जब दोनों हाथों में तलवार लिए रस्सी दांतों में दबाए युद्ध कर रही थीं रानी
बहुत कम ही भारतीय इस बात को जानते होंगे कि अंग्रेज़ भी रानी लक्ष्मीबाई की बहादुरी के कायल थे। 1857 की क्रांति के वक्त अंग्रेज, लक्ष्मीबाई (Rani Laxmi Bai Photo, biography, in History in Hindi) के विरुद्ध खड़े जरूर थे लेकिन, वो झांसी की रानी की बहादुरी, चतुराई के कायल थे। उनका व्यक्तित्व बहुत ही आकर्षक था और बहुत से अंग्रेज अफसर उनके व्यक्तित्व से भी प्रभावित थे। उनकी बहादुरी का अंदाजा लॉर्ड कैनिंग (lord canning) के दस्तावेज से ही लगाया जा सकता है, जिसमें लॉर्ड कैनिंग ने लिखा है, रानी (Rani Laxmi Bai Photo, biography, in History in Hindi) दोनों हाथों में तलवार लिए, घोड़े की रस्सी दांतों में दबाए युद्ध कर रही थीं। एक सिपाही ने उन्हें पीछे से गोली मारी। रानी (Rani Laxmi Bai Photo, biography, in History in Hindi) ने घूमकर उस पर गोली चलाई लेकिन, वो बच गया और उसने (Rani Laxmi Bai Photo, biography, in History in Hindi) अपनी तलवार रानी के सिर पर मारी और रानी वीरगति को प्राप्त हुईं। यही नहीं झांसी की रानी के सम्मान में भारत के पहले वॉयसरॉय लॉर्ड कैनिंग के एक निजी दस्तावेज में लिखा है…‘वो (Rani Laxmi Bai Photo, biography, in History in Hindi) पुरुषों की तरह कपड़े पहनती थी और उन्हीं की तरह घुड़सवारी करती थीं। बड़ी ख़ूबसूरत आंखें और काया थी उनकी।
विवाह के बाद मनु बनी लक्ष्मीबाई (Rani Laxmi Bai Photo, biography, in History in Hindi)
1842 में मनु (Rani Laxmi Bai Photo, biography, in History in Hindi) का विवाह, झांसी के राजा गंगाधर राव से हुआ। अपने ससुराल आकर वह मनु से रानी लक्ष्मीबाई बन गईं। 1851 में रानी (Rani Laxmi Bai Photo, biography, in History in Hindi) ने पुत्र दामोदर राव को जन्म दिया। लेकिन उनकी किस्मत में बेटे का साथ ज्यादा लंबा नहीं था, यही कारण रहा कि जन्म के 4 महीने बाद ही दामोदर राव ने दुनिया को अलविदा कह दिया। पुत्र की मृत्यु के बाद 1853 में गंगाधर राव ने अपने दूर के भाई, आनंद राव को गोद लेने का निर्णय लिया, जिन्हें वो दामोदर राव ही बुलाते थे। लेकिन फिर ऐसा न हो सका। बाद में एक गोद लिए बेटे को उन्होंने दामोदर राव का नाम दिया और अपना पुत्र स्वीकार किया।
अब शुरू होनी थी 1857 की लड़ाई
1857 की क्रांति 31 मई को शुरू होनी थी। लेकिन समय से 3 हफ्ते पहले 10 मई को ही कोलकाता में विद्रोह शुरू हो गया। 7 जून को क्रांतिकारी झांसी पहुंचे और लक्ष्मीबाई (Rani Laxmi Bai Photo, biography, in History in Hindi) से 3 लाख रुपए मांगे, जो रानी ने उन्हें दे दिए। अंग्रेज़ों ने रानी को पत्र भेजकर इतनी बड़ी राशि देने का कारण पूछा जिसके जवाब में रानी ने कहा कि ऐसा उन्होंने सबकी सुरक्षा के लिए किया है. इतिहासकारों का कहना है कि रानी (Rani Laxmi Bai Photo, biography, in History in Hindi) ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत ऐसा किया था। विद्रोहियों (Rani Laxmi Bai Photo, biography, in History in Hindi) के भय से ईस्ट इंडिया कंपनी के लोगों ने झांसी छोड़ दिया और झांसी फिर से रानी के अधीन हो गई। इस सबके बीच महाराष्ट्र के सदाशिव राव ने झांसी से 30 मील दूर कथूरा किले पर कब्ज़ा कर लिया और आस-पास के गांवों को अपनी संपत्ति घोषित कर दिया। कुछ सरदार रानी (Rani Laxmi Bai Photo, biography, in History in Hindi) पर प्रश्न उठाने लगे। विद्रोह से पहले ही रानी (Rani Laxmi Bai Photo, biography, in History in Hindi) ने सदाशिव को युद्ध में हराया।
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अंग्रेज़ों से युद्ध कर हो गई मर्दानी (Rani Laxmi Bai Photo, biography, in History in Hindi)
जनवरी 1858 में (amilton) एमिल्टन ने अंग्रेज सिपाहियों के साथ झांसी (Rani Laxmi Bai Photo, biography, in History in Hindi) का रुख किया। अंग्रेज, रानी (Rani Laxmi Bai Photo, biography, in History in Hindi) को आत्मसमर्पण के लिए कह रहे थे, लेकिन रानी इसके लिए तैयार नहीं हुईं। 23 मार्च 1858 को अंग्रेज फौजों ने झांसी पर धावा बोल दिया। 30 मार्च को बमबारी कर अंग्रेज किले में प्रवेश करने में सफल हो गए। तभी तांत्या टोपे 20000 विद्रोहियों को लेकर वहां पहुंचे और अंग्रेज़ों से भीषण युद्ध होने लगा। 3 अप्रैल तक युद्ध चला और फिर अंग्रेज़ झांसी में प्रवेश करने में सफल हो गए। युद्ध की हवा को भांपते हुए रानी (Rani Laxmi Bai Photo, biography, in History in Hindi) ने आखिरी उम्मीद दामोदर राव को अपनी पीठ पर बांधा और छोटी सी सेना लेकर झांसी से निकल गईं। झांसी से निकलकर वे कल्पी और फिर ग्वालियर पहुंची। 17 जून की सुबह रानी (Rani Laxmi Bai Photo, biography, in History in Hindi) अंग्रेजों से अपनी आखिरी युद्ध के लिए तैयार हुईं।