patrika.com पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया के जन्म दिवस (10 मार्च) के मौके पर आपको बताने जा रहा है दिलचस्प किस्से, जिसे लोग आज भी याद करते हैं।
दो बार सीएम बनते-बनते रह गए सिंधिया
पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया का जन्म 10 मार्च 1945 को मुंबई में हुआ था। वे इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके व्यक्तित्व और राजनीति में कार्यकाल नेता के रूप में उन्हें याद किया जाता है। सिंधिया दो बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे। यह किस्सा उस समय का है जब 1989 में चुरहट लाटरी कांड हुआ था। उस समय अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री थे और चुरहट अर्जुन सिंह का ही निर्वाचन क्षेत्र था। उस समय अर्जुन सिंह पर इस्तीफे का दबाव बढ़ गया था। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की इच्छा थी कि सिंधिया मुख्यमंत्री बन जाए। लेकिन, अर्जुन सिंह भी राजनीति के माहिर थे। वे इस्तीफा नहीं देने पर अड़ गए। लेकिन, आज उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया को लोग मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं।
सिंधिया इंतजार करते रहे और वोरा को बना दिया सीएम
यह भी बताया जाता है कि आखिरी दौर में जब माधवराव भोपाल आ गए और सीएम बनने का इंतजार कर रहे थे, तो विवादों के बीच एक ऐसा समझौता हुआ, जिसके बाद मोतीलाल वोरा को मुख्यमंत्री बना दिया गया। इस वाकये के बाद प्रधानमंत्री राजीव गांधी अर्जुन सिंह से बेहद खफा हो गए थे। इसके बाद अर्जुन के धुर विरोधी माने जाने वाले श्यामाचरण शुक्ल को पार्टी में लाया गया और मोतीलाल वोरा के बाद शुक्ल को सीएम बनाया गया। इसके बाद अर्जुन सिंह ने भी मध्यप्रदेश की राजनीति से किनारा कर लिया और केंद्र में चले गए।
दिग्विजय सिंह से पटरी नहीं बैठ पाई
महाराजा सिंधिया और राघोगढ़ राजघराने से ताल्लुक रखने वाले दिग्विजय सिंह में राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के कारण कभी पटरी नहीं बैठी। 1993 की बात है जब दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने उस दौर में सिंधिया का नाम भी शीर्ष पर आ गया था, लेकिन रातो रात पांसे पलट गए और अर्जुन गुट ने दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनवा दिया। उस समय दिग्विजय सिंह के राजनीतिक गुरु अर्जुन सिंह माने जाते थे। सिंधिया दूसरी बार भी सीएम बनने से चूक गए थे।
मां ने जायदाद से बेदखल किया था
राजमाता के खिलाफ जाकर कांग्रेस ज्वाइन की बात 1979 की है जब राजमाता विजयाराजे सिंधिया के खिलाफ जाकर भी माधवराव ने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली थी। इसे लेकर मां-बेटे के व्यवहार में इतनी कटुता आ गई थी कि बातचीत बंद हो गई और अलग-अलग महल में रहने लगे थे। यहां तक कि राजमाता ने अपनी वसीयत में भी लिख दिया था कि मेरे बेटे का जायदाद में कुछ हिस्सा नहीं रहेगा। और मेरा अंतिम संस्कार भी वो नहीं करेगा। हालांकि सिंधिया ने ही अपनी मां का अंतिम संस्कार किया।
मां ने ही जिताया था लोकसभा का चुनाव
बात 1971 की है जब माधवराव 26 साल के थे। उस समय वे जनसंघ के समर्थन से लड़े थे। इसके बाद 1977 में माधवराव ने ग्वालियर से निर्दलीय चुनाव लड़ा, लेकिन उनका जीतना संभव नहीं था। लेकिन राजमाता को जनता से अपील करनी पड़ी, तब माधवराव चुनाव जीत सके। वे ऐसे अकेले प्रत्याशी थे जो 40वीं लोकसभा में निर्दलीय जीत कर गए थे। बाकी सभी जनसंघ की जीत पर गए थे।
तो संजय गांधी के साथ ही हो जाती मौत
माधवराव सिंधिया और संजय गांधी को एयरोप्लेन उड़ाने का बेहद शोक था। दोनों सफदरजंग हवाई पट्टी पर हवाई जहाज उड़ाने जाते थे। संजय के पास लाल रंग का नया जहाज पिट्सएस-2ए वापस मिल गया था। जनता पार्टी की सरकार ने इस विमान को जब्त कर लिया था। यह कम ही लोग जानते हैं कि माधवराव और संजय दोनों विमान उड़ाने के लिए दूसरे दिन सुबह जाने वाले थे। लेकिन, माधवराव की नींद नहीं खुली और संजय गांधी अकेले ही उड़ान भरने चले गए। संजय गांधी की यह आखिरी उड़ान थी। इसी विमान दुर्घटना में संजय गांधी की मौत हो गई थी।
माधवराव की ही मृत्यु विमान दुर्घटना में हुई
संजय गांधी और माधवराव दोनों करीबी मित्र थे। सिंधिया की भी दुर्घटना संजय की ही तरह आठ सीटों वाले सेसना सी-90 विमान के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से हुई थी। सिंधिया तब विमान एकचुनावी सभा को संबोधित करने के लिए कानपुर जा रहे थे। इस हादसे में सिंधिया के साथ ही 4 जर्नलिस्ट भी मारे गए थे।