‘सांसारिक सुख को त्यागकर जो परमात्मा प्राप्ति के लिए प्रयास करता है उसे ही नित्यसुख मिलता है’
भोपाल. आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास की ओर से हर माह शंकर व्याख्यानमाला का आयोजन किया जाता है। रविवार को हुई व्याख्यानमाला के मौके पर स्वामी चित्प्रकाशानंद सरस्वती ने आचार्य शंकर द्वारा रचित ब्रह्मज्ञानावली माला के विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने अद्वैत वेदान्त के माध्यम से नित्यसुख और शाश्वत शांति के महत्व पर प्रकाश डाला। व्याख्यान का सीधा प्रसारण न्यास के यूट््यूब चैनल एकात्म धाम पर किया गया।
स्वामी चित्प्रकाशानंद सरस्वती ने कहा कि परमात्मा सबके हृदय में विद्यमान है। ब्रह्म को जानने वाला अनंत पारमार्थिक नित्य सुख को प्राप्त करता है। यह जगत तीनों कालों में नहीं रहता है, इसलिए इसकी अनित्यता शास्त्रों में प्रसिद्ध है। केवल ब्रह्म ही पारमार्थिक है, शाश्वत है। क्षणिक सांसारिक सुख को त्याग कर परमात्मा की प्राप्ति के लिए जो प्रयत्न करता है उसे ही नित्यसुख मिलता है। इसी अवस्था को मोक्ष कहा जाता है। ज्ञान ही इस नित्य वस्तु को प्राप्त कराता है क्योंकि नित्य वस्तु का निर्माण नहीं हो सकता।
वेदांत के माध्यम से कर रहे लोगों के जीवन का उत्थान: स्वामी चित्प्रकाशानंद सरस्वती, चैतन्य प्रदीप ट्रस्ट, बेलगांव के संस्थापक अध्यक्ष है। सन 1999 में स्वामी दयानंद सरस्वती से संन्यास दीक्षा ग्रहण की। एक धार्मिक मार्गदर्शक के रूप में संस्कृत तथा विभिन्न आध्यात्मिक ग्रंथों जैसे भगवद्गीता, उपनिषद आदि के विद्वान के रूप में वेदांत का प्रचार कर लोगों के जीवन का उत्थान कर रहे हैं। इसके साथ ही पुणे, बेलगांव और हुबली में हर माह दस दिन प्रवचन करते हैं। महाराष्ट्र और कर्नाटक में एम फॉर सेवा संस्था के समन्वयक के रूप में कार्यरत है।