भोपाल

BOOK: अपराजित है रावण, लक्ष्य को हासिल करने में हुआ था सफल

माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में बसंत साहित्योत्सव का आयोजन…। रावण एक अपराजित योद्धा के लेखक ने दिए बेबाकी से जवाब…।

भोपालJan 31, 2020 / 11:18 am

Manish Gite

ravan ek aprajit yodha book part 1 by shailendra tiwari

भोपाल। रावण अपराजित है, क्योंकि वो अपने लक्ष्य को पाने में सफल रहा। इसलिए रावण को हम नहीं कह सकते कि वो असफल या पराजित था। आज राम के साथ ही रावण को भी जानना जरूरी है। लंकाधिपति रावण अन्य राज्यों के साथ व्यापार करता था, लोगों के साथ न्याय करता था, उसके राज्य की कानून व्यवस्था, आंतरिक और बाहरी सुरक्षा व्यवस्था, यहां तक कि अच्छी विदेश नीति भी थी।

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यह बात ‘रावण एक अपराजित योद्धा’ नामक चर्चित किताब के लेखक शैलेंद्र तिवारी ने गुरुवार को बसंत साहित्योत्सव में कही। इस मौके पर मॉडरेटर श्रुति अग्रवाल के साथ उन्होंने अपनी पुस्तक के अनुभव साझा किए। इस मौके पर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं छात्र बड़ी संख्या में मौजूद थे। तिवारी ने पत्रकारिता के छात्रों के सवालों का जवाब देते हुए जोर दिया कि हमें रावण को जानना उतना ही जरूरी है, जितना राम को जानना चाहते हैं। इसलिए रावण को भी जानिएं।

 

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राम प्रकृति और रावण है जीवन

उन्होंने अपनी किताब ( ravan ek aprajit yodha ) के अंशों का जिक्र करते हुए कहा कि अगर राम प्रकृति है तब राम हैं, यदि प्रकृति ही नहीं होगी तो कोई नहीं होगा। ठीक उसी तरह से जब ईश्वर नहीं होगा तो ये सृष्टि कहां होगी। राम प्रकृति है ईश्वर हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। पूरे ब्रह्माण्ड का जनक, जो पॉवर है वो प्रकृति है। हम सब कहीं न कहीं रावण की उस वंशपरंपरा के अनुयायी हैं।

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हम में हैं अहंकार

शैलेंद्र तिवारी ( shailendra tiwari ) ने अपनी किताब पर चर्चा करते हुए बताया कि जब आत्मबल और ज्ञान दोनों एक साथ होते हैं, तो अहंकार आता है। इसलिए आज के दौर में राम के साथ ही रावण को भी जानना जरूरी है। हम छोटी-छोटी बातों में भी अहंकार करते हैं। किताब की छोटी-छोटी कहानियों के जरिए इसे समझ सकते हैं।

 

शिवजी ने रावण को ही चुना

किताब के लेखक कहते हैं कि रावण ने ज्योतिष विद्या का सृजन किया। वेदों की बात करें तो उस समय वेदों की लिखित परंपरा नहीं थी, गायन परंपरा हुआ करती थी। गायन शैली के जरिए ही अगली पीढ़ी को इन वेदों को सौंपा जाता था। इन चारों वेदों को लयबद्ध करने के लिए शिवजी ने पूरी सृष्टि में से जिसे चुना वो था रावण। भगवान शिव आदिदेव हैं। यदि आप शिव को समझने जाएंगे तो एक पीढ़ी गुजर जाएगी और वह भी कम पड़ जाएगी। कभी शिव को समझना हो तो शून्य को समझना, यदि आप शून्य को समझ लेंगे तो आप शिव को समझ जाएंगे। तो वो शून्य रावण की खोज कर रहा है तो उससे बड़ा कोई नायक नहीं है।

 

इसलिए अपराजित था रावण

डेस्टिनी (destinies) को पाने वाला सफल है या असफल। हम अपनी जिंदगी में जो तय कर लें और उसे हासिल कर लें और कोई उसे असफल या पराजित कहे तो सबसे बड़ा भ्रम होगा। रावण की डेस्टिनी क्या थी? रावण क्या था? रावण जय-विजय था। वो शापित था। उसे अपना अंत पता था। वो तो ईश्वर से मुक्त होने का इंतजार कर रहा था। इसलिए वो अपराजित था।
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सफल प्रेमी भी था रावण

किताब के लेखक तिवारी ने अपनी किताब में लिखे अंशों का जिक्र करते हुए कहा कि रावण भी एक सफल प्रेमी था। उसने मंदोदरी से प्रेम विवाह किया और जीवनभर मंदोदरी का होकर रहता है। उस दौर की कई भ्रांतियां होती थीं, कृष्ण के लिए भी कहा जाता था कि उनकी कई रानियां थीं। उनको कैद से आजाद कराकर उन्हें सम्मान देने के लिए रानी का दर्जा दिया जाता था। इसी प्रकार रावण ने भी बहुत सारी महिलाओं को पत्नी का दर्जा दिया, लेकिन मंदोदरी ही अकेली पटरानी रही हैं।

 

लंका सुसंस्कृत राज्य था

रावण अपराजित योद्धा के लेखक तिवारी के मुताबिक रावण की लंका उस समय का सुसंकृत और समृद्ध राज्य था। उसे सोने की लंका इसलिए कहा जाता था कि जब सुरज की किरणें उसकी आभा बनकर सोने सी चमकती थी, तो उसे सोने की लंका की उपमा दी गई थी। तिवारी कहते हैं कि लंका का अपना कानून था। लंकाधिपति रावण अन्य राज्यों के साथ व्यापार करता था। उसके राज्य की सुरक्षा व्यवस्था भी थी, जिसमें आंतरिक और बाहरी सुरक्षा भी थी। इसके अलावा लंका की विदेश नीति भी थी, जिसका रावण पालन करता था।

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रावण ने नहीं उठाया था धनुष

तिवारी कहते हैं कि यह गलत निरुपित किया जाता है कि रावण धनुष उठा रहे थे, तो उनका हाथ धनुष में दब गया था, लेकिन आप बाबा तुलसी बाबा और वाल्मिकी को भी पढ़ लीजिए, कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है कि रावण ने धनुष उठाया था। रावण ने धनुष उठाया ही नहीं था। वो तो सीता को देखने गए थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि सीता मंदोदरी की पहली संतान थी।

 

 

रावण, मंदोदरी और सीता का मध्यप्रदेश कनेक्शन

यह बहुत ही कम लोग जानते हैं कि रावण, मंदोदरी और सीता का मध्यप्रदेश से भी रिश्ता रहा है। मंदोदरी मंदसौर ( mandsaur ) की थी। रावण मंदसौर के दामाद के रूप में पूजे जाते हैं। महेश्वर ( maheshwar ) में छह माह तक रावण कैद में था। इसके इसके अलावा अशोकनगर ( ashok nagar ) के पास स्थित करीला में सीतामाता का मंदिर है। वहीं पर वाल्मिकी आश्रम के प्रमाण मिलते हैं। यहीं पर लव-कुश का भी जन्म हुआ था।

 

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