कुलदीप सारस्वत @ सीहोर। इंटर नेशनल सेंट एग्रीकल्चर रिसर्च इन द ड्रायलैण्ड एरिया (इकार्डा) के इंडिया रिसर्च प्लेटफार्म में इनदिनों मुरेको (यूएस) के वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं। सीहोर से 22 किलो मीटर दूर अमलाहा स्थिति एशिया के पहले दलहन अनुशंधान केन्द्र में दलहन की 26 देश से मंगाई गई बैरायटियों पर रिसर्च किया जा रहा है। यहां दलहन की 14 हजार से ज्यादा चना, गेहूं, तेवड़ा, जो, मसूर, खजूर और कैप्ट्स की बैरायटी पर रिसर्च किया जा रहा है। इंडिया रिसर्च प्लेटफार्म के सलाहकार वीएस गौतम ने बताया कि ये सेंटर दलहन के उत्पादन को बढ़ाकर भारत को इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने का काम करेंगा। रिसर्च के लिए 10 देश के खजूर और 25 देश से कैप्टस (नागफनी) की किस्म मंगाई गई हैं। इंडिया रिसर्च प्लेटफार्म एशिया का पहला दलहन अनुसंधान सेंटर है। उन्होंने बताया कि दलहन उत्पादन में भारत की स्थिति ठीक है। खपत इतनी ज्यादा है कि हमें इसका बड़े स्तर पर आयात करना पड़ता है। कैक्टस से आएगी श्वेत क्रांति इंडिया रिसर्च प्लेटफार्म के वैज्ञानिक कैक्टस से मध्यप्रदेश में श्वेत क्रांति लाने का प्रयास कर रहे हैं। यहां पर रिसर्च कर रहे वैज्ञानिकों का दावा है कि कैप्टस को खिलाकर दुधारू पशुओं की दुग्ध क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। सूखे प्रदेशों में पशुओं को पौष्टिक आहार देने की समस्या से किसान जूझते थे। पौष्टिक आहार की अनुपलब्धता के चलते पशुओं का दूध उत्पादन भी प्रभावित होता है। अफगानिस्तान, अरब, दक्षिण अफ्रिका सहित कई शुष्क जलवायु वाले देशों में पशुओं को चारे के साथ कैक्टस खिलाया जाता है, जिससे उनका दूध उत्पादन प्रभावित नहीं हो पाता, इसी अवधारणा पर अब प्रदेश के कई शुष्क क्षेत्रों में दूधारू पशुओं को हरे चारे के साथ प्रयोग के बाद सर्वश्रेष्ठ पाए गए कैक्टस को चारे के रूप में दिया जाएगा। इस कैक्टस से जहां पशुओं में दूधारू क्षमता बढ़ेगी, वहीं इनके उत्पादन पर नाममात्र का खर्च किसान को करना पड़ेगा। 170 एकड़ का इंडिया रिसर्च प्लेटफार्म अमलाहा स्थित इंदिया रिसर्च प्लेटफार्म 170 एकड़ का है। यहां कई देश के वैज्ञानिक विदेशों से मंगाए गए दलहानी फसलों के जर्म प्लाज्म पर रिसर्च कर रहे हैं। अभी तिवड़ा जर्म प्लाज्म संख्या 1600, गेहूं जर्म प्लाज्म संख्या 1400, चना जर्म प्लाज्म संख्या 5700 और मसूर जर्म प्लाज्म संख्या 1800 पर रिसर्च किया जा रहा है। जर्म प्लाज्म से दलहन की फसलों की नई बैरायटी तैयार होने पर लोकल किसानों को काफी फायदा होगा।