भोपाल

बाँस की मांग प्रदेश और प्रदेश के बाहर बढ़ी, यह है मुख्य वजह

पौधरोपण के लिए किसानों को नि:शुल्क उपलब्ध कराया जाएगा बांस

भोपालJan 10, 2020 / 09:51 am

Ashok gautam

इमारती लकड़ी, जलाऊ चट्टों और बाँस का रिकार्ड उत्पादन

भोपाल। बाँस का सबसे ज्यादा उत्पादन हुआ है। इसकी बिक्री भी प्रदेश में ज्यादा हो रही है, इसकी मुख्य वजह यह है कि पिछले सालों से बाँस की मांग प्रदेश और प्रदेश के बाहर बढ़ी है। बांस से जुड़ कुटिर उद्योग लगातार प्रदेश में बढ़ रहे हैं, इसका परंपरिक उपयोग से ज्यादा मांग व्यवसायिक उपयोग में हो रहा है। सरकार बाँस उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कैंपा फंड और मनरेगा में इसके रोपण की योजना को शामिल किया है। वन मंत्री उमंग सिंघार ने बताया है कि वानिकी वर्ष 2017-18 की तुलना में वर्ष 2018-19 में इमारती लकड़ी का 56 प्रतिशत, जलाऊ चट्टों का 30 प्रतिशत और बाँस का 26 प्रतिशत अधिक उत्पादन हुआ है।

उन्होंने बताया कि वानिकी वर्ष 2018-19 में इमारती लकड़ी का उत्पादन 2 लाख 72 हजार घन मीटर, जलाऊ चट्टों का 1 लाख 62 हजार और बाँस का 34 हजार विक्रय इकाई उत्पादन हुआ। इसकी तुलना में वानिकी वर्ष 2017-18 में 1 लाख 74 हजार घन मीटर इमारती लकड़ी, 1 लाख 25 हजार जलाऊ चट्टे और 27 हजार विक्रय इकाई बाँस का उत्पादन हुआ था। उल्लेखनीय है कि वानिकी वर्ष की गणना जुलाई से जून माह तक और विदोहन की गणना अक्टूबर से सितम्बर माह तक की जाती है।

अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक एस.पी. शर्मा ने बताया कि वन विभाग द्वारा कार्यों की सतत समीक्षा कर गुणवत्ता में नियंत्रण रखने से उत्पादन में वृद्धि संभव हो सकी है। जलाऊ काष्ठ की तुलना में महंगी इमारती लकड़ी की मात्रा में अधिक वृद्धि गुणवत्ता प्रयासों के लिए किए गए प्रयासों की सार्थकता को रेखांकित करती है। पिछले सालों में सिंचाई की आवश्यकता वाले और नक्सली इलाकों में बड़ी संख्या में कुओं के निर्माण के भी काफी अच्छे परिणाम मिले हैं।

छिंदवाड़ा के बाद बेम्बोस टुल्डा प्रजाति के बांस की खेती बैतूल, बालाघाट, रीवा, सीधी, शहडोल, सिंगरौली और जबलपुर सहित अन्य जिलों में किसानों से कराई जाएगी। इसमें किसानों को प्रति पौधरोपण 120 रुपए तक अनुदान भी दिया जाएगा।
इसके अलावा पौधरोपण के लिए बांस भी किसानों को नि:शुल्क उपलब्ध कराया जाएगा। प्रत्येक जिले में करीब पांच से सात सौ हेक्टेयर में इस प्रजाति के बाद की खेती के लिए रोडमैप तैयार किया जाएगा। इधर सभी डीएफओ को भी वन क्षेत्र में बांस की खेती के लिए डीपीआर तैयार करने के लिए कहा गया है। प्रदेश में तीन से चार साल के अंदर उद्योगों के लिए बांस पर्याप्त मात्रा में तैयार हो जाता है।

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