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भोपाल में है अनूठा शिवलिंगः अपने आप रूप बदलने लगता है

सावन माह के मौके पर अनूठे महादेव सीरिज में जानिए पारदेश्वर शिवलिंग के बारे में…।

भोपालApr 20, 2024 / 01:48 pm

Manish Gite

 

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के एक शिवालय के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, जो प्राचीन तो नहीं हैं, लेकिन पारे से निर्मित यह शिवलिंग कभी भी रूप बदलने लगता है। यह नजारा देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं। हालांकि इस बार कोरोना संकट के दौरान मंदिरों में भीड़ तो नहीं उमड़ रही हैं, कई शिवालयों के दर्शन भी लोग वीडियो काल के जरिए कर रहे हैं।

 


राजधानी भोपाल में है यह अनोखा शिवलिंग। जिसे पारदेश्वर के नाम से जाना जाता है। यह शिवलिंग हर-पल रंग बदलता है। यहां के पुजारी बताते हैं कि यदि तापमान अधिक बढ़ जाएगा तो यह शिवलिंग पिघलकर बह जाएगा। इसलिए हमेशा शिवलिंग के ऊपर पानी की धार डाली जाती है।

 

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पारदेश्वर शिवलिंग को भक्तों ने बनाया

पारदेश्वर महादेव मंदिर के पं. रामदास बताते हैं कि मात्र 18 साल पहले बने इस मंदिर में पहले हनुमानजी की प्रतिमा थी। इसके बाद उत्तराखंड के निरंजन अखाड़े के गरीबदास जी से छः माह तक दीक्षा लेने के बाद इस शिवलिंग की स्थापना हो सकी थी।


सवा क्विंटल पारा लगा है शिवलिंग में

पंडितजी बताते हैं कि यह शिवलिंग पारे से बना हुआ है। इसमें सवा क्विंटल पारा लगा हुआ है। इसके लिए देश के साथ ही विदेश में रहने वाले भक्तों ने थोड़ा-थोड़ा करके पारा जुटाकर मंदिर को दान किया था। इसलिए यह शिवलिंग सभी भक्तों के सहयोग से ही बन पाया है। यह शिवलिंग बीएचईएल क्षेत्र के अयोध्या बायपास के नजदीक स्थित है।

 

छह माह में तैयार हुआ शिवलिंग

पंडितजी बताते हैं कि इस शिवलिंग का निर्माण आसान नहीं था। क्योंकि यह थोड़ी ही गर्मी में पिघल जाता था। इसलिए इसमें स्वर्ण भस्म को मिलाया गया। इसे बनाने में 6 माह लग गए थे। पारे से बन रहे इस शिवलिंग में यदि स्वर्ण भस्म नहीं मिलाई जाती तो यह शिवलिंग बन ही नहीं पाता। यदि बन भी जाता तो इसकी धातू थोड़ी ही गर्मी में पिघलकर बहने लगता। इसलिए शिवलिंग के लिए तापमान का विशेष ध्यान रखा गया है।

श्रद्धालुओं कहते हैं कि एक बार निर्मित होने के बाद यदि शिवलिंग पिघल जाएगा तो मुसीबतें भी आ सकती हैं। यह शिवजी का क्रोध भी हो सकता है। शिवलिंग की स्थापना में ही 55 लाख रुपए से अधिक लागत आई थी।


हिमालय सा अहसास देते हैं पेड़

मंदिर के परिसर में कुछ पेड़ भी लगाए गए हैं, जो अलग ही अहसास देते हैं। मध्यप्रदेश की आबोहवा में इनका पनपना भी मुश्किल था। बताया जाता है कि यह लोगों की आस्था ही है कि बर्फीले स्थान पर बढ़ने वाले ये पेड़ यहां भी पनप गए। इन पेड़ों में रुद्राक्ष का पौधा सबसे अहम था जिसे नेपाल से लाया गया था। इसकी खास बात यह है कि इसमें एक मुखी रुद्राक्ष से लेकर 14 मुखी रुद्राक्ष भी होते हैं।


इस पेड़ में है श्रीकृष्ण का वास

पंडितजी बताते हैं कि यहां पर अक्षय वट भी लगाया गया है, जिसकी विशेष पूजा की जाती है। इसकी हर एक पत्ती पर श्रीकृष्ण भगवान की दो उंगलियों की छाप नजर आती है। इसलिए भक्त इस पेड़ में श्रीकृष्ण का वास मानते हैं।

इसलिए अनूठा है यह शिवलिंग

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