अपने कवित्व से यश प्राप्त करते हुए जब वह उÓजैन नगरी पहुंचते हैं तो वहां संयोगवश उनकी मुलाकात विद्योत्तमा से होती है। कालिदास जब उनके घर पहुंचते हैं तो दरवाजा खोलने का निवेदन करते हैं, तब विद्योत्तमा उनसे चार शब्दों का एक वाक्य बोलती हैं ‘अस्ति कश्चित् वाग्विशेष:Ó (क्या आपकी वाणी में कोई विशेषता है?) यह सुनकर कालिदास इन शब्दों से दो महाकाव्य और एक खंड काव्य के श्लोक की रचना कर देते हैं। ‘अस्तिÓ शब्द से महाकाव्य ‘कुमार सम्भव का पहला श्लोक (अस्त्य् उत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराज:। पूर्वापरौ तोयनिधी विगाह्य स्थित: पृथिव्या इव मानदण्ड:॥) ‘कश्चित्Ó शब्द से खण्डकाव्य ‘मेघदूतÓ का पहला श्लोक (कश्चित्कांता…) और ‘वाग्विशेष:Ó शब्द से महाकाव्य ‘रघुवंशÓ का पहला श्लोक (वागार्थविव…) की रचना की।
श्री नाट्यम गु्रप ऑफ संस्कृत ड्रामा से ताल्लुक रखने वाले अनुपम बताते हैं कि वे पिछले 10 वर्षों से काम कर रहे हैं। देश भर में करीब 50 से अधिक संस्कृत नाटकों का मंचन कर चुके हैं। अनुपम बताते हैं कि ब’चों को भी संस्कृत नाटकों से जोडऩे के लिए यह प्रयोग किया गया। महर्षि पतंजलि संस्थानम् की ओर से संचालित शासकीय कन्या आवासीय संस्कृत विद्यालय की छात्राओं के साथ मिलकर यह नाटक तैयार किया गया। अवधि करीब 1 घंटे की रही, नाटक में छात्राओं ने ही सभी महिला व पुरुष पात्र निभाए।
अतिथि के इंतजार में 30 मिनट तक स्वागत मुद्रा में खड़ी रही छात्राएं
इस नाट्य प्रस्तुति के दौरान बतौर मुख्य अतिथि महिला एवं बाल विकास मंत्री इमरती देवी को आना था लेकिन वे नहीं पहुंची। वहीं लोक शिक्षण संचालनालय की आयुक्त जयश्री कियावत भी करीब 30 मिनट की देरी से पहुंची। जिस कारण छात्राएं मंच पर करीब आधे घंटे तक स्वागत मुद्रा में खड़ी रहीं। नाट्य प्रस्तुति देखने के लिए महिला एवं बाल विकास के संचालक अभय वर्मा, जवाहर बाल भवन के संचालक डॉ. उमाशंकर नगायच, महर्षि पतंजलि संस्थान के संचालक पीआर तिवारी और आवासीय संस्कृत विद्यालय की प्राचार्या समेत शहर के रंगकर्मी भी उपस्थित रहे।