भोपाल

Ek Kissa/ राजमाता ने क्यों लिखी थी ऐसी वसीयत- बेटा नहीं करेगा मेरा अंतिम संस्कार

राजमाता विजयाराजे सिंधिया की पुण्य तिथि पर patrika.com बता रहा है राजघराने के कुछ किस्से….।

भोपालJan 25, 2020 / 11:40 am

Manish Gite

rajmata vijayaraje Scindia a royal family story ek kissa

भोपाल। राजमाता विजयाराजे सिंधिया का अलग ही रुतबा था। सभी को साथ लेकर चलना और सबके लिए सोचना। लेकिन, उनकी एक वसीयत ने सभी को चौंका दिया था। राजमाता ने वसीयत में लिख दिया था कि मेरा बेटा मेरा अंतिम संस्कार नहीं करेगा। राजमाता अपने पुत्र माधव राव सिंधिया से इतनी नाराज हो गई थी कि उन्हें वसीयत में ऐसा लिखना पड़ गया था। कहा जाता था कि राजमाता का सार्वजनिक जीवन जितना ही प्रभावशाली और आकर्षक था, उनका व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन उतना ही मुश्किलों भरा भी था। राजमाता का देहांत 25 जनवरी 2001 को हुआ था।
ek kissa- वीडियो में देखें यही किस्सा

राजमाता ने ऐसा क्यों लिखा था
विजयाराजे सिंधिया ( rajmata vijayaraje Scindia ) अपने इकलौते बेटे माधवराव सिंधिया से क्यों इतनी खफा थी कि उन्होंने 1985 में अपने हाथ से लिखी वसीयत में कह दिया था कि मेरा बेटा माधव मेरे अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं होगा। हालांकि 2001 में जब राजमाता के निधन के बाद माधवराव ने ही मुखाग्नि दी थी। इसके बाद कुछ माह बाद ही 30 सितम्बर 2001 को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी में हेलीकाप्टर दुर्घटना में माधवराव सिंधिया की मौत हो गई थी।


बेटे से क्यों मांगा था महल का किराया
विजयाराजे पहले कांग्रेस में थीं, लेकिन इंदिरा गांधी ने जब राजघरानों को ही खत्म कर दिया और संपत्तियों को सरकारी घोषित कर दिया तो उनकी इंदिरा गांधी से ठन गई थी। इसके बाद वे जनसंघ में शामिल हो गई थी। उनके बेटे माधवराव सिंधिया भी उस समय जनसंघ में शामिल हो गए थे, लेकिन वे कुछ समय ही रहे। बाद में उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। इससे विजयाराजे अपने बेटे से काफी नाराज हो गई थी। उस समय विजयाराजे ने कहा था कि इमरजेंसी के दौरान उनके बेटे के सामने पुलिस ने उन्हें लाठियों से पीटा था। उन्होंने अपने बेटे तक पर गिरफ्तार करवाने का आरोप लगाया था। दोनों में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता बढ़ने लगी थी और पारिवारिक रिश्ते खत्म होने लग गए थे। इसी के चलते विजयाराजे ने ग्वालियर के जयविलास पैलेस में रहने के लिए लिए अपने ही बेटे माधवराव से किराया भी मांगा था। हालांकि एक रुपए प्रति का यह किराया प्रतिकात्मक रूप से लगाया गया था।

 

 

बेटियों को दे दी जायदाद
2001 में विजयाराजे का निधन हो गया था। उनकी वसीयत के हिसाब से उन्होंने अपनी बेटियों को काफी जेवरात और अन्य बेशकीमती वस्तुएं दी थीं। अपने बेटे से इतनी खफा थी कि उन्होंने अपने राजनीतिक सलाहकार और बेहद विश्वस्त संभाजीराव आंग्रे को विजयाराजे सिंधिया ट्रस्ट का अध्यक्ष बना दिया, लेकिन बेटे को बेहद कम दौलत मिली। हालांकि विजयाराजे सिंधिया की दो वसीयतें सामने आने का मामला भी कोर्ट में चल रही है। यह वसीयत 1985 और 1999 में आई थी।


यह था राजमाता का असली नाम
सागर जिले में 12 अक्टूबर 1919 में राणा परिवार में जन्मी विजयाराजे के पिता महेन्द्र सिंह ठाकुर जालौन जिले के डिप्टी कलेक्टर हुआ करते थे। उनकी मां विंदेश्वरी देवी उन्हें बचपन से ही लेखा दिव्येश्वरी बुलाती थी। हिन्दू पंचांग के मुताबिक विजयाराजे का जन्म करवाचौथ को मनाया जाता है।


आठ बार रही सांसद
ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से उनका विवाह 21 फरवरी 1941 को हुआ था। पति के निधन के बाद वे राजनीति में सक्रिय हुई थी और 1957 से 1991 तक आठ बार ग्वालियर और गुना से सांसद रहीं। 25 जनवरी 2001 में उन्होंने अंतिम सांस लीं।

 

rajmata

ऐसी थी लव स्टोरी
-सागर के नेपाल हाउस में पली-बढ़ी राजपूत लड़की लेखा दिव्येश्वरी की महाराजा जीवाजी राव से मुलाकात मुंबई के होटल ताज में हुई। महाराजा को लेखा पहली ही नजर में भा गईं थीं। उन्होंने लेखा से राजकुमारी संबोधन के साथ बात की। इस दौरान जीवाजी राव चुपचाप सब बातें सुनते रहे और लेखा की सुंदरता व बुद्धिमत्ता पर मुग्ध होते रहे। उन्होंने अगले दिन लेखा को परिवार समेत मुंबई में सिंधिया परिवार के समुंदर महल में आमंत्रित किया। समुंदर महल में लेखा को महारानी की तरह परंपरागत मुजरे के साथ सम्मानित किया गया, तो कुंजर मामा समझ गए कि उनकी लेखा 21 तोपों की सलामी के हकदार महाराजा जीवाजी राव सिंधिया की महारानी बनने वाली है।

 

कुछ दिनों बाद महाराजा ने अपनी पसंद व शादी का प्रस्ताव लेखा के मौसा चंदन सिंह के जरिए नेपाल हाउस भिजवा दिया। बाद में उन्होंने शादी का एलान कर दिया। इस शादी का सिंधिया परिवार और मराठा सरदारों ने विरोध किया था। शादी के बाद महाराजा जीवाजी राव जब अपनी महारानी को लेकर मौसा-मौसी सरदार आंग्रे से मिलवाने मुंबई ले गए, तो वहां भी विरोध झेलना पड़ा। हालांकि, बाद में विजया राजे ने अपने व्यवहार और समपज़्ण से सिंधिया परिवार व मराठा सरदारों का विश्वास व सम्मान जीत लिया था।

Friendship Day: दोनों सच्चे मित्र थे, एक पीएम था तो दूसरा महाराजा पर इनकी माताओं के बीच थी कट्टर दुश्मनी

आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में की पढ़ाई
महाराज माधवराव सिंधिया का जन्म 10 मार्च 1945 को हुआ था। माधवराव राजमाता विजयाराजे सिंधिया और जीवाजी राव सिंधिया के पुत्र थे। माधवराव ने सिंधिया स्कूल से शिक्षा हासिल की थी। उसके बाद वे ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी पढ़ने चले गए। माधवराव सिंधिया का नाम MP के चुनिंदा राष्ट्रीय राजनीतिज्ञों में काफ़ी ऊपर लिया जाता था। माधवराव राजनीति के लिए ही नहीं बल्कि कई अन्य रुचियों के लिए भी विख्यात थे। क्रिकेट, गोल्फ, घुड़सवारी जैसे शौक के चलते ही वे अन्य नेताओं से अलग थे।

 

Jyotiraditya Scindia mp of guna lok sabha constituency
एक किस्साः राजमाता ने क्यों कहा था मेरा बेटा नहीं करेगा अंतिम संस्कार
देखें वीडियो स्टोरी

Jyotiraditya Scindia mp of guna lok sabha constituency
https://twitter.com/hashtag/RajmataScindia?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw
राजमाता की पुण्यतिथि पर किया नमन

25 जनवरी को राजमाता विजयाराजे सिंधिया की पुण्य तिथि पर कई स्थानों पर श्रद्धांजलि सभाओं का आयोजन हुआ। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी आज उनकी तस्वीर पर और उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें याद किया। चौहान ने अपने संदेश में कहा कि अपने पावन प्रयासों और अद्वितीय विचारों से गरीबों के कल्याण और मध्यप्रदेश के उत्थान का अखंड दीप प्रज्वलित करने वाली श्रद्धेय स्व. राजमाता विजयाराजे सिंधिया अम्मा महाराज की छतरी पर उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर पहुंचकर श्रद्धांजलि अर्पित की।

Hindi News / Bhopal / Ek Kissa/ राजमाता ने क्यों लिखी थी ऐसी वसीयत- बेटा नहीं करेगा मेरा अंतिम संस्कार

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.