सरकार ने कहा है कि इसका फैसला राज्य सरकार पर छोड़ देना चाहिए कि वो अपने यहां स्कूल संचालन की क्या व्यवस्था रखना चाहती है। राज्य सरकार ने अपने पत्र में लिखा है कि जहां तक स्कूलों में सेमेस्टर सिस्टम का सवाल है,इसे राज्यों के लिए वैकल्पिक रखा जाना चाहिए। राज्य की विशिष्ट परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उस पर निणर््य लेने का अधिकार राज्य को होना चाहिए।
कॉलेजों में सफल नहीं रहा सेमेस्टर सिस्टम :
प्रदेश में सेमेस्टर सिस्टम प्रणाली कॉलेजों में लागू हो चुकी है। 2008 में कॉलेज पाठ्यक्रमों में सेमेस्टर सिस्टम लागू किया गया था। इसके लागू होने के साथ ही छात्र संगठनों ने इसे खत्म करने की मांग की थी। एनएसयूआई का कहना था कि सेमेस्टर सिस्टम से तीन साल का स्नातक कोर्स चार साल में पूरा होता है। वहीं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने भी सेमेस्टर सिस्टम खत्म करने की मांग को लेकर तत्कालीन स्कूल शिक्षा मंत्री के बंगले का घेराव हुआ था। छात्रों के विरोध को देखते हुए प्रदेश सरकार ने दस साल बाद 2018 में सेमेस्टर सिस्टम खत्म कर दिया। प्रदेश सरकार का मानना है कि जब कॉलेजों में सेमेस्टर सिस्टम सफल नहीं हो पाया तो इसे स्कूलों में लागू कैसे किया जा सकता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर प्रदेश की राय :
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा सार्वजनिक कर विभिन्न बिंदुओं पर राज्य सरकार की राय मांगी है। राज्य सरकार ने नई शिक्षा नीति के मुद्दों पर अपना अभिमत भेजा है।
– शिक्षा का अधिकार : निशुल्क एवं बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम के दायरे को एक से दसवीं कक्षा से आगे बढ़ाना चाहिए।
– छात्र-शिक्षक अनुपात : कक्षा तीन और उससे बड़ी कक्षाओं के लिए प्रति कक्षा एक शिक्षक और प्री प्राइमरी से कक्षा दो तक दो शिक्षक प्रति कक्षा रखे जाने चाहिए।
– राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद : स्कूली कक्षाओं का कोर्स तय करने के लिए राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद को व्यापकता के साथ काम करना चाहिए। स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार पाठ्यक्रम को अपनाने की स्वतंत्रता का अधिकार राज्यों को दिया जाना चाहिए।
– पाठ्यक्रम का निर्माण : प्रदेश में कोर्स तय करने का काम माध्यमिक शिक्षा मंडल कर रहा है। सरकार का मत है कि प्रदेश में पाठ्यक्रम तय करने का काम मध्यमिक शिक्षा मंडल ही निरंतर रुप से करे।
– पड़ोसी राज्यों के लिए एक समान नीति : अंतर्राज्यीय विस्थापित बच्चों की आवश्यकता को देखते हुए इन्हें गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्राप्त हो इसके लिए सीमावर्ती राज्यों में एक समान नीति लागू हो।
– जिला शिक्षा परिषद गठन : कलेक्टर की अध्यक्षता में समग्र शिक्षा समिति पहले से मौजूद है। ऐसे में अलग से जिला शिक्षा परिषद का गठन की आवश्कता नहकीं है।
– नियामक प्राधिकरण : राज्य स्कूल नियामक प्राधिकरण के रुप में एक स्वतंत्र नियामक निकाय की आवश्यकता नहीं।
– विभिन्न मिशन का विलय: एक निदेशालय के अंतरगत स्कूल शिक्षा से जुड़े विभिन्न मिशन को विलय करने से बहुत मुश्किलें होंगी।
– केंद्र सरकार ने हमसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति के संबंध में अभिमत मांगा था। हमने अपना जवाब भेज दिया है। स्कूलों में सेमेस्टर सिस्टम के बारे में हमने साफ कहा है कि इसे अनिवार्य करने की जगह वैकल्पिक किया जाए। राज्य अपने हिसाब से इसे लागू करने या न करने पर विचार करे।
– डॉ प्रभुराम चौधरी स्कूल शिक्षा मंत्री-