बच्चों के लिए स्कूल बना चुनौती
कोरोना महामारी ने बच्चों को अलग ही तरीके से पढऩा सीखा दिया है, अधिकतर बच्चे अब घर में रहकर ऑनलाइन पढ़ाई की आदत डाल चुके हैं, उनके हाथ में अधिकतर समय मोबाइल ही रहता है, कई बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ गेम भी खेलने लगे हैं, अब उन्हें शिक्षकों की डांट और फटकर भी सुनने को नहीं मिलती थी, ऐसे में अब फिर स्कूल से खुले हैं, तो बच्चों स्कूल जाना किसी चुनौती से कम नहीं लग रहा है, क्योंकि आजादी से वे घर पर पढ़ाई कर रहे थे, वह अब फिर से छीनती नजर आने लगी है। ऐसे में परिजनों को भी चाहिए कि वे बच्चों ेके साथ ऐसा व्यवहार करें, जिससे उन्हें भी स्कूल जाने में अच्छा लगने लगे।
शिक्षकों के भी छलक गए आंसू
पहले दिन जब बच्चे स्कूल पहुंचे तो शिक्षकों ने उन्हें पढ़ाने की अपेक्षा उनसे अपने और परिवार के हालचाल जानें, ऐसे में किसी ने बच्चे ने बताया कि उसने कोरोना में पिता को खो दिया, तो किसी ने बताया कि उसने अपनी माता को खो दिया, ऐसे में बच्चे भारी मन से स्कूल आए तो उनकी बातें सुनकर शिक्षकों की आंखों से आंसू छलक उठे।
बच्चों ने बनाए नए दोस्त
लंबे समय बाद स्कूल खुले तो बच्चों को सबकुछ नया-नया सा नजर आने लगा, अधिकतर बच्चों को अपने दोस्त करीब दो-ढाई साल बाद मिले, कुछ तो एक दूसरे को पहचान गए, वहीं कुछ ने फिर से नए दोस्त बनाए। उन्होंने घर आकर अपने माता-पिता और परिजन को स्कूलों के हालात और पहले दिन हुई गतिविधियों के बारे में बताया।
स्कूलों में एक्टिविटी, घर में भी बनाएं बेहतर माहौल
प्रदेश के अधिकतर स्कूलों ने ये तय किया है कि बच्चों को करीब १५ दिन तक स्कूल में पढ़ाने की अपेक्षा विभिन्न ऐसी गतिविधियां कराई जाएंगी, जिससे उनकी स्कूल के प्रति ललक बढ़े, और वे स्कूल आने से चिढ़े नहीं, इसलिए बच्चों के परिजनों को भी चाहिए कि वे बच्चों के साथ स्नेह का वातावरण बनाकर उन्हें स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करें. इसके लिए कुछ टिप्स भी अपनाएं।
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-बच्चों को उनकी पसंद का टिफिन बनाकर दें।
-बच्चों को तैयार करते समय चिढ़चिढ नहीं करें।
-स्कूल से आने के बाद उनसे स्कूल में हुई गतिवधियों के बारे में चर्चा करें।
-कुछ दिन होमवर्क को लेकर अधिक दवाब नहीं डालें।
-हो सके तो बच्चों को खुद छोडऩे और लेने जाएं।
-उनके साथ मित्रवत व्यवहार करते हुए रहें।
-उनकी पसंद का ख्याल रखें।
-बच्चों के स्कूल टीचर से भी चर्चा करें और यह भी जानें कि वह स्कूल में किस तरह रहता है।
-बच्चों को मोबाइल देना अचानक पूर्ण रूप से बंद नहीं करें, धीरे-धीरे ये आदत छुड़ाएं।
जानिये क्या कहते हैं मनोचिकित्सक
हालांकि लंबे समय बाद बच्चों को स्कूल जाने में थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन माता-पिता सहित घर के सभी सदस्यों को ये प्रयास करना चाहिए कि उन्हें बेहतर वातावरण दें, उन्हें स्कूल की अहमियत बताएं, उन्हें स्वयं का उदाहरण भी दें कि किस प्रकार हमने भी स्कूल जाकर ही आज ये मुकाम हासिल किया है, बच्चों को उनकी उम्र के अनुसार समझाते हुए स्कूल जाने के लिए प्रेरित करें, क्योंकि स्कूल ही बच्चों के सर्वांगीण विकास का केंद्र होते हैं, वे स्कूल से पढऩे के साथ ही नए दोस्त बनाना, खेलकूद आदि सभी गतिविधियां सीखते हैं।
-डॉ सत्यकांत त्रिवेदी, मनोचिकित्सक