राजस्थान सरकार ने पुरानी पेंशन योजना को बहाल कर दिया। इस फैसले को इतना पसंद किया जा रहा है कि यह देशभर में चर्चा का विषय बन गई है। अब कई राज्यों में भी मांग उठने लगी है। मध्यप्रदेश में भी इस मांग ने जोर पकड़ लिया है। शुक्रवार को भी प्रदेशभर में कलेक्टरों को ज्ञापन देकर मांग की जा रही है। वहीं कमलनाथ, विवेक तन्खा के बाद प्रदेश के करीब 47 विधायकों ने भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पुरानी पेंशन को दोबारा चालू करने का पत्र लिखा है। इसी सिलसिले में भाजपा के मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी ने भी सीएम को पत्र लिखा है। इधर, कांग्रेस नेता एवं विधायक पीसी शर्मा ने भी पुरानी पेंशन बहाली की मांग करने वाले कर्मचारियों का समर्थन किया है।
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नई और पुरानी पेंशन योजना में अंतर
पुरानी पेंशन स्कीम में कर्मचारी के वेतन से कोई कटौती नहीं होती थी। जबकि नई पेंशन योजना में 10 प्रतिशत की कटौती वेतन से की जाती है। इसमें 14 प्रतिशत हिस्सा सरकार मिलाती है। पुरानी पेंशन स्कीम में सेवानिवृत्त कर्मचारियों को सरकारी कोष से पेंशन दी जाती थी। नई स्कीम शेयर बाजार आधारित है। पुरानी स्कीम में जीपीएफ था, लेकिन नई स्कीम में यह सुविधा नहीं है। पुरानी स्कीम के तहत सेवानिवृत्त होते समय वेतन की आधी रकम पेंशन के रूप में मिलती थी। जबकि नई योजना में पेंशन कितनी मिलेगी इसकी गारंटी नहीं है।
मिलेगा राजनीतिक फायदा
माना जा रहा है कि जो भी दल इस मुद्दे को उठाता है, उसे राजनीतिक फायदा मिल सकता है। इसलिए सरकार भी पुरानी पेंशन योजना बहाल कर सकती है। इसी बजट सत्र में इसे लाया जा सकता है। माना जा रहा है कि जल्द ही शिवराज सरकार भी पुरानी पेंशन योजना को बहाल कर सकती है। सूत्रों के मुताबिक सरकार इसके नफा-नुकसान का आंकलन कर रही है। हालांकि सरकार ने इस योजना के संबंध में किसी प्रकार के कोई निर्देश नहीं दिए हैं।
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दोनों को फायदा
सूत्रों के मुताबिक पुरानी पेंशन योजना लागू करने से सरकार को भी फायदा ही होगा। इससे सरकार को हर साल सरकार को करीब चार हजार करोड़ रुपए से अधिक की बचत होगी, इसके बाद सरकार को हर माह 334 करोड़ का फायदा हो सकता है।
कितना फायदा, कितना नुकसान
जानकारों की माने तो पुरानी पेंशन से कर्मचारियों और सरकार को फायदा होगा। इससे सरकार एक साल में चार हजार करोड़ से अधिक की राशि बचा सकती है।
सरकार को हर माह एक कर्मचारी के खाते में करीब 7 हजार अंशदान देना पड़ता है। एक माह में 210 करोड़ रुपए हो जाती है। पूरे वर्ष की बात करें तो 2520 करोड़ रुपए के आसपास हो जाता है। इसके अलावा 48 हजार स्थाई कर्मचारी भी पेंशन के दायरे में हैं। इसके लिए सरकार को 2800 प्रति कर्मचारी के हिसाब से जमा करना होता है। एक माह में यह राशि 134 करोड़ पहुंच जाती है। पूरे वर्ष की बात करें तो यह आंकड़ा 1608 करोड़ के आसपास पहुंचता है।
अब पुरानी योजना को लागू करने में सरकार को हर माह काफी बचत होगी। जीपीएफ और हर 6 माह में मिलने वाला महंगाई भत्ते का भी लाभ जुड़ जाएगा। पुरानी पेंशन योजना में पारिवारिक पेंशन भी होती है। साथ ही सेवानिवृत्ति के वक्त जितना भी वेतन होता है, उसका 50 फीसदी पेंशन बनेगी।
मध्यप्रदेश में करीब साढ़े तीन लाख कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना के पात्र हैं। वहीं अंशदाई पेंशन योजना के बारे में करीब तीन लाख शिक्षक पात्र हैं। इनकी नियुक्ति 1995 से 2013 तक हुई थी, लेकिन सरकार ने इन्हें 2018 में नियमित कर्मचारी माना।
-85 फीसदी शिक्षक 10 साल बाद 60 साल के होंगे और सेवानिवृत्त हो जाएंगे। ऐसे में हर माह उनके पेंशन पर सरकार को सालाना 60 करोड़ रुपए खर्च करना होगा।
-अध्यापक शिक्षक संघ से जुड़े कर्मचारी नेता कहते हैं कि पुरानी पेंशन योजना से ही कर्मचारियों को लाभ होगा। साथ ही सरकार भी फायदे में रहोगी। हर माह 344 करोड़ पर उन्हें पेंशन अंशदान के रूप में अधिक खर्च करने पड़ रहे हैं।
13 मार्च को बड़ा आंदोलन पुरानी पेंशन की मांग को लेकर प्रदेश के कर्मचारी और अधिकारियों के संगठन एक जुट हो गए हैं। उन्होंने शिवराज सरकार से मांग की है कि वे 13 मार्च से पहले पुरानी पेंशन को बहाल करने की घोषणा कर दे, नहीं तो प्रदेश में बड़ा आंदोलन होगा।