भोपाल

10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण पर रोक नहीं! अब केंद्र सरकार को चार हफ्तों में करना होगा ये…

सामान्य वर्ग कोटा: संशोधन विधेयक को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई…

भोपालJan 26, 2019 / 02:34 pm

दीपेश तिवारी

10 प्रतिशत आरक्षण पर रोक नहीं! अब केंद्र सरकार को चार हफ्तों में करना होगा ये…

भोपाल। आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग को रोजगार व शिक्षा में 10प्रतिशत आरक्षण देने के लिए संविधान के 103वें संशोधन विधेयक के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। केंद्र को चार हफ्तों में इसका जवाब देना है।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने इस संविधान संशोधन पर तत्काल अंतरिम रोक लगाने से इनकार करते कहा कि हम इस मुद्दे पर अपने स्तर पर निरीक्षण करेंगे।

गैर सरकारी संगठन ‘यूथ फॉर इक्वालिटी’ की ओर से तहसीन पूनावाला ने यह जनहित याचिका दाखिल की है।
सुप्रीम कोर्ट के द्वारा तत्काल अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिए जाने से भोपाल सहित मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों में इस फैसले से खुशी का माहौल है।

ये ठीक है वरना हमेशा ऐसे उचित कदमों पर रोक लगाने की कोशिशें होती है, जिसके चलते कई बार ऐसे निर्णय वापस हो जाते हैं। जो समाज को नुकसान पहुंचाते हैं।
– विवेक मिश्रा, भोपाल
 

 

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कोर्ट का ये फैसला स्वागत योग्य है। हां उन्होंने सरकार से जवाब जरूर मांगा है, लेकिन तत्काल अंतरिम रोक नहीं लगाकर फैसले की गंभीरता को समझा है।
– विजय शर्मा, ग्वालियर
सामान्य गरीबों के लिए लाया गया ये फैसला शानदार है। इस देश के हर नागरिक को जीने का अधिकार है। जहां तक यूथ फॉर इक्वालिटी का सवाल है तो वह नाम से ही इक्वालिटी की बात करती दिखती है। ऐसे में उसे सम्पूर्ण आरक्षण पर रोक के लिए याचिका लगाना चाहिए था।
– एचपी शुक्ला, भोपाल

संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान पारित 103 वां संविधान संशोधन विधेयक के अनुसार इस दस प्रतिशत आरक्षण के दायरे में 8 लाख रुपए या उससे कम सालाना आय वाले परिवार या ऐसे परिवार जिनके पास पांच एकड़ या उससे कम कृषि भूमि है आएंगे।
चार आधारों पर संशोधन रद्द करने की मांग…

1. संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन
याचिका में वर्ष 1992 के इंदिरा साहनी मामले में 9 न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुए तर्क दिया गया है कि यह संशोधन संविधान के मौलिक ढांचे का उल्लंघन करता है। जनहित याचिका के अनुसार ‘आर्थिक मानदंड आरक्षण देने का का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है। संविधान में यह प्रावधान नहीं’
2. आरक्षण की 50% की सीमा का उल्लंघन
यह संविधान संशोधन इंदिरा साहनी मामले में तय आरक्षण की अधिकतम 50% सीमा का भी उल्लंघन करता है।


3. निजी क्षेत्र में आरक्षण भी गैरकानूनी
निजी गैर वित्तीय सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में आरक्षण टीएम पाइ – पीए इनामदार मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन है।
 

 

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4. बराबरी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन
8 लाख रु वार्षिक आय की सीमा यह सुनिश्चित करती है कि ओबीसी व एससी/एसटी वर्ग के सभ्रांत लोग आरक्षण का दोहरा लाभ ले सकेंगे, वहीं इन्ही समुदायों के निचला तबका पूरी तरह वंचित रहेगा। यह अनुच्छेद 14 में दिए गए बराबरी के मूल अधिकार का हनन है।
 

सुप्रीम कोर्ट ने गरीबों को 10प्रतिशत आरक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। लोक जनशक्ति पार्टी इसका स्वागत करती है। आशा करते हैं कि अंतिम निर्णय भी पक्ष में ही आएगा।
– रामविलास पासवान, केंद्रीय मंत्री

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