भोपाल

राहुल गांधी को आ रही है दोस्त की याद, सिंधिया को देना चाहते हैं ये बड़ा मैसेज

18 साल कांग्रेस में रहे सिंधिया को राहुल गांधी का बेहद करीबी माना जाता था। लेकिन दिसंबर 2018 में मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव के बाद चीजें बदलती गईं…

भोपालMar 12, 2020 / 12:36 pm

Astha Awasthi

rahul gandhi retweet his old tweet photo with jyotiraditya scindia

भोपाल। दोस्त…दोस्त न रहा। राहुल गांधी के लिए इस समय ये लाइनें बिल्कुल सही बैठती हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) ने बुधवार को भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन कर लिया। बताया जा रहा है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ( Rahul gandhi) से सिंधिया काफी दिनों से मिलना चाह रहे थे, लेकिन उन्हें अप्वाइंटमेंट नहीं मिला।

 

18 साल कांग्रेस में रहे सिंधिया को राहुल गांधी का बेहद करीबी माना जाता था। लेकिन दिसंबर 2018 में मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव के बाद चीजें बदलती गईं, 2019 लोकसभा चुनाव में सिंधिया की हार के बाद हालात और बदल गए और दोनों की दोस्ती में भी गहरा असर पड़ा।

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वहीं सिंधिया के बीजेपी में जुड़ने के बाद राहुल गांधी ने उसी फोटो को रिट्वीट किया है, जो उन्होंने दिसंबर 2018 को ट्वीट किया था। इस फोटो में सिंधिया और कमलनाथ दोनों राहुल गांधी के साथ हैं।

https://twitter.com/RahulGandhi/status/1073222791330258944?ref_src=twsrc%5Etfw

कमलनाथ को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री घोषित करने के बाद राहुल गांधी ने ये फोटो ट्वीट की थी। इसके साथ उन्होंने लियो टॉलस्टॉय के एक विचार को ट्वीट किया था, जिसमें लिखा था- धैर्य और समय दो सबसे शक्तिशाली योद्धा हैं।

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इस कैप्शन से साफ पता चलता है कि राहुल कमलनाथ को राज्य की कमान सौंपने के साथ-साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया को धैर्य रखने की बात कह रहे हैं। वहीं अब सिंधिया पार्टी छोड़ चुके हैं और विरोधी पार्टी भाजपा से जुड़ गए हैं तो राहुल ने एक बार फिर उसी फोटो को रिट्वीट किया है। इस फोटो का मतलब यही निकाला जा रहा है कि सिंधिया को अभी और धैर्य रखना चाहिए था।

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पार्टी से सिंधिया की नाराजगी तभी से शुरू हो गई थी जब कमलनाथ को राज्य का सीएम बनाया गया। इसके बाद वे लंबे समय तक शांत रहे लेकिन एक के बाद एक कई ऐसी चीजें हुई जिससे सिंधिया की नाराजगी बढ़ती गई। उन्हें प्रदेश कांग्रेस की भी कमान नहीं सौंपी गई, उन्हें लगातार नजरअंदाज किया जाता रहा।

 

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ये भी कहा जाता है कि राहुल के बाद वो राष्ट्रीय स्तर पर आकर पार्टी का नेतृत्व करना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्हें राज्यसभा चुनाव में भी तरजीह नहीं दी जा रही थी। इन्हीं सभी के चलते वो ये कदम उठाने को मजबूर हुए और भाजपा में शामिल हो गए।

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