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भोपाल

ब्रिटिशकाल में यहां ट्रेंड होते थे घोड़े, रात में आती है डरावनी आवाज

प्रदेश का विंध्य वैसे तो प्रकृति की सुंदर प्रतिकृतियों और प्राचीन धरोहरों के चलते किसी परिचय का मोहताज नहीं है। 

भोपालJul 17, 2016 / 06:55 pm

नितेश तिवारी

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आरबी सिंह@ भोपाल. प्रदेश का विंध्य वैसे तो प्रकृति की सुंदर प्रतिकृतियों और प्राचीन धरोहरों के चलते किसी परिचय का मोहताज नहीं है। यहां धार्मिक , सांस्कृतिक और पर्यटन महत्व के दर्जनभर से अधिक ऐसे स्थान हैं, जो मध्यप्रदेश, भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया में भी अपनी ख्याति के लिए मशहूर हैं। क्षेत्र के धार्मिक स्थलों में चाहे त्रिकूट पर्वत पर विराजमान मां शारदा का धाम मैहर हो या फिर हिंदुओं के आराध्य भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट।

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प्राकृतिक स्थलों में चाहे विंध्य के प्रमुख जिले रीवा का प्रसिद्ध चचाई जल प्रपात हो या फिर क्योटी प्रपात। यही नहीं अन्य भी कई ऐसे नामचीन स्थल हैं, जो विंध्य को खास पहचान देने में अहम भूमिका निभाते हैं। प्रकृति के वरदान के साथ विंध्य में प्राचीन धरोहरों की भी भरमार है। फिर चाहे रीवा जिले में स्थित गोविंदगढ़ का किला हो या फिर वेंकट भवन। घंटाघर हो या फिर राजा-रजवाड़ों के समय के बने अति प्राचीन महल और सुरंग। 

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विंध्य में आने वाले सतना में भी प्राचीन धरोहरों का भंडार है। यहां कई अन्य किले, प्राचीन भवन और इमारतें ऐसी भी हैं, जो अति प्राचीन होने के साथ ही अपनी विशिष्ट कलाकारी और आकृति के लिए खास हैं, लेकिन आज इनमें कई धरोहरें समुचित रख-रखाव के अभाव में बदसूरत के साथ अस्तित्व के संकट से गुजर रही हैं। इन्हीं में से एक है, सतना जिले से करीब 5 किलोमीटर दूर स्थित माधवगढ़ किला। यह किला कभी रीवा रियासत का प्रमुख केंद्र हुआ करता था, लेकिन आज यह बदहाली की अवस्था में खुद पर आंसू बहा रहा है। इस किले की प्राकृतिक संरचना और आसपास की भौगोलिक आकृति इसे विशेष बनाती है। इस किले के चारों ओर गुंबदनुमा बने भाग और इसके अंदर की बनावट और कलाकारी भी अपनी ओर बरबस ही सैलानियों को आकषिज़्त करती है। हालांकि, मौजूदा परिस्थिति में किले के हालत बहुत दयनीय है।

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इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि अठारहवीं शताब्दी में रीवा रिायासत के महाराज विश्वनाथ सिंह जू देव ने बघेलखंड को माधवगढ़ किले की सौगात दी थी। कहा जाता है कि माधवगढ़ किला रीवा रियासत के समय युद्ध के दौरान प्रयोग होने वाले घोड़ों को रखने के लिए बनाया गया था। इस किले पर रियासत की सुरक्षा को लेकर विद्रोहियों और दुश्मनों के आक्रमण से बचने के लिए इसे सतना से रीवा के प्रमुख रास्ते में पड़ने वाली नदी टमस के किनारे बनाया गया था। किले में न सिर्फ रियासत की सैनिक टुकड़ी में शामिल घोड़ों को प्रशिक्षण दिया जाता था, बल्कि उनके लिए यहां पूरे प्रबंध किए गए थे। 


रात में आती है दरवानी आवाज
रीवा रियासत के अति महत्वपूर्ण अंगों में से एक रहे इस माधवगढ़ किले के मौजूदा स्थिति को लेकर स्थानीय लोगों में कई तरह की भ्रांतियां भी हैं। किले में दिन में तो स्थानीय एवं आसपास के लोगों का अवागामन होता रहता है, लेकिन रात के समय इस किले में आना-जाना या यहां समय बिताना इन लोगों के लिए आसान नहीं है। शाम ढलते ही पूरी तरह अंधेरे में घिरने के बाद रात में इस किले में अंधेरा और गहरा जाता है। 

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यहां सन्नाटा गूंजता है। रात में किले में बिजली की व्यवस्था नहीं होने से किले में पसरे अंधेरे के बीच लोगों का आना डरावना होता है। उधर, माधवगढ़ किले के बारे में यहां के लोग तमाम अजीबोगरीब अनुभव भी बताते हैं। लोगों के मुंह से यह अक्सर कहते हुए सुना जाता है कि इस किले में सभी तरह की आत्माओं का डेरा है, तेज गर्मी में भी कोई सच्चा इंसान अगर यहां रो दे तो बारिश हो जाती है, जो जाने अनजाने लोगों के
कष्ट दूर कर देती है। 


इन्हीं लोगों की बातों पर विश्वास करें तो यहां रात में कैसी-कैसी आवाजें गूंजती हैं। हो सकता है कि स्थानीय लोगों के यह अनुभव सही भी हों और नहीं भी, लेकिन इतना जरूर है कि इस किले का समुचित संरक्षण कर न सिर्फ इस किले के रूप में लोगों में फैली भ्रांतियों को दूर किया जा सकता है, बल्कि इसे बेहतरीन पयज़्टन केंद्र के रूप में विकसित कर स्थानीय लोगों के साथ ही यहां से गुजरने हर उस देशी-विदेशी सैलानी की खुशियों में चार चंद पल जोड़े जा सकते हैं, जो यहां से गुजरते वक्त इस एतिहासिक किले को एक नजर अच्छी तरह से देखकर अपनी जिज्ञासा और नेचुरल सुंदरता को सुनहरी यादों में सजोना चाहते हैं।


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