मध्यप्रदेश में 1972 के विधानसभा चुनाव पहली बार लोकसभा चुनाव से स्वतंत्र हुए। इससे पहले 1971 में लोकसभा के चुनाव हुए, जिसमें विजयाराजे सिंधिया, उनके पुत्र माधवराव और अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ प्रत्याशी के रूप में सांसद चुने गए। विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस ने प्रदेश का मुख्यमंत्री बदल दिया और श्यामाचरण शुक्ल के स्थान पर प्रकाशचंद सेठी सीएम बनाए गए जो उस समय केंद्र में मंत्री थे। इस चुनाव में कांग्रेस को लोकसभा की 352 सीटों पर सफलता के साथ, बहुमत मिला। विधानसभा चुनाव में भी लोकसभा की तरह प्रदेश में कांग्रेस को सफलता मिली। उसे 296 सीटों में से 220 पर जीत मिली। इस तरह 1967 के चुनाव के मुकाबले 53 सीटों का फायदा हुआ।
जनसंघ की सीटें 78 से घटकर 48 रह गईं। समाजवादी पार्टी को केवल सात सीटें मिलीं। कम्युनिष्ट पार्टी ने कांग्रेस के समर्थन से यह चुनाव लड़ा और उसे तीन सीटें मिलीं। एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत मिली। राजमाता सिंधिया ने भी विधानसभा चुनाव लड़ा था, जहां से बाद में उन्होंने त्याग-पत्र दे दिया। इससे होने वाले करेरा विधानसभा के उप-चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी को सफलता मिली।
विधानसभा चुनाव 1972 में स्वतंत्र पार्टी, प्रजा समाजवादी पार्टी की भागीदारी नहीं रही। दोनों पार्टियों के विलय से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का गठन हो गया था। जनसंघ को चुनाव में सीटें कम मिलीं और सुंदरलाल पटवा, वीरेंद्र कुमार सखलेचा, पवन दीवान, जगदीश गुप्ता, नरेश जौहरी, रामहित गुप्ता हार गए।
जबलपुर से वरिष्ठ पत्रकार भगवती धर बाजपेयी भी जनसंघ प्रत्याशी के रूप में चुनाव हार गए। समाजवादी पार्टी के शिवप्रसाद चनपुरिया, जगदम्बा प्रसाद निगम, कल्याण जैन, रामानंद सिंह, जगदीश जोशी भी हारे। श्रीनिवास तिवारी, रामेश्वर दयाल तोतला, पुरुषोत्तम कौशिक आदि चुनाव जीत गए।
कांग्रेस ने पहली बार मालवा में बढ़त बनाते हुए 79 में से 64 सीटें हासिल कीं। जनसंघ को 11 सीटों पर समेट दिया। पिछले चुनाव में जनसंघ को मालवा से 43 सीटें मिली थीं, जो घटकर 11 रह गईं। छत्तीसगढ़ में 86 में से 66 और महाकौशल में 64 में से 36 सीटें जीतकर कांग्रेस ने जनसंघ को पीछे छोड़ दिया था।
समाजवादी पार्टी ने प्रदेश के हर क्षेत्र में उपस्थिति दर्ज कराई, लेकिन उसका प्रभाव क्षेत्र विन्ध्य तक सीमित था। राजमाता सिंधिया के प्रभाव के चलते चंबल में जनसंघ की सीटें कांग्रेस की 10 सीटों की तुलना में 19 रहीं। अजा की 39 में से 29, अजजा की 61 सीटों में से 43 सीटें कांग्रेस के पक्ष में गईं।
(राजनीतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर की पुस्तक ‘चुनावी राजनीति मध्यप्रदेश’ से प्रमुख अंश…)