचाने की कोशिश की। जल्द ही पूरे महल में पानी भर गया और इमारतें डूबने लगीं। कहा जाता है कि रानी कमलापति ने अपनी आबरू बचाने के लिए जल समाधि ले ली थी। उनका यह कदम उसी जौहर परंपरा का पालन था, जिसमें हमारी नारी शक्ति ने अदम्य साहस के साथ अपनी अस्मिता, धर्म और संस्कृति को बचाया।
एक नजर
1722 में निर्मित यह महल गिन्नौरगढ़ के शासक निज़ाम शाह की पत्नी रानी कमलापति के नाम पर रखा गया है।
इस महल को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों के रूप में नामित किया है।
हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर 17वीं सदी की रानी कमलापति के नाम कर दिया है।