प्रेमशंकर तिवारी, जबलपुर। सीपी एण्ड बरार के पुनर्गठन व मप्र की स्थापना के समय राजधानी के लिए सबसे पहले जबलपुर का ही नाम आया था, लेकिन प्रदेश में सामंजस्य बनाने के लिए इसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। मप्र राजधानी नहीं बन पाया और उसे हाईकोर्ट, मप्र विद्युत मंडल और सेन्ट्रल लाइब्रेरी की सौगात तो मिली लेकिन इसके बदले में दी गई कुर्बानी आज भी संस्कारधानी वासियों के मन को द्रवित कर देती हैं। थीं सभी संभावनाएं देश की आजादी के आंदोलन में जबलपुर की भूमिका अहम रही। स्वाधीनता आंदोलन के समय देश का शायद ही कोई ऐसा शीर्ष रहा रहा हो जो जबलपुर नहीं आया हो। कांग्रेस के झंडा आंदोलन की शुरुआत जबलपुर में ही हुई थी। जबलपुर के कद को देखते हुए इसे राजधानी के लिए उपयुक्त माना गया था। इसके लिए प्रक्रिया भी प्रारंभ हो चुकी थी, लेकिन भोपाल के नवाब का बयान आने के बाद देश की अखंडता व सौहाद्र्र स्वाभाविक तौर पर पहली प्राथमिकता बन गया और सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में भोपाल को राजधानी बनाने का निर्णय किया गया। इस वक्त तक (सीपी एण्ड बरार) नागपुर ही राजधानी था। जबलपुर की पात्रता को देखते हुए उसे हाईकोर्ट, सेन्ट्रल लाइब्रेरी व मप्र विद्युत मंडल के मुख्यालय की सौगात दी गई, ताकि उसका कद बरकरार रहे। कल्चुरीकाल में भी था राजधानी गोंडवाना शासनकाल में जबलपुर का गढ़ा राजधानी था वहीं कल्चुरी काल में त्रिपुरी के रूप में इसे राजधानी का दर्जा प्राप्त था। जल, जंगल और जमीन की उपयुक्तता के कारण अंग्रेजों ने भी यहां तीन कम्पनियां स्थापित कीं। खास बात ये है कि प्रदेश में जबलपुर ही मात्र एक ऐसा स्थान था जहां देश की आजादी के पूर्व कमिश्नरी स्थापित थी। इस्ट इंडिया कंपनी के समय इसे सागर-नर्मदा टेरेटरी के नाम से जाना जाता था। शिक्षा की राजधानी मप्र की स्थापना के बाद तक जबलपुर को शैक्षणिक गतिविधियों में अव्वल रहा। प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल सहित कई हस्तियां यहीं पर मॉडल हाई स्कूल और रॉबर्टसन कॉलेज (मॉडल साइंस कॉलेज) में पढ़ीं। सीपी एंण्ड बरार की सबसे प्राचीन शिक्षण संस्था राबर्टसन कॉलेज ही है। दमोहनाका के समीप एक स्कूल से इसका सूत्रपात 1836 में हुआ था। जबलपुर में एक राजकुमार कॉलेज भी था जो बाद में रायपुर स्थानांतरित कर दिया गया था। सीपी एंड बरार प्रॉविन्सेज सन् 1861 में अस्तित्व में आया था। शहर में था पहला महिला स्कूल मध्यभारत का पहला महिला स्कूल 1870 में जबलपुर में प्रारंभ हुआ था। इस नार्मल स्कूल नाम दिया गया। यह भारत का तीसरा महिला विद्यालय था। एक लाहौर, दूसरा कलकत्ता और तीसरा जबलपुर में खोला गया था। पौराणिक नगरी इतिहासकार राजकुमार गुप्ता के अनुसार जबलपुर का इतिहास वाराणसी, उज्जयनी की तरह ही प्राचीन है। तेवर ग्राम के आसपास के क्षेत्र त्रिपुरी को पहले त्रिपुर के नाम से जाना जाता था। यहां उस काल के भग्नावशेष बिखरे पड़े हैं। त्रिपुरी का उल्लेख मार्कंडेय, मस्त्य पुराण, वायु पुराण, वामन पुराण व ब्रम्हांड पुराण में मिलता है। यहां त्रिपुरी काल के सिक्कों के साथ सात वाहन, बोधि, सेन और कल्चुरि राजवंश की मुद्राएं भी प्राप्त हुई हैं। जाबालि ऋषि की तपोभूमि होने के कारण इसका नाम जाबालिपुरम भी था, जो बाद में झब्बलपुर और फिर जबलपुर हो गया। दसवी शताब्दी तक इसका नाम जाबालि पत्तन था।