पुलिस ने मामले में मुस्तैदी दिखाते हुए 24 घंटे से पहले ही जांच में सामने आए सबूतों के आधार पर आरोपी संजय उर्फ शुभम दीक्षित को गिरफ्तार कर लिया, जिसके कबूलनामें ने पुलिस ही नहीं बल्कि सुनने वाले हर शख्स को हैरान कर दिया। साइकोलॉजिकली गौर करें तो आरोपी संजय द्वारा ये कदम उठाने के पीछे कारण रिजेक्शन की हैंडलिंग न कर पाना है। यही कारण है कि, अवसाद में आकर आरोपी ने वारदात को अंजाम दिया। इस संबंध में मध्य प्रदेश के जाने माने मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी से पत्रिका ने बातचीत की। उन्होंने बताया कि, आखिर लोगों में इस तरह की मानसिकता कैसे उत्पन्न होती है और इसे किस तरह हैंडिल किया जा सकता है।
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क्या है रिजेक्शन?
मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी के अनुसार, इस पूरी घटना को अगर मनोचिकित्सकीय ढंग से देखें तो इसमें रिजेक्शन की हैंडलिंग इमप्रॉपर है। हममें से हर व्यक्ति को जीवन में कही न कहीं रिजेक्शन का सामना करना पड़ता है। जीवन के उतार चढ़ाव में अलग अलग तरह के रिजेक्शन हमारे जीवन में आ सकते हैं। वो एकेडमिक हो सकते हैं, हमारी पर्सनल लाइफ से जुड़े हो सकते हैं या फिर लव अफेयर से जुड़े हो सकते हैं।
सभी को करना पड़ाता है रिजेक्शन का सामना
डॉ. त्रिवेदी का मानना है कि, रिजेक्शन हर किसी व्यक्ति के सामने आता है। संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं, जो अपने जीवन में रिजेक्शन के प्रभाव से अछूता रहा हो। रिजेक्शन के मानसिक और शारिरिक दोनों तरह के प्रभाव व्यक्ति पर पड़ते हैं। अब कौन व्यक्ति रिजेक्शन को हैंडिल किस तरह से करता है, ये इसपर निर्भर करता है कि, उसने अपने जीवन में रिजेक्शन को हैंडिल होते किस तरह से देखा है। उसके आसपास में किस तरह का माहौल रहा है और इससे भी महत्वपूर्ण ये कि, उसका व्यक्तित्व कैसा है?
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व्यवहार तय करता है रिजेक्शन हैंडिल करने का तरीका
-डॉक्टर त्रिवेदी का कहना है कि, इंसान का व्यक्तित्व ही ये तय करता है कि, वो रिजेक्शन को किस तरह हैंडिल कर सकता है। बहुत से लोग रिजेक्शन के समय बहुत ज्यादा व्यव्हारिक हो जाते हैं, ताकि उनके मन की पीड़ा कम हो सके। उसे मनोचिक्त्सकीय भाषा में ‘प्रो सोशल बिहेवियर’ कहते हैं।
-बहुत से लोग रिजेक्शन के समय खुद को दुनिया से अलग कर लेते हैं। अपने आसपास एक दायरा खींच लेते हैं, जिसमें वो किसी को आने नहीं देते। मनोचचिकित्सकीय भाषा में ऐसे लोग ‘अ सोशल बिहेवियर’ में चले जाते हैं और किसी से बातचीत करना पसंद नहीं करते।
-बहुत से लोग रिजेक्शन के समय ‘सेल्फ हार्म’ यानी खुद को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें दूसरों को तकलीफ देने का ख्याल तो नहीं आता, लेकिन रिजेक्शन का सामना न कर पाने की वजह से वो खुद को ही किसी तरह से नुकसान पहुंचाने का प्रयास करते हैं। सुसाइड के मामलों में अकसर ऐसा ही होता है।
-इन्हीं में से कई लोगों का बिहेवियर रिजेक्शन के समय ‘एंटी सोशल’ हो जाता है। ये खुद को तो नहीं आसपास के लोगों या चीजों को नुकसान पहुंचाते हैं। इंदौर घटना के मामले में यही ‘एंटी सोशल बिहेवियर’ देखने को मिला है।
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इस तरह किया जा सकता है रिजेक्शन को हैंडिल
यहां ये बात समझने की जरूरत है कि, जब कभी भी हमारे सामने रिजेक्शन आए तो उससे निपटने के लिए हमें स्वस्थ तरीकों का इस्तेमाल करने की जरूरत है। उससे न सिर्फ हमारा मानसिक स्वास्थ, शारिरिक स्वास्थ बल्कि, जो ओवर ऑल डैमेज जो हमारे पूरे जीवन पर पड़ने वाला है उसे बहुत हद तक कम किया जा सकता है।
घटना से सीख की जरूरत
डॉ. त्रिवेदी का कहना है कि, जीवन में सामने आने वाली हर चीज हमें कोई न कोई सबक देती है। इस घटना से हमें ये सीख लेनी है कि, हमें अपने परिवार में बच्चों को, युवाओं को तनाव प्रबंधन में दक्ष बनाना होगा। हकीकत को कबूल करते हुए उसके हिसाब से व्यवहार करना सिखाना होगा।