- 1 जनवरी 1950 को इंदौर के रहने वाले रफतुल्लाह कुरैशी और मकरून्निसा बेगम के यहां एक बेटे ने जन्म लिया। जिसका नाम राहत कुरैशी रखा गया। राहत कुरैशी अपने माता-पिता की चौथी संतान थे।
- राहत कुरैशी के पिता रफतुल्लाह कुरैशी कपड़े के कारखाने में एक कर्मचारी थे।
- राहत कुरैशी ने बचपन से ही गरीबी के दिन देखे। यही कारण था कि 10 साल की उम्र से ही वे सड़क पर साइन बोर्ड बनाने का काम करने लगे।
- उनकी शुरुआती पढ़ाई इंदौर के नूतन स्कूल में हुई। इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से उन्होंने 1973 में ग्रेजुएशन पूरा किया।
- 1975 में आगे की पढ़ाई करने भोपाल आ गए। यहां उन्होंने बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी से उर्दू साहित्य में एमए की पढ़ाई पूरी की।
- भोपाल स्थित भोज यूनिवर्सिटी से पीएचडी कम्प्लीट की। उर्दू मुख्य मुशायरा विषय पर राहत कुरैशी ने शोध प्रस्तुत किया। इसके लिए उन्हें सम्मानित भी किया गया।
- पीएचडी के बाद राहत इंदौरी ने अपने शुरुआती दिनों में इंद्रकुमार कॉलेज इंदौर में उर्दू साहित्य का अध्यापन कार्य भी किया। बाद में वे मुशायरा भी करने लगे।
- अपने स्कूली दिनों में खेल-कूद में आगे रहने वाले राहत इंदौरी कॉलेज में फुटबॉल और हॉकी टीम के कैप्टन भी रहे।
राहत कुरैशी कैसे बन गए राहत इंदौरी
राहत कुरैशी के राहत इंदौरी बनने का सफर बेहद दिलचस्प रहा। अपने स्कूली दिनों में सड़कों पर साइन बोर्ड लिखने और डिजाइन का काम करते थे। अपनी खूबसूरत लिखावट से राहत लोगों को दिल जीत लेते थे। लेकिन उनकी किस्मत में तो एक मशहूर शायर बनना लिखा था।
दरअसल उर्दू शायरी पढ़ने के शौकीन राहत अपने शहर इंदौर और उसके आसपास होने वाले मुशायरों में जरूर शामिल होते थे। एक बार एक मुशायरे में उनकी मुलाकात मशहूर शायर जां निसार अख्तर से हो गई। तब राहत इंदौरी ने उनके सामने अपनी दिली इच्छा जाहिर की कि, वे भी शायर बनना चाहते हैं।
अख्तर बोले, शायर बनना है तो सबसे पहले 5000 शेर मुंहजुबानी याद करो
राहत की बात सुनकर जां निसार अख्तर ने उन्हें कहा कि सबसे पहले 5 हजार शेर मुंह जुबानी याद करो। देखना तुम शायरी अपने आप करने लगोगे।पहले से याद थे 5 हजार शेर
लेकिन तब राहत इंदौरी ने जां निसार अख्तर को ये जवाब देकर हैरान कर दिया था कि 5 हजार शेर तो उन्हें पहले से ही याद हैं। इस पर अख्तर साहब ने कहा कि फिर तो तुम पहले से ही शायर हो। मुशायरे में स्टेज संभालना शुरू करो। यही वो दिन था जो मध्य प्रदेश के इंदौर के रहने वाले राहत कुरैशी को राहत इंदौरी की राह पर ले चला। उसके बाद कोई वक्त ऐसा ना हुआ कि जब राहत इंदौरी शहर में या शहर के आसपास होने वाले किसी मुशायरे में ना गए हों। यहां तक कि हर मुशायरे में राहत ने अपनी शायरी से दर्शकों का दिल ना जीता हो।
तब एक दिन ऐसा भी आया जब उन्होंने अपने नाम के आगे तखल्लुस लिखते हुए अपने शहर इंदौर का नाम जोड़ लिया। और इस नाम ने धीरे-धीरे राहत कुरैशी को राहत इंदौरी के रूप में मशहूर शायर बना दिया।
शायरी में ऊंचे ख्यालों के साथ कह देते थे मन की बात
शायरी कहने के अपने जुदा अंदाज के लिए जाने-पहचाने जाने वाले राहत इंदौरी की शायरी में ऊंचे ख्यालों के रंग तो थे ही, लेकिन वो अपने मन की बात भी शायराना अंदाज में ऐसे कहते थे कि वो बात लोगों के दिल को छू जाती थी। रियल जिंदगी की कहानियां उनकी शायरी में ऐसी जान डालतीं कि उन्हें अनसुना या नजरअंदाज करना ही नामुमकिन होता था। शेर-ओ-शायरी का ये जुदा अंदाज उन्हें इतना मशहुर कर गया कि बड़े-बूढ़े तो क्या युवा दिलों की धड़कन बन गए। उनके कुछ शेर तो आज भी बच्चे-बच्चे की जुबान से सुने जा सकते हैं।अपने दौर में सबसे आगे रहे राहत इंदौरी
राहत इंदौरी के जुदा और खूबसूरत अंदाज के साथ ही आम जिंदगी से जुड़ी कहानियां शेर-ओ-शायरी ने उन्हें अपने समकालीन शायरों और कवियों में सबसे आगे रखा।जिहाद का आरोप लगा तो रात भर सोए नहीं, लिखा ये शेर
राहत इंदौरी अक्सर मुशायरों में ये दर्द जरूर बयां करते थे कि कुछ लोगों ने उन्हें जिहादी तक कहा है। और इस आरोप ने उन्हें रात भर सोने नहीं दिया। स्थिति ये थी कि जैसे ही सुबह की अजान हुई तो उन्होंने खुद से ही कहा कि ‘राहत तू कुछ भी हो सकता है लेकिन एक जिहादी नहीं हो सकता।’ अपने नाम के साथ जिहादी जुड़ता सुन वो इतने बेचैन हो गए थे कि इस पर उन्होंने एक शेर तक लिखा… ‘मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना
लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना।’
लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना।’
निजी जिंदगी की कहानी
- राहत इंदौरी ने दो शादियां की थीं। पहली शादी मई 1986 को सीमा राहत से की। सीमा से उनकी एक बेटी और दो बेचे, एक फैजल और दूसरा सतलज राहत है।
- राहत इंदौरी ने दूसरी शादी मशहूर शायरा अंजुम रहबर से 1988 में की थी। अंजुम और राहत को एक बेटा हुआ। लेकिन कुछ साल बाद ही दोनों का तलाक हो गया। तलाक के बावजूद दोनों एक ही मंच से शेर पढ़ा करते थे।
यहां पढ़ें राहत इंदौरी के कुछ खूबसूरत शेर
सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी मेंकिसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है
कुछ लोगों से सुना है कि शायरी वही है जो इश्क और मोहब्बत की बात करती है, लेकिन राहत इंदौरी की शायरी में इश्क और मोहब्बत के अदब के साथ ही जुल्म से नफरत की झलक भी मिलती है। वे ऐसे शायर माने जाते हैं जो जालिम की आंख में आंख डालकर बात कर लेता था।
बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं। अगर खिलाफ हैं तो होने दो, जान थोड़ी है
ये सब धुंआ है, कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएंगे घर के ही जद में
यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है
हमारे मुंह से जो निकले वही सदाकत है
हमारे मुंह में तुम्हारी जुबान थोड़ी है।
और मैं जानता हूं कि दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरह हथेली पर जान थोड़ी है।
हमने खुद अपनी रहनुमाई की
और शोहरत हुई खुदाई की
मैंने दुनिया से और दुनिया ने मुझसे
सैकड़ों बार बेवफाई की।
रोज तारों को नुमाइश में खलल पड़ता है
चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं। अगर खिलाफ हैं तो होने दो, जान थोड़ी है
ये सब धुंआ है, कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएंगे घर के ही जद में
यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है
हमारे मुंह से जो निकले वही सदाकत है
हमारे मुंह में तुम्हारी जुबान थोड़ी है।
और मैं जानता हूं कि दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरह हथेली पर जान थोड़ी है।
हमने खुद अपनी रहनुमाई की
और शोहरत हुई खुदाई की
मैंने दुनिया से और दुनिया ने मुझसे
सैकड़ों बार बेवफाई की।
रोज तारों को नुमाइश में खलल पड़ता है
चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है
ये शेर बन गया राहत इंदौरी का आखिरी शेर
राहत इंदौरी के कई शेर आपने पढ़े और सुने होंगे, लेकिन इस शेर को जरा गौर से पढ़िए, क्योंकि ये उनकी जिंदगी का आखिरी शेर साबित हुआ…
ऐ जमीन एक रोज तेरी खाक में खो जाएंगे, सो जाएंगे
मर के भी रिश्ता नहीं टूटेगा हिंदुस्तान से, ईमान से
….और ये शेर उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी हकीकत थी शायद वो इसे जानते थे कि…उनका नाम हिंदुस्तान यानी देश के मशहूर शायरों में शामिल है, जिनमें उनका नाम सबसे पहली पंक्ति के शायरों में आता है। उर्दू शायरी का जब भी ना लिया जाएगा, उनका नाम सबसे पहले आएगा।