ये है मामला…
एडीजी राजेंद्र मिश्रा के पिता को 13 जनवरी को फेंफड़ों में संक्रमण के चलते बंसल अस्पताल में भर्ती कराया था। दूसरे दिन उनकी मौत हो गई। गांधी मेडिकल कॉलेज एचओडी डॉ. आरएन साहू ने बताया कि ऐसे मामलों को एबनॉर्मल ग्रीफ रिएक्शन कहते हैं। ज्यादा लगाव से ऐसा होता है। इन्हें काउंसिलिंग और इलाज की सख्त जरूरत होती है।
शव के सडऩे से जवान हो गए बीमार
डॉक्टरों का कहना है कि कालूमणी मिश्रा की मौत के बाद मृत्यु प्रमाण पत्र जारी कर शव परिजनों को सौंप दिया था। उन्हें पुलिस लाइन के शव वाहन से बंगले तक ले जाया गया। वहां शव में कुछ हरकत दिखी। एडीजी ने वाहन को यह कहते हुए वापस भेज दिया कि पिता के प्राण लौट आए हैं। अफसर के दबाव में ड्यूटी करने वाले एसएएफ के दो सुरक्षा कर्मी मृतक की सेवा कर रहे थे। लाश से उठती बदबू से बीमार हुए दोनों जवानों ने साथियों को बताया कि नीम-हकीमों के साथ तांत्रिक भी झाड़-फूंक करने आ रहे हैं। दोनों जवान अब गायब हैं।
बंगले में पसरी बदबू
जब पत्रिका टीम बंगले पर पहुंची तो एडीजी ने बाहर से ही बात की। अंदर बदबू आ रही थी। मिश्रा के बड़े भाई भी वहां थे, लेकिन वे चुप्पी साधे रहे। एडीजी से जब पूछा कि कौन सा डॉक्टर इलाज कर रहा है तो वे अंदर चले गए।
इन वैज्ञानिक तरीकों से सुरक्षित रहता है शव
किसी भी शव को ज्यादा दिन तक तीन वैज्ञानिक तरीकों से सुरक्षित रख सकते हैं। खुले में शव डिकंपोज हो जाएगा। इनमें पहला ट्रांस मेडिसिन, दूसरा केमिकल और तीसरा तरीका डीप फ्रीजर है। बॉडी रखने के लिए इस तरह के फ्रीजर बाजार में आसानी से मिल जाते हैं।
डॉ. डीके सत्पथी, पूर्व डायरेक्टर, मेडिकोलीगल संस्थान
पिता जिंदा, इलाज जारी
13 जनवरी को पिताजी को अस्पताल में भर्ती कराया था। उन्हें फैफड़ों में संक्रमण था। दूसरे दिन डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए। पिता को घर ले आए। वे जीवित हैं, लेकिन हालत गंभीर है। ऐसे में उन्हें बाहर नहीं ले जा सकते।
राजेंद्र मिश्रा, एडीजी
प्रमाण पत्र जारी किया
एडीजी 13 जनवरी को पिता को लेकर आए थे। उन्हें फैफड़ों में संक्रमण था। डॉ. अश्विनी मलहोत्रा इलाज कर रहे थे। 14 जनवरी की शाम उनकी मौत हो गई। इसका हमने मृत्यु प्रमाण-पत्र भी जारी किया है।
लोकेश झा, प्रबंधक, बंसल अस्पताल