भोपाल। क्या आप जानते हैं तीनों लोकों में सबसे ज्यादा ताकतवर होने का दंभ भरने वाला रावण मध्यप्रदेश में छह माह तक कैद था। क्या आप जानते हैं कि सीता कभी लंका गई ही नहीं थीं? यदिसीता लंका नहीं गई थी तो फिर कौन महिला लंका गई थी? यह ऐसे सवाल हैं जो आपको सोचने पर मजबूर कर देंगे, लेकिन ऐसे ही सवालों के जवाब एक लेखक ने खोज निकाले हैं। उन्होंने अपनी किताब में यह दावा किया है कि रावण मध्यप्रदेश में छह माह तक कैद था।
लेखक एवं पत्रकार शैलेंद्र तिवारी ने अपनी किताब ‘रावण एक अपराजित योद्धा’ में इन प्रश्नों का उल्लेख किया है। उन्होंने दावा किया है कि तीनों लोकों में सबसे शक्तिशाली होने के बावजूद रावण छह माह मध्यप्रदेश के महेश्वर में कैद था। तब महेश्वर का नाम महिष्मति था। यह वही महिष्मति साम्राज्य है जिसे फिल्म बाहुबली में दिखाया गया है।
यह किताब दावा करती है कि सीता कभी लंका गई ही नहीं थीं, उनकी जगह पर दूसरी स्त्री लंका गई थी। इस बात को खुद रावण भी जानता था। इसके बावजूद भी वह उसे लंका लेकर गया था।
रावण के जीवन को लेकर लिखी गई इस किताब में कई ऐसे दावे किए गए हैं जो चौंकने वाले हैं। यदि दूसरे शब्दों में कहें तो यह रावण के बारे में दूसरे एंगल से सोचने को मजबूर कर देती है।
इस पुस्तक में तिवारी रावण के उन पहलुओं को उजागर करते हैं जो सामान्य तौर पर लोगों को मालूम नहीं होते हैं। अथवा वह इतिहास के नेपथ्य में किसी कोने में पड़े हुए हैं।
किताब में है कैसे बना रावण
किताब दावा करती है कि महेश्वर में छह महीने कैद रहने के बाद ही रावण ने खुद के साथ आत्म साक्षात्कार किया और रावण बनने की ओर आगे बढ़ा। किताब में इस पूरी घटना को बखूबी बताया गया है।
सिर्फ खुद को साबित करना चाहता था रावण
किताब में रावण को एक ऐसा योद्धा बताया गया है जो सिर्फ खुद को साबित करना चाहता था। किसी स्वार्थ के लिए नहीं। एक ऐसा योद्धा जो अपने गर्व में जिया। वो गर्व, जिसने दूसरों के अभिमान को छिन्न -भिन्न कर दिया।
वो योद्धा जिसने अपना जीवन। अपने राज्य और अपनी प्रजा की भलाई के लिए अर्जित किया था। वो योद्धा जिसे कुछ भी दान में नहीं मिला। उसने जो कमाया अपने पुरुषार्थ और बल पर कमाया। उसे जो मिला वो उसने खुद ने ही चाहा था। यहां तक कि मृत्यु भी। हां, ये सच है कि वो महिनों तक बुरी तरह पराजित होकर बंदी बनकर महेश्वर में रहा, यहां तक कि आजादी के बाद उसे फिर अपमानित किया गया। अपनों का छल सहना पड़ा। संसार की सभी विद्याओं में पारंगत होते हुए मृत्यु के बाद भी उसके नाम को कभी सम्मान नहीं मिला।
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