दरअसल राजधानी भोपाल के कई कॉलेजों में रामचरित मानस की चौपाइयां, रामायण के दोहे पढ़ते हुए विद्यार्थी नजर आएं तो हैरान होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि सैकड़ों साल पुराने इन धर्म ग्रंथों का अब वैज्ञानिक पद्धति से अध्ययन शुरू हो गया है। रावण का पुष्पक विमान कैसे मन की गति से उड़ता था? कैसे राम के अग्निबाण से समुद्र भयभीत हो गया था? यह सब इन विषयों के प्रोफेसर कॉलेजों में वैकल्पिक विषय के तौर पर प्रवेश लेने वाले छात्र-छात्राओं को पढ़ा रहे हैं। रामचरित मानस और रामायण नए पाठ्यक्रम के तौर पर सामने आया है। सरकारी विश्वविद्यालय अपने कॉलेजों में इनकी पढ़ाई करवा रहे हैं। अयोध्या की रामायण समिति के सहयोग से तैयार पाठ्यक्रम में ग्रहों की गुरुत्वाकर्षण शक्ति, आकर्षण एवं विकर्षण आदि के धार्मिक और वैज्ञानिक पक्ष भी हैं।
भोज (मुक्त) ओपन विश्वविद्यालय के बाद नई शिक्षा नीति के तहत उच्च शिक्षा विभाग ने भी पाठ्यक्रम में काफी बदलाव किए हैं। इसके तहत बीए में रामचरितमानस का व्यवहारिक दर्शन वैकल्पिक विषय में रखा है। अच्छी बात यह है कि युवा इसमें काफी रुचि ले रहे हैं। अब तक 150 से अधिक विद्यार्थियों ने बतौर विषय इन्हें पढऩे के लिए चुना है। भोज विश्वविद्यालय में करीब 50 विद्यार्थी इसमें डिप्लोमा कर रहे हैं।
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मानवतावादी दृष्टिकोण विकसित होगा
कोर्स में विद्यार्थियों को धर्म, वेद, उपनिषद, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग भी पढ़ा रहे हैं। बीए दर्शन शास्त्र में पढऩे वाले विद्यार्थियों ने रामचरित मानस के व्यवहारिक दर्शन का चयन किया है। अधिकारियों का मानना है कि इसे पढऩे के बाद विद्यार्थी मानवतावादी दृष्टिकोण को विकसित करने के योग्य बन सकेंगे।