याचिकाकर्ता का पक्ष जानने के बाद सर्वोच्च न्याय पालिका ने कहा कि, आप मुद्दे से भटक रही हैं। ये मूल याचिका नहीं, बल्कि केंद्र सरकार की ओर से दाखिल क्यूरेटिव याचिका है। हम इसपर ही सुनवाई कर रहे हैं। डाऊ कंपनी की ओर से पक्षधर एडवोकेट हरीश साल्वे ने कहा कि, करुणा नंदी पहले याचिकाएं और उसमें लिखी अपील और प्रेयर देख लें। यूएस कोर्ट में सभी खारिज हो गई हैं। लेकिन, कोर्ट को ये सच्चाई ना बताकर वही दलीलें यहां रखी जा रही हैं। इसपर कोर्ट ने पीड़ित पक्ष की वकील करुणा नंदी से सवाल किया कि, क्या आप नया सेटलमेंट चाहती हैं ? नंदी ने कहा बिल्कुल, हम इसी की डिमांड करते हैं।
जस्टिस ओक ने पूछा कि क्या किसी ने सरकार से और ज्यादा मुआवजे की मांग कभी की है ? इसपर संजय पारिख ने जवाब दिया कि, कई बार की गई है। हरीश साल्वे ने डाऊ कंपनी की ओर से दलील दी कि, अलग अलग स्तर और मंच पर दावेदारों का हुजूम है। साल्वे ने कहा कि, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और कंपनी के मालिक वॉरेन एंडरसन की पेरिस के एक होटल में मुलाकात भी हुई है। कुछ लोगों के लिए इसमें साजिश का एंगल भी है। पिछली बार जब समझौते पर सहमति बनी थी तो पीड़ित पक्ष 500 करोड़ मुआवजा दिए जाने की बात कह रहा था। यूनियन कार्बाइड ने 450 करोड़ रुपए ही दे पाने की बात कही थी। तब कोर्ट ने दोनों पक्ष को 470 करोड़ रुपए में मामला तय कर समझौता करने की बात कही थी।
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ये हैं सरकार और यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन के बीच विवाद
आपको बता दें कि, भोपाल गैस त्रासदी के शिकार पीड़ितों को 7400 करोड़ रुपए का अतिरिक्त मुआवजा दिलवाने की मांग वाली केंद्र सरकार की क्यूरेटिव याचिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया है। सरकार चाहती है कि, यूनियन कार्बाइड गैस कांड पीड़ितों को ये पैसा दें, वहीं यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया है कि, वो 1989 में हुए समझौते के अलावा भोपाल गैस पीड़ितों को एक भी पैसा नहीं देगी।
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