दरअसल 2004-05 में नियुक्त बैकलॉग सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति शर्त में अनुचित तरीके से बिना नियमों में बदलाव किए 2 वर्ष में पीएचडी, नेट, स्लेट उत्तीर्ण करना अनिवार्य किया गया था लेकिन दूरस्थ अंचलों में पदस्थ यह असिस्टेंट प्रोफेसर्स सरकारी की इस शर्त का पूर्ण नहीं कर सके।
मांग के बाद सरकार ने अवधि बढ़ाकर पांच साल कर दी थी. पीएचडी न होने के कारण इनकी परिवीक्षा अवधि भी समाप्त नहीं की गई थी। इसके बाद असिस्टेंट प्रोफेसर्स ने पीएचडी तो कर ली लेकिन परिवीक्षा अवधि को लेकर 17 साल बाद भी मामला नहीं सुलझ सका है। उच्च शिक्षा विभाग जहां पीएचडी की डिग्री पूरी होने की तारीख से परिवीक्षा अवधि समाप्त करने की बात कह रहा है. वहीं सहायक प्राध्यापक चाहते हैं कि नियुक्ति दिनांक के दो साल बाद से इनको नियमितीकरण का लाभ मिलना चाहिए।
क्या है परिवीक्षा अवधि
शासकीय सेवा में नियुक्त कर्मचारी को सामान्यतः दो से तीन वर्ष की अवधि हेतु परिवीक्षा पर रखा जाता है। इसके बाद नियुक्तियों को स्थायी कर दिया जाता है।
वरिष्ठता हो जाएगी शून्य
महाविद्यालयीन अनुसूचित जाति.जनजाति शिक्षक संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि हमारे साथ शासन स्तर पर दोषपूर्ण नीतियों के द्वारा भेदभाव किया जा रहा है। यदि उन्हें पीएचडी पूर्ण होने की अवधि से नियमितीकरण का लाभ दिया जाता है तो उनकी वरिष्ठता खत्म हो जाएगी। शिक्षा विभाग में दो साल में परिवीक्षा अवधि समाप्त करने का नियम है लेकिन उन्हें वर्षों इंतजार करना पड़ा।
प्रांतीय शासकीय महाविद्यालयीन प्राध्यापक संघ के सचिव आनंद शर्मा बताते हैं कि भर्ती के समय दो साल में पीएचडी करने की शर्त रखी गई थी लेकिन दो साल में पीएचडी संभव नहीं है। दो साल तो रजिस्ट्रेशन में ही निकल जाते हैं। सरकार को इन्हें नियुक्ति दिनांक के दो साल बाद से नियमितीकरण का लाभ देना चाहिए।