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क्या होता है “रोज़ा”?
रोज़े के मायने सिर्फ यही नहीं है कि, इसमें सुबह से शाम तक भूखे-प्यासे रहना होता है। बल्कि रोज़ा वो अमल (कार्य) है, जो रोज़दार को पूरी तरह से पाकीज़गी (शुद्धीकरण) का रास्ता (मार्ग) दिखाता है। रोज़ा वो अमल है जो इंसान को बुराई करने से रोकता है और अच्छाई के रास्ते पर चलने का रास्ता गिखाता है। महीने भर के रोजों को जरिए अल्लाह (ईश्वर) चाहता है कि, इंसान अपनी रोज़ाना की जिंदगी को रमज़ान के दिनों के मुताबिक़ गुज़ारने वाला बन जाए, यानि संतुलित (नियमित)।
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सिर्फ खाने पीने पर रोक का नाम नहीं रोजा
रोज़ा सिर्फ ना खाने या ना पीने का ही नहीं होता, बल्कि रोज़ा शरीर के हर आज़ा (अंग) का होता है। इसमें इंसान के दिमाग़ का भी रोज़ा होता है, ताकि, इंसान के ख्याल रहे कि, उसका रोज़ा है, तो उसे कुछ गलत बाते गुमान (सोचना) नहीं करनी। उसकी आंखों का भी रोज़ा है, ताकि, उसे ये याद रहे कि, उसका रोज़े में उसकी आखों से भी कोई गुनाह (पाप) ना हो। उसके मूंह का भी रोज़ा है ताकि, वो किसी से भी कोई बुरे अल्फ़ाज (अपशब्द) ना कहे और अगर कोई उससे किसी तरह के बुरे अल्फ़ाज कहे तो वो उसे भी इसलिए माफ कर दे कि, उसका रोज़ा है। उसके हाथों और पैरों का भी रोज़ा है ताकि, उनसे कोई ग़लत काम ना हों। यानी कुल मिलाकर रोज़ा इंसान को हर बुरा काम करने से रोकता है और अगर रोजा रखकर कोई इंसान बुरे कामों से बाज़ न आए, तो ऐसे इंसान का रोज़ा बेमानी है। उसने अल्लाह का हुक्म तोड़ा।
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बुराइयों से रोकता है रोज़ा
आपको बता दें कि, इस तरह इंसान के पूरे शरीर का रोज़ा होता है, जिसका मक़सद ये भी है कि, इंसान बुराई से जुड़ा कोई भी काम ये सोचकर ना करे कि, वो रोज़े में है और यही अल्लाह अपने बंदे (भक्त) से चाहता है। वैसे तो हर इंसान में कोई ना कोई बुराई होती ही है, ऐसे में सोचिये कि, अगर इंसान रोज़ें की इस बेहतरीन (महान) खूबी से सीखकर अपनी जिंदगी को गुज़ारने वाला बन जाए, तो हालात (स्थितियां) कैसी हों ? इसलिए भी इस्लाम के नज़दीक रमज़ान के इन रोज़ों को हर मुसलमान के लिए फर्ज़ (ज़रूरी) बताया गया है।
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रमज़ान का मक़सद? (उद्देश्य)
कुल मिलाकर रमज़ान का मक़सद (उद्देश्य) इंसान को बुराइयों के रास्ते से हटाकर अच्छाई के रास्ते पर लाना है। इसका मक़सद एक दूसरे से मोहब्बत (प्रेम) भाइचारा और खुशियां बाटना (आदान-प्रदान करना) है। रमज़ान का का मक़सद सिर्फ यही नहीं होता कि, एक मुसलमान सिर्फ किसी मुसलमान से ही अपने अच्छे अख़लाक़ (व्यव्हारिक्ता) रखे बल्कि, मुसलमान पर ये भी फर्ज (ज़रूरी) है कि, वो किसी और भी मज़हब के मानने वालों से भी मोहब्बत (प्रेम), इज़्ज़त (सम्मान), अच्छा अख़लाक़ रखे, ताकि दुनिया के हर इंसान का एक दूसरे से भाईचारा बना रहे। इसलिए भी मुसलमान पर रमज़ान के रोज़ों को फर्ज किया गया है।
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